चूंकि भारत भी आज दुनिया के तमाम देशों की तरह 51वां विश्व साक्षरता दिवस मना रहा है, तो इस मौके पर राष्ट्रों की वित्तीय साक्षरता में सबक तरक्की में साक्षरता की केंद्रीय भूमिका की तरफ मैं आप सबका ध्यान आकृष्ट करना चाहता हूं। यह वह दिन है, जब हम अपने स्वतंत्रता संघर्ष और महात्मा गांधी के शब्दों को याद कर सकते हैं, जिन्होंने कहा था कि अशिक्षा एक अभिशाप और शर्म है, जिसे मुक्ति पाई जानी ही चाहिए। यह वित्तीय साक्षरता में सबक वह दिन है, जब हम अपनी स्वतंत्रता के 70 वर्षों की तरक्की पर निगाह डाल सकते हैं। पंडित नेहरू ने 15 अगस्त, 1947 की मध्य रात्रि को बड़े ही सार्थक शब्दों में कहा था, ‘आम आदमी को आजादी व अवसर मुहैया कराने के लिए और सामाजिक-आर्थिक व राजनीतिक संगठनों के सृजन के लिए, जो देश के हरेक पुरुष व स्त्री को इंसाफ व आनंदपूर्ण जीवन की गारंटी दे’ हमें विकास के मार्ग पर कदम बढ़ाने की जरूरत वित्तीय साक्षरता में सबक है। हमने इन वर्षों में जो तरक्की की सीढ़ियां चढ़ी हैं, जो मील के पत्थर गाड़े हैं, उन्हें गर्व से देख सकते हैं। 1947 में देश जब आजाद हुआ था, तब महज 18 प्रतिशत भारतीय लिख-पढ़ सकते थे। आज करीब 74 फीसदी भारतीय साक्षर हैं। 95 प्रतिशत से भी अधिक बच्चे वित्तीय साक्षरता में सबक स्कूल जा रहे हैं और 86 फीसदी नौजवान कामकाज के लायक शिक्षित हैं। यह कोई कम बड़ी उपलब्धि नहीं है। हालांकि, हमें अपनी पुरानी सफलताओं से प्रेरणा लेते हुए भविष्य की ओर अग्रसर होना है।

निस्संदेह, हमें अभी लंबी दूरी तय करनी है। हम इस तथ्य की भी अनदेखी नहीं कर सकते कि करीब 35 करोड़ युवा व प्रौढ़ शिक्षा की दुनिया से बाहर हैं, और इसके कारण भारत की तरक्की और विकास में वे कोई सार्थक भूमिका नहीं निभा पा रहे। इसके अलावा करीब 40 प्रतिशत स्कूली बच्चे प्राथमिक शिक्षा पूरी करने के बाद भी बुनियादी साक्षरता कौशल से वंचित रह जाते हैं। हमारे सामने एक बड़ी चुनौती है, जिससे हमें व्यवस्थित रूप से निपटना है। आज के दिन ने हमें अपनी सामूहिक उपलब्धि का उत्सव मनाने का अवसर दिया है। यह हमारे अथक प्रयासों की प्रेरक कहानी है। अनेक व्यक्तियों और संस्थाओं ने इस राष्ट्रीय कोशिश में अपना योगदान दिया है। त्रावणकोर और बड़ौदा के बौद्धिक शासकों ने शिक्षा के अवसरों का विस्तार किया था। महात्मा गांधी से पे्ररणा लेते हुए वेल्दी फिशर और लौबाह ने 1953 में लखनऊ में लिटरेसी हाउस की स्थापना की थी। प्रौढ़ शिक्षा के क्षेत्र में 1959 में ही ग्राम शिक्षण मुहिम जैसे कार्यक्रम चलाए गए थे। लेकिन 1990 के दशक में सरकार के राष्ट्रीय साक्षरता मिशन ने इन प्रयासों को जबर्दस्त रफ्तार दी। और इन तमाम प्रयासों को ही इस बात का श्रेय जाता है कि आज हमारी तीन-चौथाई आबादी लिख-पढ़ सकती है। हालांकि, वैश्विक परिप्रेक्ष्य में चुनौतियां अब भी कम नहीं हैं और वे फौरन ध्यान दिए जाने की मांग भी करती हैं। सरकार मानती है और जैसा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने श्यामन (चीन) के ब्रिक्स सम्मेलन में बीते 5 सितंबर को कहा भी है कि ‘‘हमारे विकास संबंधी एजेंडे का आधार ‘सबका साथ, सबका विकास’ की धारणा है। यानी सामूहिक प्रयास और समावेशी विकास।’’ अगले पांच वर्षों में एक नए भारत को आकार देने में भी देश जुटा हुआ है। वैश्विक रूप से हम जनवरी 2016 के उस संयुक्त राष्ट्र के ‘2030 एजेंडा फॉर सस्टेनेबल डेवलपमेंट’ के प्रति प्रतिबद्ध हैं। इस वैश्विक एजेंडे में एक ‘सार्वभौमिक साक्षर दुनिया’ की परिकल्पना की गई है। और इस एजेंडे के एक लक्ष्य को, जो खास तौर से नौजवानों और प्रौढ़ों की साक्षरता पर केंद्रित है, साल 2030 तक हासिल करना है।

