डॉलर के मुकाबले रुपया 35 पैसे गिरकर 82.63 पर आया

कमजोर वैश्विक रूझानों के बीच शुरुआती कारोबार में सेंसेक्स, निफ्टी में गिरावट

नई दिल्ली/ टीम डिजिटल। वैश्विक बाजारों में कमजोरी के रुख और विदेशी पूंजी की निकासी जारी रहने के बीच सोमवार को शुरुआती कारोबार में प्रमुख शेयर सूचकांक सेंसेक्स और निफ्टी में गिरावट हुई। इस दौरान 30 शेयरों वाला बीएसई सेंसेक्स 495.53 अंक गिरकर 61,686.14 पर आ गया। व्यापक एनएसई निफ्टी 147.15 अंक टूटकर 18,349.45 पर था।

सेंसेक्स में एशियन पेंट्स, टाइटन, बजाज फाइनेंस, इंफोसिस, बजाज फिनसर्व और अल्ट्राटेक सीमेंट गिरने वाले प्रमुख शेयरों में शामिल थे। दूसरी ओर, आईटीसी और डॉ. रेड्डीज में बढ़त हुई। अन्य एशियाई बाजारों में सियोल, तोक्यो, शंघाई और हांगकांग के बाजार नुकसान में कारोबार कर रहे थे।

अमेरिकी बाजार भी शुक्रवार को नुकसान में बंद हुए थे। पिछले कारोबारी सत्र में, शुक्रवार को बीएसई का 30 शेयरों वाला मानक सूचकांक सेंसेक्स विदेशी मुद्रा की कीमतें 389.01 अंक यानी 0.62 प्रतिशत टूटकर 62,181.67 अंक पर बंद हुआ था। इसी प्रकार, नेशनल स्टॉक एक्सचेंज का निफ्टी भी 112.75 अंक यानी 0.61 प्रतिशत की गिरावट के साथ 18,496.60 अंक पर बंद हुआ था।

रुपया लगातार गिर रहा है, लेकिन यह वरदान भी साबित हो सकता है

अगर एक अमेरिकी डॉलर (American dollar) 80 रुपए का हो जाता है तो इतनी हाय तौबा क्यों? अगर मेरी दादी आज जिंदा होतीं तो यह भोला सा सवाल जरूर करतीं. वैसे अर्थव्यवस्था का जो हाल है, उसे देखते हुए चारों तरफ से हाय-तौबा मची है. नेताओं से लेकर शेयर मार्केट के सट्टेबाज, और सोशल मीडिया से लेकर क्रिप्टो करंसी के दीवाने नौजवान- हर तरफ से रुपए में गिरावट पर त्राहिमाम-त्राहिमाम की चीख पुकार सुनाई दे रही है.

'लक्ष्मण रेखा' करोगे पार तो नहीं बचेगी सरकार

वैसे मैं किसी को डराना नहीं चाहता, लेकिन अगर रुपए में गिरावट ही आपके लिए कयामत की दस्तक है तो आपने दूसरे खौफनाक मंजर नहीं देखे. विदेशी निवेशकों ने इस कैलेंडर वर्ष में 30 बिलियन डॉलर वापस खींच लिए हैं. भारत को चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में 70 बिलियन डॉलर का व्यापार घाटा हुआ है. हमारा विदेशी मुद्रा भंडार 50 बिलियन डॉलर गिरकर 600 बिलियन डॉलर हो गया है. करीब 270 बिलियन डॉलर के विदेशी कर्ज का बोझ हमारे कंधों पर है जिसे नौ महीने के भीतर चुकाना है. ऐसे में सोचिए कि डॉलर के मुकाबले रुपए की कीमत 80 के इस पार होगी या उस पार?

चीन और जापान ने अपनी करंसी विदेशी मुद्रा की कीमतें को जानबूझकर कमजोर रखा

लेकिन मुझे यह '80 का फोबिया' बेहद हास्यास्पद लगता है. मैं सोचता हूं कि इस बात को कितने लोग समझते होंगे कि जापान और चीन ने कैसे जानबूझकर अपनी मुद्राओं की कीमत कम रखी- सिर्फ इसलिए ताकि निर्यात बाजार में उनके उत्पाद धूम मचा सकें.

अब यह तो सभी लोग जानते होंगे कि इन दोनों देशों की अर्थव्यवस्थाओं ने पिछले 50 सालों में चामत्कारिक रूप से आसमान छुआ है. बेशक, उनकी आर्थिक कायापलट की दूसरी वजहें भी हैं लेकिन कृत्रिम तरीके से रॅन्मिन्बी और येन के मूल्यह्रास से भी उन्हें बहुत फायदा हुआ. यह भी सच है कि दोनों देशों को ‘करंसी मैन्यूपुलेटर्स’ कहकर बदनाम किया गया, चूंकि पश्चिमी ब्लॉक चोटिल हुआ और उन्हें इन दोनों देशों की मजबूत अर्थव्यवस्थाओं से संघर्ष करना पड़ रहा है.

