भारत सरकार के एक कड़े और बहुत ही सराहनीय फैसले से भारतीय रुपया आज ग्लोबल करेंसी बन रहा है। कड़े इसलिए क्योंकि यह दूसरे देशों के लिए शुभ संकेत नहीं है और सराहनीय भारतीय परिपेक्ष में है। भारतीय रिजर्व बैंक ने इस साल 2022 जुलाई में बैंकों को आयात निर्यात के सौदे रुपए में करने के लिए जरूरी इंतजाम करने के लिए निर्देश दिए थे। DGFT ने एक अधिसूचना में कहां है कि आरबीआई ने 11 जुलाई 2022 के निर्देश के मुताबिक पैराग्राफ 2.52 (डी) को अधिसूचित किया गया है। वाणिज्य मंत्रालय ने हाल ही में अंतरराष्ट्रीय व्यापार को रुपए में करने के लिए विदेश व्यापार नीति में बदलाव किया था। इन बदलावों के असर से सभी तरह के पेमेंट , बिलिंग विदेशी मुद्रा व्यापारी असफल क्यों होते हैं और आयात-निर्यात या लेन-देन का निपटारा रुपए में हो सकता है। इस बारे में Directorate of Foreign Trade (DGFT) एक नोटिस जारी किया है। सरकार के द्वारा लिए गए यह कदम बहुत ही जल्द रुपए की वैल्यू को बढ़ा देंगे और अंतरराष्ट्रीय बाजार में रुपए की ताकत बढ़ेगी।
ऑस्ट्रेलिया भ्रमण
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पर्यटन
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मिशन “लोकल पर वोकल” को सफल बनाने में भारतीय नागरिकों का कैसा हो योगदान
कोरोना वायरस महामारी ने पूरी दुनिया में सभी देशों की अर्थव्यवस्थाओं को जब ध्वस्त कर दिया है तब ऐसे समय में, भारत के प्रधानमंत्री माननीय श्री नरेंद्र मोदी इस समय को भारत के लिए एक मौके की तरह देख रहे हैं। इसी कड़ी में माननीय प्रधानमंत्री ने राष्ट्र के नाम संबोधन में पहली बार ‘लोकल पर वोकल’ होने का नारा दिया है एवं साथ ही उन्होंने केंद्र सरकार की ओर से अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों के लिये 20 लाख करोड़ रुपये के आर्थिक पैकेज की घोषणा करते हुये कहा था कि यह पैकेज 2020 में भारत को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में एक बहुत ही महत्वपूर्ण क़दम साबित होगा। माननीय प्रधानमंत्री ने यह भी कहा है कि ‘मेक इन इंडिया’ को सशक्त बनाना अब आवश्यक हो गया है एवं यह सब आत्मनिर्भरता, आत्मबल से ही संभव होगा. पूर्व में जब देश ने स्थानीय उत्पाद को बढ़ावा देने के मामले में यह तय कर लिया था कि खादी और हथकरघा का उपयोग अपने दैनिक जीवन में बढ़ाएँगे तब इन उत्पादों की बिक्री रिकार्ड स्तर पर पहुंच गई थी. इसी प्रकार यदि हम ठान लेंगे की भारत को आर्थिक दृष्टि से आत्म निर्भर बनाना है तो यह सब सम्भव कर दिखा सकने की क्षमता हमारे देश के नागरिकों में है।
क्या दुनियाभर के लोग भारत में लगा रहे हैं पैसा, रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया है विदेशी पूंजी भंडार
आरबीआई की ओर से जारी साप्ताहिक आंकड़ाें के मुताबिक, 12 जून को समाप्त हफ्ते के दौरान देश के विदेशी पूंजी भंडार में 5 अरब डॉलर से ज्यादा की वृद्धि दर्ज की गई है.
कोरोना संकट (Corona Crisis) के बीच देश के लिए अच्छी खबर है कि 12 जून को खत्म हुए सप्ताह में भारत का विदेशी पूंजी भंड . अधिक पढ़ें
- News18Hindi
- Last Updated : June 19, 2020, 20:41 IST
मुंबई. कोरोना संकट से निपटने के लिए लगाए गए लॉकडाउन के कारण कारोबारी गतिविधियां थमने से विदेशी मुद्रा व्यापारी असफल क्यों होते हैं दुनियाभर में आर्थिक संकट की स्थिति पैदा हो गई है. इस बीच पिछले कुछ सप्ताह से भारत के विदेशी पूंजी भंडार (Forex Reserve) में लगातार हो रही बढ़ोतरी देश की अर्थव्यवस्था (Indian Economy) के लिए अच्छा संकेत मानी जा रही है. रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) की ओर से जारी आंकड़ों के मुताबिक, 12 जून को समाप्त सप्ताह में देश का विदेशी पूंजी भंडार 5.942 अरब डॉलर बढ़कर 507.64 अरब डॉलर हो गया है. केंद्रीय बैंक के मुताबिक, विदेशी पूंजी भंडार में ये उछाल विदेशी मुद्रा भंडार (Foreign Currency Assets) में हुई बढ़त के कारण दर्ज किया गया है.