अगर हमें 2030 तक साक्षर दुनिया की लक्ष्य-प्राप्ति की ओर तेजी से बढ़ना है और भारत को यह सुनिश्चित करना है कि देश के सभी नौजवान और प्रौढ़ों की एक बड़ी संख्या इस कौशल को प्राप्त कर सके, तो हमें अपनी पुरानी रणनीति की समीक्षा करनी होगी और कौन सी नीति कारगर रही व कौन निरर्थक, यह जानने के बाद देश के भीतर व बाहर के सफल उदाहरणों से सबक सीखना होगा। निस्संदेह, इसे एक सामूहिक प्रयास बनाना पड़ेगा, जिसमें सरकार की भूमिका अग्रणी हो, लेकिन सिविल सोसायटी और निजी क्षेत्र भी सक्रिय भूमिका निभाएं। इस स्पष्ट सोच के साथ कि शिक्षा की उत्प्रेरक भूमिका नए भारत को आकार दे सकती है, इसे एक सामाजिक मिशन बनाना पड़ेगा।

मुझे प्रसिद्ध तेलुगु कवि गुरजाड अप्पाराव की पंक्तियां याद आ रही हैं, जिसका आशय यह है कि ‘हमारे कदमों के नीचे की धरती देश नहीं है, बल्कि जो इस भूमि पर बसे हैं, वे लोग देश होते हैं।’ लोगों के जीवन की गुणवत्ता ही किसी देश का चरित्र बताती है। यह समानता है, जो यह तय करती है कि विकास के सुुफल का किस तरह वितरण हुआ? हम समावेशी विकास के प्रति समर्पित देश हैं। हम अपने कार्यक्रम इस तरह गढ़ रहे हैं, जिसमें कोई पीछे न छूट पाए। ऐसे में, यह स्वाभाविक है कि एक सहभागी, जीवंत और अधिक समावेशी लोकतंत्र के निर्माण में साक्षरता पहला जरूरी कदम है।

साक्षरता एक नागरिक को अपने उन अधिकारों के इस्तेमाल में सक्षम बनाती है, जो उसे संविधान से मिले हुए हैं। यह देखा गया है कि गरीबी, शिशु मृत्यु-दर, जनसंख्या-वृद्धि , लैंगिक गैर-बराबरी जैसी समस्याओं से शिक्षित समाज बेहतर तरीके से निपटते हैं। भारतीय परिप्रेक्ष्य में साक्षरता हमारे देश व समाज के वंचित तबकों के सशक्तीकरण और उनके जीवन स्तर को सुधारने में अहम भूमिका निभा सकती है। सार्वभौमिक साक्षरता के लक्ष्य को हासिल करने के लिए हमें अपनी द्वीपक्षीय रणनीति जारी रखनी पड़ेगी। एक, हमें प्री-प्राइमरी शिक्षा और स्कूली शिक्षा की गुणवत्ता सुधारनी होगी, ताकि हमारे सभी स्नातकों के पास आवश्यक साक्षरता कौशल हो। दूसरी, उन तमाम लोगों को सीखने के अवसर दिए जाने चाहिए, जिन्होंने स्कूल का मुंह नहीं देखा या जिन्हें बीच में किन्हीं वजहों से स्कूल छोड़ना पड़ा। हमें उन नौजवानों व प्रौढ़ों को भी ये मौके देने होंगे, जिन्हें अपनी आजीविका के अवसरों के विस्तार के लिए बुनियादी कौशल हासिल करने की जरूरत है।

दिल्ली: स्कूली शिक्षा, साक्षरता बजट में कटौती

आर्थिक मंदी के मद्देनजर खर्च में कटौती करने वित्तीय साक्षरता में सबक के लिए सरकार ने स्कूली शिक्षा एवं साक्षरता के 45,000 करोड़ रुपए के बजट में करीब सात प्रतिशत की कटौती की है।

