आख़िर डॉलर कैसे बना दुनिया की सबसे मज़बूत मुद्रा ?
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BY- THE FIRE TEAM
दुनिया में डॉलर के वर्चस्व को चुनौती देने के लिए रूस और भारत अब साथ खड़े दिख रहे हैं. यही वजह है कि ये दोनों देश लगातार कई समझौतों पर हस्ताक्षर करते जा रहे हैं.
रूस और भारत के आर्थिक संबंधों में भरोसा इस क़दर बढ़ रहा है कि रूस से दूसरे सबसे बड़े बैंक वीटीबी के चेयरमैन ने भारत से व्यापार में यहां की मुद्रा रुपया से लेन-देन की घोषणा की है. यानी भारत और रूस रुपये और रूबल में व्यापार करेंगे.
रूस की सरकारी समाचार एजेंसी स्पूतनिक ने वीटीबी बैंक के चेयरमैन एंड्र्यू कोस्टिन का बयान छापा है, जिसमें उन्होंने कहा है कि रूसी बैंक रुपए और रूबल में व्यापार करने के लिए तैयार हैं.
उन्होंने कहा कि दोनों देशों को इस तरह की व्यवस्था बनानी चाहिए जिससे अपनी ही मुद्रा में कारोबार हो सके.
एंड्र्यू ने कहा कि अगर सब कुछ ठीक रहा तो महज़ दो सालों में अच्छे नतीजे आ सकते हैं. उन्होंने कहा कि स्थानीय मुद्रा में व्यापार से द्विपक्षीय संबंध और मज़बूत होंगे.
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कोस्टिन रूसी राष्ट्रपति पुतिन के साथ भारत दौरे पर आए थे. भारत और रूस में 2025 तक वार्षिक व्यापार 10 अरब डॉलर से बढ़ाकर 30 अरब डॉलर करने पर सहमति बनी है.
वित्त मंत्रालय और रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया तेल के आयात में रुपए और तेल के बदले अन्य सामान देने के विकल्प तलाश रहे हैं. भारत रूस, ईरान और वेनेज़ुएला की ओर इसे लेकर देख रहा है.
कहा जा रहा है, भारत वेनेज़ुएला को दवाइयों की आपूर्ति के बदले तेल ले सकता है.
इसके साथ ही वाणिज्य मंत्रालय ने रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया से चीन के साथ भी रुपए और यूआन में कारोबार करने के विकल्प को आज़माने के लिए कहा है.
भारत ऐसा विदेशी मुद्रा डॉलर और यूरो की बढ़ती क़ीमतों और उसकी कमी से निपटने के लिए करना चाहता है.
GETTY CREATIVE STOCK भारत-रूस रुपये और रूबल में व्यापार करने को तैयार हैं
दुनिया की सबसे मज़बूत मुद्रा डॉलर
विगत कुछ दिनों में जिस तरह से रुपया टुटा है वह एक आश्चर्य का विषय बन गया है.एक डॉलर की तुलना में रुपया 75 के क़रीब पहुंच गया है. आपको बता दें कि रुपए का मूल्य कम होता है तो आयात बिल बढ़ जाता है.
और इससे व्यापार घाटा बढ़ता है. भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल आयातक देश है और अपनी ज़रूरत का 60 फ़ीसदी तेल मध्य-पूर्व से आयात करता है.
भारत ने 2017-18 में रूस से 1.2 अरब डॉलर का कच्चा तेल और 3.5 अरब डॉलर के हीरे का आयात किया था. रूस भारत से चाय, कॉफ़ी, मिर्च, दवाई, ऑर्गेनिक केमिकल और मशीनरी उपकरण आयात करता है.
दोनों देशों ने 2025 तक द्विपक्षीय कारोबार 30 अरब डॉलर तक करने का फ़ैसला किया है.
2017-18 में दोनों देशों का द्विपक्षीय व्यापार 10.7 अरब डॉलर का था. रूस के साथ भारत का वार्षिक व्यापार घाटा 6.5 अरब डॉलर का है.
अमरीकी मुद्रा डॉलर की पहचान एक वैश्विक मुद्रा की बन गई है. अंतरराष्ट्रीय व्यापार में डॉलर और यूरो काफ़ी लोकप्रिय और स्वीकार्य हैं. दुनिया भर के केंद्रीय बैंकों में जो विदेशी मुद्रा भंडार होता है उसमें 64 फ़ीसदी अमरीकी डॉलर होते हैं.