विदेशी मुद्रा व्यापारी असफल क्यों होते हैं
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भारत में जूट का प्रथम कारखाना सन 1859 में स्कॉटलैंड के एक व्यापारी जार्ज ऑकलैंड ने बंगाल में श्रीरामपुर के निकट स्थापित किया और इन कारखानों की संख्या 1939 तक बढ़कर 105 हो गई। देश के विभाजन से यह उद्योग बुरी तरह प्रभावित हुआ। जूट के 112 कारखानों में से 102 कारखाने ही भारत के हिस्से में आये।
भारतीय अर्थव्यवस्था में जूट उद्योग का महत्त्वपूर्ण स्थान है। 19वीं शताब्दी तक यह उद्योग कुटी एवं लघु उद्योगों के रूप में विकसित था एवं विभाजन से पूर्व जूट उद्योग के मामले में भारत का एकाधिकार था। विशेष रूप से कच्चा जूट भारत से स्कॉटलैंड भेजा जाता था। जहाँ से टाट-बोरियाँ बनाकर फिर विश्व के विभिन्न देशों में भेजी जाती थीं, जोकि विदेशी मुद्रा का प्रमुख स्रोत थी। यह निर्यात व्यापार जूट उद्योग का जीवन रक्त था। दुनिया के प्रायः सभी देशों में जूट निर्मित उत्पादों की माँग हमेशा बनी रहती है। अतः आज भी भारत में जूट को ‘सोने का रेशा’ कहा जाता है।
नियोजित विकास
विभिन्न पँचवर्षीय योजनाओं में देश में जूट के उत्पादन में निरन्तर वृद्धि की प्रवृत्ति रही है। पहली योजना के अन्तिम वर्ष में भारत में जूट का उत्पादन 42 लाख गाँठे था, जो 1996-97 में बढ़कर एक करोड़ गाँठें हो गया। जूट का उत्पादन एवं जूट से निर्मित उत्पादों को तालिका-1 में दर्शाया गया हैै।
तालिका - 1
कच्चे जूट का उत्पादन (लाख गाँठें)
जूट निर्मित माल (लाख टन)
फिलहाल डॉलर में होता है 40% ग्लोबल व्यापार
ऐसी उम्मीद है कि रुपया को अंतरराष्ट्रीय करेंसी के तौर पर स्थापित करने की तरफ अगला कदम भी सरकार बहुत जल्द लेगी क्योंकि सरकार को अन्य सभी देशों को तैयार करना होगा कि वह भी भारतीय रुपए को अंतरराष्ट्रीय मुद्रा के रूप में स्वीकार करें और उसी के माध्यम से अपना व्यापार करें। इससे फायदा यह हुआ कि डॉलर के मूल्य में वृद्धि होने पर किसी भी देश को घाटे का सामना नहीं करना पड़ेगा। जैसा कि हाल ही में श्रीलंका में डॉलर का रिजर्व लगभग खत्म ही हो गया था उसके पास समान रहते हुए भी वह व्यापार नहीं कर पा रहा था क्योंकि दूसरा कोई विकल्प न होने के कारण पर अब भारतीय रुपया विकल्प के तौर पर देखा जा रहा है। इससे डॉलर की मांग में कमी आएगी और रुपए को मजबूती मिलेगी।
चीन ने भी युवान के अंतरराष्ट्रीय करण की कोशिश की थी लेकिन सफल नहीं हो सका चीन की असफलता में भारत को घबराने की कोई जरूरत नहीं है क्योंकि चीन अपनी करेंसी के मूल्य को घटाने बढ़ाने के लिए कृत्रिम तरीके अपनाता है ऐसे में युवाओं के अंतरराष्ट्रीय करण का प्रयास असफल हो चुका है भारत के साथ रुपए में कारोबार करने के लिए 35 देश आगे आ चुके हैं जिनमें से ब्राजील मेक्सिको श्रीलंका बांग्लादेश रूस बेलारूस सऊदी अरब तजाकिस्तान और क्यूबा हैं। जिससे भारत की मुद्रा को एक मजबूत साथ मिल रहा है।
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