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नई दिल्ली : आर्थिक मंदी के मद्देनजर खर्च में कटौती करने के लिए सरकार ने स्कूली शिक्षा एवं साक्षरता के 45,000 करोड़ रुपए के बजट में करीब सात प्रतिशत की कटौती की है। मानव संसाधन विकास मंत्रालय के सूत्रों ने बताया कि इस वित्त वर्ष के लिए 45,969 करोड़ रूपये के बजट में 3,240 करोड़ रूपये की कटौती की जा रही है।
हालांकि यह कदम आश्चर्यजनक है क्योंकि स्कूली शिक्षा और साक्षरता विभाग ने चालू वित्त वर्ष में संसाधनों का अच्छा उपयोग किया है। इससे पहले के वित्त वर्ष के बजट आवंटन में शिक्षा क्षेत्र के बजट में 18 प्रतिशत की वृद्धि की गई थी और योजना आवंटन 61,427 करोड़ रूपये का था। इसमें सर्व शिक्षा अभियान के लिए आवंटन में 22 प्रतिशत की वृद्धि की गई।
सू़त्रों ने कहा कि अब सात प्रतिशत कटौती करने से सर्व शिक्षा अभियान पर करीब 20 प्रतिशत का प्रभाव पड़ सकता है। उन्होंने कहा कि उच्च शिक्षा के बजट में भी 13 प्रतिशत की कटौती की गई है। (एजेंसी)

‘डिजिटल समावेशन वित्‍तीय समावेशन की बुनियाद है’ – श्री रविशंकर प्रसाद

संयुक्‍त राष्‍ट्र द्वारा ‘वित्‍तीय समावेशन’ पर आयोजित सम्‍मेलन में केन्‍द्रीय इलेक्‍ट्रॉनिक्‍स एवं सूचना प्रौद्योगिकी तथा विधि एवं न्‍याय मंत्री श्री रवि शंकर प्रसाद ने कहा, ‘डिजिटल वित्तीय साक्षरता में सबक समावेशन वित्‍तीय समावेशन की बुनियाद है। जहां तक डिजिटल प्‍लेटफॉर्म का सवाल है, प्रतिबद्धता के लिए हमारा कुछ विशिष्‍ट मूलभूत दृष्टिकोण है। सबसे पहले, हम विश्‍व में डिजिटल क्रांति के क्षेत्र में अग्रणी बनना चाहते हैं। हमारी इस पहल की दूसरी महत्‍वपूर्ण विशेषता यह है कि हम केवल भारत का डिजिटीकरण ही नहीं करना चाहते, बल्कि हम एक ऐसी प्रौद्योगिकी तैयार करना चाहते हैं, जो बदलावकारी हो, जो भारत के साथ-साथ भारतवासियों को भी सशक्‍त बनाए।’

श्री रविशंकर प्रसाद ने कहा, ‘यह युग सूचना का युग है और सूचना ही शक्ति है। यह युग प्रौद्योगिकी का युग है और प्रौद्योगिकी ही शक्ति है तथा इस प्रौद्योगिकी को भारत को आवश्‍यक तौर पर सशक्‍त बनाना चाहिए।’ हम एक डिजिटल व्‍यवस्‍था भी तैयार करना चाहते हैं, जो डिजिटल समावेशन का मार्ग प्रशस्‍त करे। डिजिटल इंडिया, गरीबों और वंचितों के प्रति ज्‍यादा महत्‍वपूर्ण है। हम डिजिटल इंडिया, मेक इन इंडिया, स्‍टार्ट अप इंडिया, स्‍मार्ट सिटीस, स्किल इंडिया जैसे अनेक परिवर्तनकारी कदम उठा रहे हैं। ये सभी प्रौद्योगिकी आधारित कार्यक्रम हैं, डिजिटल समावेशन इनके बीच समान कड़ी होना चाहिए।’

श्री रविशंकर प्रसाद ने अपनी बात समाप्‍त करते हुए कहा, ‘डिजिटल समावेशन की बात करते समय तीन और बातों को ध्‍यान में रखना आवश्‍यक है। पहला, प्रौद्योगिकी आवश्‍यक रूप से किफायती होनी चाहिए, दूसरा, प्रौद्योगिकी समावेशन का मार्ग प्रशस्‍त करने वाली होनी चाहिए और तीसरा, प्रौद्योगिकी विकासात्‍मक होनी चाहिए।’