तो, चीन और जापान ने जानबूझकर अपनी करंसियों को कमजोर विदेशी मुद्रा की कीमतें क्यों किया? क्योंकि शुरुआती दौर में सस्ती करंसी ने उनके अपने टेक, अप्रतिस्पर्धी अर्थव्यवस्थाओं की ‘हिफाजत’ की. इस बीच उन्हें अपने औद्योगिक आधार को आधुनिक और उत्पादक बनाने के लिए पर्याप्त समय मिल गया.

रुपए में गिरावट का नुकसान गिनाइए

क्या कोई मुझे दो, सिर्फ दो वजहें बता सकता है कि रुपए में गिरावट का बुरा नतीजा क्या होगा? मैं देख सकता हूं कि लोगों ने झट से अपने हाथ उठा लिए क्योंकि एक प्रतिकूल प्रभाव तो सार्वभौमिक और निर्विवाद है. रुपये में गिरावट से आयातित वस्तुएं कुछ समय के लिए महंगी हो जाएंगी. तेल की कीमतें, उर्वरक, पूंजीगत वस्तुओं का निवेश सब महंगा हो जाएगा- आयात के लिए ज्यादा कीमत चुकानी पड़ेगी. तो, कोई शक नहीं कि कमजोर रुपये का एक भयानक नतीजा आयातित मुद्रास्फीति है.

चलिए अब यह बताइए कि दूसरा बुरा नतीजा क्या है? खामोशी. बहुत से लोग चुप हो जाएंगे. दूसरा नतीजा. हम्म मेरे ख्याल से, रुपए में गिरावट देश के स्वाभिमान को मिट्टी में मिला देगा.

अरे छोड़िए भी. यह कोई आर्थिक दलील नहीं, सिर्फ एक मूर्खतापूर्ण, राजनीतिक और भावुक टिप्पणी है. क्योंकि कड़वी सच्चाई यह है कि आयात महंगा होने के अलावा, रुपए में गिरावट का ऐसा कोई- मैं दोहराता हूं- ऐसा कोई बहुत बड़ा नुकसान नहीं होने वाला. हां, इसमें बहुत सी अच्छी बातें छिपी हुई हैं, जैसे उच्च निर्यात आय, एसेट्स की कीमत में सुधार, अधिक घरेलू निवेश वगैरह वगैरह.

विदेशी मुद्रा भंडार में इस सप्ताह आई 9.6 अरब डॉलर की कमी, दो वर्ष में सबसे बड़ी साप्ताहिक गिरावट


नई दिल्ली। भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा शुक्रवार को जारी किए गए आंकड़ों के मुताबिक, 11 विदेशी मुद्रा की कीमतें मार्च को समाप्त सप्ताह में देश का विदेशी मुद्रा भंडार 9.6 अरब डॉलर गिरकर 622.3 अरब डॉलर रह गया। गौरतलब है कि यह बीते दो वर्षों में सबसे तेज साप्ताहिक गिरावट रही। आरबीआई के अनुसार, यह गिरावट विदेशी मुद्रा परिसंपत्तियों के घटने की वजह से आई जो कुल मुद्रा भंडार का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होता है।

मार्च 2020 में आई थी बड़ी गिरावट
बीते दो सालों की बात करें तो इससे पहले 20 मार्च 2020 को समाप्त सप्ताह में विदेशी मुद्रा भंडार में 11.9 अरब डॉलर की गिरावट दर्ज की गई थी। इससे पहले चार मार्च को समाप्त सप्ताह में विदेशी मुद्रा भंडार 39.4 करोड़ डॉलर बढ़कर 631.92 अरब डॉलर हो गया था। बता दें कि बीते साल सितंबर, 2021 में विदेशी मुद्रा भंडार 642.453 अरब डॉलर के रिकॉर्ड स्तर पर जा पहुंचा था। डॉलर में अभिव्यक्त विदेशी मुद्रा भंडार में रखे जाने वाले विदेशी मुद्रा आस्तियों में यूरो, पौंड और येन जैसे गैर अमेरिकी मुद्रा के तेजी और गिरावट के प्रभावों को शामिल किया जाता है।