ऐसे में डॉलर ख़ुद ही एक वैश्विक मुद्रा बन जाता है. डॉलर वैश्विक मुद्रा है यह उसकी मज़बूती और अमरीकी अर्थव्यवस्था की ताक़त का प्रतीक है.
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इंटरनेशनल स्टैंडर्ड ऑर्गेनाइज़ेशन लिस्ट के अनुसार दुनिया भर में कुल 185 करंसी हैं. हालांकि, इनमें से ज़्यादातर मुद्राओं का इस्तेमाल अपने देश के भीतर ही होता है.
कोई भी मुद्रा दुनिया भर में किस हद तक प्रचलित है यह उस देश की अर्थव्यवस्था और ताक़त पर निर्भर करता है.
दुनिया की दूसरी ताक़तवर मुद्रा यूरो है जो दुनिया भर के केंद्रीय बैंकों के विदेशी मुद्रा भंडार में 19.9 फ़ीसदी है.
ज़ाहिर है डॉलर की मज़बूती और उसकी स्वीकार्यता अमरीकी अर्थव्यवस्था की ताक़त को दर्शाती है. कुल डॉलर के 65 फ़ीसदी डॉलर का इस्तेमाल अमरीका के बाहर होता है.
दुनिया भर के 85 फ़ीसदी व्यापार में डॉलर की संलिप्तता है. दुनिया भर के 39 फ़ीसदी क़र्ज़ डॉलर में दिए जाते हैं. इसलिए विदेशी बैंकों को अंतरराष्ट्रीय व्यापार में डॉलर की ज़रूरत होती है.
डॉलर के मुकाबले फिर गिरा रुपया… अमेरिकी डॉलर आखिर इतना पावरफुल क्यों है, इसकी वजह जान लीजिए
Why American dollar is powerful: रुपये में मंगलवार को भी गिरावट जारी रही. डॉलर के मुकाबले रुपया 7 पैसे की गिरावट के साथ 80.05 के स्तर पर खुला. सोमवार को 16 पैसे की गिरावट दर्ज की गई थी. जानिए, आखिर अमेरिकी डॉलर इतना मजबूत क्यों है
रुपये में मंगलवार को भी गिरावट जारी रही. डॉलर (Dollar) के मुकाबले रुपया 7 पैसे की गिरावट के साथ 80.05 के स्तर पर खुला. सोमवार को 16 पैसे की गिरावट दर्ज की गई थी. कमजोर होता रुपया और मजबूत स्थिति में मौजूद डॉलर (Dollar vs Rupees), यह सवाल पैदा करता है कि आखिर अमेरिकी डॉलर इतना मजबूत क्यों है और दुनियाभर में दूसरी करंसी की तुलना अमेरिकी डॉलर से क्यों की जाती है. अमेरिकी डॉलर (American Dollar) के मजबूत होने की कई वजह हैं. जानिए, इनके बारे में…
प्रिंंस चार्ल्स ने 2013 में लादेन के परिवार से दान स्वीकार करने पर सहमति जताई थी.
इतना ही नहीं, दुनिया में सबसे ज्यादा सोना अमेरिका में निकलता है. ज्यादातर देश सोना खरीदने के लिए अमेरिका के सम्पर्क करते हैं. अमेरिका हमेशा उन देशों से भुगतान डॉलर में आख़िर डॉलर कैसे बना दुनिया की सबसे मज़बूत मुद्रा करने के लिए कहता है. मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, वर्तमान में 100 अमेरिकी डॉलर के करीब 900 करोड़ नोट चलन में हैं. इनमें से दो तिहाई दूसरे देशों में इस्तेमाल हो रहे हैं. इसलिए इसे पावरफुल करंसी कहा जाता है.
सिर्फ हथियार बनाने वाली ही नहीं, ईरान, इराक और अरब देशों में कच्चा तेल निकालने वाली कंपनियां भी ज्यादातर अमेरिका की ही हैं. ये सभी कंपनियां डॉलर में भुगतान करने को कहती हैं. यही वजह है कि डॉलर काफी पावरफुल और दुनिया की अंतरराष्ट्रीय करंसी कहा गया है.
दुनिया में पहली बार साल 1914 में फेडरल रिजर्व बैंक ने अमेरिकी डॉलर को छापा था. अगले 60 सालों के अंदर ही यह अंतरराष्ट्रीय मुद्रा बन गया. अमेरिकी डॉलर की नींव उस समय पड़ी जब ब्रिटेन को पीछे छोड़ते हुए अमेरिका दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की ओर तेजी से बढ़ रहा था.