दुनिया भर में वित्‍तीय समावेशन के विशालतम कार्यक्रमों में से एक प्रधानमंत्री जन धन योजना (पीएमजेडीवाई) के तीन वर्ष पूरे होने के बाद आज वित्‍तीय समावेशनों, पहुंच और प्रौद्योगिकियों में नवाचारों की पहल करने संबंधी भारत की मिसाल अन्‍य देशों के लिए महत्‍वपूर्ण सबक उपलब्‍ध करा सकती है।

दिन भर के इस सम्‍मेलन में भौतिक पहुंच और वित्‍तीय समावेशन के बुनियादी ढांचे, अधिकतम वित्तीय साक्षरता में सबक वित्‍तीय पहुंच और महिलाओं तथा समाज के हाशिये पर मौजूद लोगों के समूहों के लिए साक्षरता तथा भविष्‍य की राह तय करने के लिए प्रौद्योगिकी और नवाचार के इस्‍तेमाल पर ध्‍यान केन्द्रित किया गया।

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Newspapers Association of India

The objective of NAI is to highlight the problems which have been plaguing the small and medium newspaper industry for the past so many years. A common platform at the national level was created for the members, to establish personal Contact with each other and have interactions on related problems and take up the same, with concerned authorities, on a collective basis.

विपरीत परिस्थितियां अक्सर हमें नई दिशा की ओर धकेलती हैं

प्रतिकूलता को एक प्रतिकूल भाग्य, घटना या भाग्य के रूप में परिभाषित किया जा सकता है; दुर्भाग्य, विपत्ति या संकट द्वारा चिह्नित एक स्थिति। यह अवश्यंभावी है कि हमारे जीवनकाल में, हम विपरीत परिस्थितियों और परिस्थितियों से गुजरेंगे, और इन परिस्थितियों को अनुग्रह और गरिमा के साथ गले लगाना सीखना हमारी व्यक्तिगत यात्राओं के लिए फायदेमंद हो सकता है। चरित्र की समृद्ध जड़ें तब विकसित की जा सकती हैं जब जीवन में आने वाली प्रतिकूल परिस्थितियों को गले लगाना सीखता है, जब कोई यह पूछना सीखता है कि उनके दुर्भाग्य से कौन से सबक प्राप्त किए जा सकते हैं और हर प्रतिकूलता का एक अलग और अनूठा सबक होता है जिसे केवल तभी सीखा जा सकता है जब विपत्ति को गले लगाया जाए।

अगर हमें कठिन परिस्थितियों से गुजरनी पड़ती है तो सबसे तो पहले हमें उस समय अपना धैर्य नहीं खोना चाहिए और हमें किसी भी कार्य को हिम्मत से काम लेना चाहिए। अगर आप कोई भी कार्य को धैर्य के साथ करते हैं तो वह कार्य हमेशा सफल होता है चाहे वह कितनी भी कठिनाई क्यों ना हो धैर्य और हिम्मत से किसी भी कार्य को किया जा सकता है कठिन से भी कठिन परिस्थितियों को भी हराया जा सकता है इसीलिए अगर आप किसी भी समस्या परिस्थिति में जूझ रहे हो तो हमें अपना धैर्य नहीं खोना चाहिए हमें उन परिस्थितियों का मिलकर सामना करना चाहिए। लोगों के असली रंग-असली दोस्त की सतह को देखने में सक्षम है। यद्यपि #प्रतिकूल परिस्थितियां दर्दनाक और कठिन हो सकती हैं, उन्हें भेष में आशीर्वाद के रूप में देखा और समझा वित्तीय साक्षरता में सबक जा सकता है, चाहे वह कितना भी स्वतंत्र क्यों न हो, आपको लोगों की आवश्यकता होगी और अक्सर सबसे प्रतिकूल समय में किसी के सच्चे दोस्त सामने आएंगे।

जब विपरीत परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है, तो व्यक्ति इस बात से अवगत होता है कि उसके बारे में बैठने और रोने से ज्यादा समाधान नहीं होगा, परिस्थितियों के लिए एक उपाय की तलाश करना रचनात्मक हो जाता है। जीवन में कैसी भी कठिन परिस्थिति का सामना करना पड़े, बिल्कुल न घबराएं। उन परिस्थितियों को चुनौती समझकर निरंतर आगे बढ़ते रहें। समस्याएं सुलझाने का प्रयास करें। धीरे-धीरे परिस्थितियां अनुकूल हो जाएंगी। जो लोग चुनौतियों का सामना करते हैं, वही जीवन में सफल होकर समाज के समक्ष लीडर बनकर सामने आते हैं।