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स्वर्ण भंडार में इस बार भी बढ़ोतरी
आरबीआई के आंकड़ों के अनुसार, आलोच्य सप्ताह में देश के स्वर्ण भंडार में 1.522 अरब डॉलर बढ़ोतरी दर्ज की गई है और यह बढ़कर 43.842 अरब डॉलर हो गया है। समीक्षाधीन सप्ताह में, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के पास जमा विशेष आहरण अधिकार (SDR) 5.3 करोड़ डॉलर घटकर 18.928 अरब डॉलर रह गया। रिपोर्ट के मुताबिक, आईएमएफ में रखा देश का मुद्रा भंडार 70 लाख डॉलर घटकर 5.146 अरब डॉलर रह गया है।

उच्च स्तर से 20 अरब डॉलर कम
वर्तमान में भंडार अपने सर्वकालिक उच्च स्तर 642 अरब डॉली विदेशी मुद्रा की कीमतें से लगभग 20 अरब डॉलर कम है। विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट की अवधि उस सप्ताह के साथ मेल खाती है जिसमें 7 मार्च को रुपये के 77 के टूटने के बाद केंद्रीय बैंक द्वारा रिकॉर्ड हस्तक्षेप देखा गया था। यूक्रेन में बिगड़ती स्थिति के मद्देनजर भारतीय मुद्रा दबाव में आई, इसके बाद में पश्चिमी देशों द्वारा लगाए गए प्रतिबंध के परिणामस्वरूप कच्चे तेल की कीमतें 140 डॉलर के स्तर पर पहुंच गईं। आगे चलकर रुपया यूक्रेन में संघर्ष की दिशा पर निर्भर करेगा। अगर रूस से रियायती आपूर्ति या वैश्विक कीमतों में ढील के माध्यम से तेल की आपूर्ति 80-85 डॉलर पर सुनिश्चित की जाती है, तो रुपया स्थिर रहना चाहिए। लेकिन अगर कीमतें 100 डॉलर को पार करती हैं तो यह विदेशी मुद्रा की कीमतें फिर से दबाव में आ जाएगा।

विदेशी मुद्रा भंडार 2.91 अरब डॉलर बढ़कर 564.1 अरब डॉलर पर

मुंबई: विदेशी मुद्रा परिसंपत्ति, विशेष आहरण अधिकार (एसडीआर) और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के पास आरक्षित निधि में बढ़ोतरी होने से देश का विदेशी मुद्रा भंडार 09 दिसंबर को समाप्त सप्ताह में 2.91 अरब डॉलर बढ़कर 564.1 अरब डॉलर पर पहुंच गया जबकि इसके पिछले सप्ताह यह 11.02 अरब डॉलर की बढ़ोतरी लेकर 561.2 अरब डॉलर पर रहा था। रिजर्व बैंक की ओर से जारी साप्ताहिक आंकड़े के अनुसार, 09 दिसंबर को समाप्त सप्ताह में विदेशी मुद्रा भंडार के सबसे बड़े घटक विदेशी मुद्रा परिसंपत्ति 3.14 अरब डॉलर की बढ़ोतरी लेकर 500.1 अरब डॉलर हो गयी।

वहीं, इस अवधि में स्वर्ण भंडार में 2.96 करोड़ डॉलर की कमी आई और यह घटकर 40.73 अरब डॉलर रह गया। आलोच्य सप्ताह विशेष आहरण अधिकार (एसडीआर) में 6.1 करोड़ डॉलर की विदेशी मुद्रा की कीमतें तेजी आई और यह बढ़कर 18.12 अरब डॉलर पर पहुंच गया। इसी तरह इस विदेशी मुद्रा की कीमतें अवधि में अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के पास आरक्षित निधि 20 लाख डॉलर की बढ़ोतरी लेकर 5.1 अरब डॉलर हो गई।

गलवान और तवांग में भारतीय सेना की ओर से दिखाया गया पराक्रम प्रशंसनीय है-रक्षा मंत्री

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा है कि देश के सैनिकों ने विदेशी मुद्रा की कीमतें हर अवसर पर साहस और शौर्य का प्रदर्शन किया है। उन्‍होंने कहा कि गलवान और तवांग में भारतीय सेना ने अग्रिम मोर्चे पर अपूर्व पराक्रम का प्रदर्शन किया है।

आज नई दिल्‍ली में फिक्‍की के 95वें वार्षिक समारोह में उन्‍होंने कहा कि पूरी दुनिया की नजरें भारत के रक्षा उत्‍पादों पर टिकी हैं। उन्‍होंने उदयोग जगत से अपील की कि वे रक्षा क्षेत्र में अनुसंधान और विकास में निवेश के लिए आगे आयें क्‍योंकि अब देश में निवेश के लिए अनुकूल माहौल है। श्री सिंह ने कहा कि देश के रक्षा क्षेत्र में अपार सम्‍भावनाएं हैं और सरकार वर्ष 2025 तक 22 अरब डॉलर का निवेश आकर्षित करना चाहती है।

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