जानें कैसे अमेरिकी डॉलर बना एक वैश्विक मुद्रा? (How U.S. Dollar Became Global Currency)
नमस्कार दोस्तो! स्वागत है आपका जानकारी ज़ोन में जहाँ हम विज्ञान, प्रौद्योगिकी, राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय राजनीति, अर्थव्यवस्था, ऑनलाइन कमाई तथा यात्रा एवं पर्यटन जैसे क्षेत्रों से महत्वपूर्ण एवं रोचक जानकारी आप तक लेकर आते हैं। आज इस लेख में चर्चा करेंगे आखिर कैसे अमेरिकी डॉलर दुनियाँ की सबसे मजबूत एवं एक वैश्विक मुद्रा बनी (How US Dollar became Global Currency) तथा पहली बार डॉलर तथा भारतीय रुपये की विनिमय दर (Exchange Rate) किस प्रकार तय की गई।
द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद का विश्व
साल 1939 में द्वितीय विश्वयुद्ध आरंभ हुआ तथा 1944 आते-आते जर्मनी तथा ध्रुवी शक्तियों के हारने के साथ समाप्त हुआ। द्वितीय विश्वयुद्ध में हार जर्मनी की अवश्य हुई थी, किन्तु आर्थिक रूप से लगभग सभी यूरोपीय देश बर्बाद हो चुके थे। केवल संयुक्त राज्य अमेरिका एक अकेला देश था, जो आर्थिक रूप से अन्य की तुलना में कम प्रभावित हुआ था, हाँलाकि अमेरिका मित्र राष्ट्रों को सहायता अवश्य दे रहा था परंतु विश्व युद्ध में अमेरिका सक्रिय रूप से भागीदार नहीं रहा।
ब्रिटेनवुड समझौता
द्वितीय विश्वयुद्ध की समाप्ति के बाद, जबकि लगभग सभी देश आर्थिक रूप से तबाह हो चुके थे दुनियाँ को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एक मौद्रिक नीति की आवश्यकता थी। परिणामस्वरूप 1944 में अमेरिका के ब्रिटेनवुड में 44 देशों के लगभग 730 प्रतिनिधियों ने एक सम्मेलन में हिस्सा लिया, जिसे ब्रिटेनवुड सम्मेलन का नाम दिया गया। इस सम्मेलन का मुख्य उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक संवर्द्धि दर को बढ़ाना तथा युद्ध के पश्चात हुए आर्थिक नुकसान से उभरना था।
समझौते में लिए गए मुख्य निर्णय
विश्वयुद्ध के बाद अमेरिका की आर्थिक स्थिति अन्य की तुलना में बेहतर थी अतः केवल अमेरिकी डॉलर ही विश्व में एक विश्वसनीय तथा स्थिर मुद्रा के रूप में सामनें थी। इसी को देखते हुए सोने को अमेरिकी डॉलर से सम्बद्ध कर दिया गया। यह निर्णय लिया गया कि, अमेरिकी फेडरल रिजर्व केवल तभी 1 डॉलर छाप सकेगा जब उसके पास 0.88 ग्राम सोना हो तथा यह भी तय हुआ कि, कोई भी देश 1 डॉलर देकर अमेरिकी फेडरल रिजर्व से 0.88 ग्राम सोना ले सकते हैं।
इस व्यवस्था को गोल्ड स्टेंडर्ड करेंसी एक्सचेंज सिस्टम कहा गया। इस प्रकार अमेरिकी डॉलर के वैश्विक मुद्रा अथवा वैश्विक रिजर्व मुद्रा बनने की शुरुआत हुई। इसके अतिरिक्त अन्य सभी देशों की मुद्राओं को भी अमेरिकी डॉलर से जोड़ दिया गया तथा उनके लिए भी मुद्रा छापने के लिए निर्धारित मात्रा में सोना या अमेरिकी डॉलर रिजर्व में होना अनिवार्य किया गया। उदाहरणार्थ भारत को 1 रुपया जारी करने के लिए अपने विदेशी मुद्रा भंडार में 0.30 डॉलर या 0.26 ग्राम सोना रखना अनिवार्य किया गया। अब कोई भी देश मनमाने ढंग से मुद्रा नहीं छाप सकता था।
अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इस व्यवस्था का क्रियान्वयन करनें के लिए अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) की स्थापना की गई। सभी सदस्य देशों के लिए उनकी अर्थव्यवस्था के अनुसार मुद्रा कोष में मुद्रा जमा करनें का प्रावधान किया गया और इस संस्था ने अपनी एक नई मुद्रा स्पेशल ड्रॉइंग राइट (SDR) की शुरुआत की, जिसकी उस समय कीमत एक अमेरिकी डॉलर के समान थी।
गोल्ड स्टेंडर्ड करेंसी एक्सचेंज सिस्टम की विफलता
द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद विश्व में दो बड़ी शक्तियाँ अमेरिका आख़िर डॉलर कैसे बना दुनिया की सबसे मज़बूत मुद्रा तथा सोवियत संघ के रूप में समनें आई, दोनों देशों के मध्य युद्ध जैसे हालत बनने लगे, जिस कारण दोनों में हथियारों के उत्पादन को लेकर होड़ मच गई। इसके अतिरिक्त वियतनाम युद्ध आख़िर डॉलर कैसे बना दुनिया की सबसे मज़बूत मुद्रा के चलते भी अमेरिका को अधिक हथियारों एवं रक्षा उपकरणों की आवश्यकता थी।
हथियारों के अधिक उत्पादन के लिए अमेरिका नें रक्षा क्षेत्र में सब्सिडी देना शुरू कर दिया तथा मनमाने ढंग से डॉलर छापने लगा लिहाज़ा महँगाई बढ़ने लगी और सोने के मुकाबले डॉलर अधिक हो जाने के कारण सोना महँगा हो गया। चूँकि ब्रिटेनवुड समझौते के तहत अमेरिका एक डॉलर के बदले 0.88 ग्राम सोना देने के लिए बाध्य था, जबकि बाज़ार में 0.88 ग्राम सोने की कीमत 1 डॉलर से अधिक थी अतः अन्य देशों ने अपने विदेशी मुद्रा भंडार से डॉलर निकालकर उसके बदले आख़िर डॉलर कैसे बना दुनिया की सबसे मज़बूत मुद्रा अमेरिका से सोना देने की माँग की परिणामस्वरूप अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन ने ब्रिटेनवुड समझौते को समाप्त कर दिया।
अमेरिका-अरब समझौता
निक्सन के इस फैसले से विश्वभर में डॉलर के प्रति जो विश्वसनीयता थी वो खत्म होने की कगार पर आ गयी। किन्तु अभी भी अधिकांश देशों के पास विदेशी मुद्रा के रूप में डॉलर अधिक मात्रा में रखा था। डॉलर की खत्म हो चुकी विश्वसनीयता को पुनः ठीक करनें के उद्देश्य से रिचर्ड निक्सन ने सऊदी अरब के साथ एक समझौता किया कि, वो अपने कच्चे तेल का व्यापार अमेरीकी डॉलर में करे बदले में अमेरिका उसके तेल क्षेत्रों को संरक्षण देगा।
इसके अतिरिक्त सऊदी अरब में अमेरिकी कंपनियों द्वारा इंफ्रास्ट्रक्चर निर्माण का कार्य किया जाएगा, जिसका भुगतान साउदी अरब तेल व्यापार से आए डॉलर से कर सकेगा। चूँकि इसी दौरान अरब-इजराइल यद्ध में अरब देश बुरी तरह हार चुके थे अतः उन्होंने अमेरिका का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। यहाँ से अमेरिकी डॉलर पुनः शक्तिशाली होने लगा चूँकि सभी देशों को अरब देशों से तेल खरीदनें के लिए अमेरिकी डॉलर की आवश्यकता थी अतः सभी देशों ने पुनः अमेरिकी डॉलर को जमा करना शुरू कर दिया तथा डॉलर धीरे-धीरे मजबूत होना शुरू हुआ और इसकी वर्तमान स्थिति हमारे सामनें है।
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Dollar vs Rupee : गिरते रुपये का आखिर क्या करे सरकार? वेट एंड वॉच की रणनीति से होगा फायदा?