प्रतिकूलता अच्छे भाग्य से बेहतर शिक्षक है। सबसे बड़ी विपत्ति के तहत, अपने लिए और दूसरों के लिए – अच्छा करने की सबसे बड़ी क्षमता मौजूद है। विपरीत परिस्थितियाँ अक्सर हमें नई दिशा की ओर धकेलती हैं। विपत्ति का सबसे बड़ा लाभ यह है कि यह हमें हमारी शालीनता से हिला देती है। यह हमारे सामने बड़ी चुनौतियां लाता है और सिखाता है कि उनसे कैसे निपटना है। यह एक ‘वेक-अप कॉल’ देता है। तो, हर प्रतिकूलता एक अवसर है न कि #अभिशाप या सजा। प्रतिकूलता तेज हवा की तरह है। यह हम सब से आंसू बहाता है, लेकिन जो चीजें फाड़ी नहीं जा सकतीं, हम खुद को वैसे ही देखते हैं जैसे हम वास्तव में हैं। महान लोग विपत्ति को एक अवसर के रूप में देखते हैं, और वे जानते हैं कि वे कुछ सीख सकते हैं। वे कठिनाई का पीछा करते हैं और इसे ठीक करने के लिए अंतहीन काम करते हैं। वे हार नहीं मानते हैं और वे अपने और दूसरों के लिए कठिन समय में सबसे बड़ी क्षमता पैदा करते हैं।

भारत के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान गांधी जी ने उदाहरण पेश किया। उन्होंने गिरफ्तारी का साहस किया और कई बार भूख से मर गए, बस यह सुनिश्चित करने के लिए कि लोगों का मनोबल न गिरे और उन्हें तब भी प्रेरित रखा जाए जब अंग्रेज असंतोष और विरोध करने वाले लोगों को बेरहमी से दबा रहे थे। यह नमक सत्याग्रह और भारत छोड़ो आंदोलन की सफलता की कुंजी थी। उन्होंने न केवल विपरीत परिस्थितियों का सामना किया, बल्कि इस समय में उनके कार्य भारत के संघर्ष के क्षणों को परिभाषित कर रहे थे। आज हम जिस स्वतंत्रता का आनंद ले रहे हैं, उसका श्रेय प्रतिकूल परिस्थितियों में उसके कार्यों को दिया जा सकता है।

महान लोग विपत्ति को एक अवसर के रूप में देखते हैं, और वे जानते हैं कि वे कुछ सीख सकते हैं। वे कठिनाई का पीछा करते हैं और इसे ठीक करने के लिए अंतहीन काम करते हैं। वे हार नहीं मानते हैं और वे अपने और दूसरों के लिए कठिन समय में सबसे बड़ी क्षमता पैदा करते हैं। जो लोग #परिस्थितियों के आगे हार मानकर झुक जाते हैं, वे जीवन में कभी सफलता प्राप्त नहीं कर पाते। कुछ ही दिनों में वे गुमनामी में खो जाते हैं, कोई उन्हें याद नहीं करता। सफल होना हो तो हर मुसीबत का डटकर सामना करो। खूब मेहनत करो। बार-बार असफल होने के बावजूद अपना कर्म करते रहो, एक दिन अवश्य मुकाम हासिल होगा। उन्होंने सचिन तेंदुलकर, अमिताभ बच्चन, धीरूभाई अम्बानी जैसी शख्सियतों का उदाहरण देते हुए कहा कि ये लोग परिस्थितियों से विचलित होने के बजाय उनका सामना करते हुए आगे बढ़े और अपने-अपने क्षेत्र में सफल रहे। यदि हार मानकर बैठ जाते तो कोई उन्हें जानता भी नहीं।

कोई भी व्यक्ति विपत्ति का सामना किए बिना जीवन से नहीं गुजरता; यह जीवन का एक अभिन्न अंग है। विपत्ति को हमारे लिए शिक्षक बनने दो। यह चरित्र का निर्माण करेगा और हमारे दृढ़ संकल्प की परीक्षा लेगा। लेकिन, अंत में, यह एक को मजबूत बना देगा। हमें उन कठिनाइयों से सीखने के लिए समय निकालना सुनिश्चित करना चाहिए जो जीवन हमारे रास्ते भेजना सुनिश्चित करती हैं। अन्यथा, विफलता हमें आगे बढ़ने और इसका उपयोग हमें उच्च आयामों तक ले जाने के बजाय परिभाषित करेगी। डर और आत्म-संदेह के कारण के बजाय इसे एक अवसर के रूप में लें।

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