Dollar vs Rupee : महामारी के दौरान एक्सपोर्ट बढ़ा था। लेकिन अब ऐसा नहीं हो रहा। सितंबर में आख़िर डॉलर कैसे बना दुनिया की सबसे मज़बूत मुद्रा तो एक्सपोर्ट घट भी गया। यही हाल रहा तो साल 2022-23 में चालू खाते का घाटा जीडीपी के 4 प्रतिशत तक जा सकता है। इससे रुपये में और गिरावट आ सकती है।
Dollar vs आख़िर डॉलर कैसे बना दुनिया की सबसे मज़बूत मुद्रा Rupee : गिरते रुपये को बचाने के लिए अपनायी जाए यह रणनीति
हाइलाइट्स
- यूएस डॉलर के मुकाबले बीते हफ्ते 83.26 तक चला गया रुपया
- यूएड फेड के ब्याज दरें बढ़ाने से मजबूत हो रहा डॉलर
- व्यापार घाटा बढ़ा तो रुपये में और आएगी गिरावट
- अभी दुनिया में 80 फीसदी से ज्यादा व्यापार डॉलर में हो रहा है।
- तमाम देशों के केंद्रीय बैंक जो विदेशी मुद्रा भंडार रखते हैं, उसका करीब 65 प्रतिशत हिस्सा डॉलर में है।
- रुपया इस साल अब तक 10 प्रतिशत से गिरा है तो जापानी येन में 22 प्रतिशत से ज्यादा नरमी आ चुकी है।
- साउथ कोरियन वॉन और ब्रिटिश पौंड 17-17 प्रतिशत गिरे हैं।
- यूरो भी इस साल अब तक 14 प्रतिशत से ज्यादा गिर चुका है।
- चाइनीज रेनमिबी की वैल्यू 12 प्रतिशत घट चुकी है।
क्यों मजबूत हो रहा डॉलर
यूक्रेन युद्ध के चलते पूरा यूरोप बेहाल है। जर्मनी से लेकर फ्रांस, ब्रिटेन और तुर्की तक में महंगाई आसमान छू रही है। दुनिया में एक बार फिर मंदी का खतरा जताया जा रहा है। इकॉनमी से जुड़ा रिस्क जब भी बढ़ता है, निवेशक सुरक्षित माने जाने वाले डॉलर की ओर भागते हैं। एक और फैक्टर है, अमेरिकी फेडरल रिजर्व ब्याज दर बढ़ा रहा है। वह इस साल मार्च से अपना पॉलिसी रेट 3 प्रतिशत बढ़ा चुका है। इससे विदेशी निवेशक दूसरे इमर्जिंग मार्केट्स और भारत से पैसे निकालने लगे हैं, क्योंकि अमेरिका में उन्हें रिस्क फ्री बेहतर रिटर्न दिख रहा है।
चालू खाता घाटा
रुपये पर दबाव बढ़ने के पीछे एक और फैक्टर है भारत का बढ़ता करंट एकाउंट डेफिसिट। जब निर्यात से होने वाली कमाई के मुकाबले आयात पर ज्यादा पैसा खर्च करना पड़ता आख़िर डॉलर कैसे बना दुनिया की सबसे मज़बूत मुद्रा आख़िर डॉलर कैसे बना दुनिया की सबसे मज़बूत मुद्रा है, तो करंट एकाउंट डेफिसिट की स्थिति बनती है। कोविड महामारी के दौरान भारत से एक्सपोर्ट बढ़ा था। लेकिन अब ऐसा नहीं हो रहा। सितंबर में तो एक्सपोर्ट घट भी गया। अगर यही हाल रहा तो साल 2022-23 में चालू खाते का यह घाटा जीडीपी के 4 प्रतिशत तक भी जा सकता है। यह पिछले 10 वर्षों का सबसे ऊंचा स्तर होगा। क्रूड ऑयल इंपोर्ट के चलते भी चालू खाते का घाटा और बढ़ने का खतरा है। क्रूड ऑयल निर्यात करने वाले देशों ने तय किया है कि वे नवंबर से उत्पादन 20 लाख बैरल प्रतिदिन घटाएंगे। इससे दाम और चढ़ेगा।
क्या करे भारत?
अब आते हैं इस सवाल पर कि रुपये के मामले में भारत क्या कर सकता है। विकसित देशों में महंगाई चार दशकों के ऊंचे स्तर पर है। वहां मंदी आने का खतरा बढ़ गया है। लिहाजा वहां भारत की वस्तुओं और सेवाओं की डिमांड घटी है। देश में डिमांड बढ़ाकर इसकी भरपाई हो सकती है, लेकिन कुछ हद तक ही। ऐसे में देखते हैं कि भारत सरकार के सामने क्या विकल्प हैं और वे कितने प्रभावी हो सकते हैं।
1. पहला उपाय है देश में चीजों और सेवाओं की डिमांड बढ़ाने के लिए टैक्स घटाया जाए। इससे चीजों और सेवाओं की डिमांड बढ़ेगी, इकॉनमी स्टेबल होगी। लेकिन टैक्स घटने से सरकार के रेवेन्यू पर असर पड़ेगा। वैसे भी आम बजट के मुताबिक, वित्त वर्ष 2022-23 में राजकोषीय घाटा जीडीपी के 6.4 प्रतिशत के आसपास रहेगा। अभी कर्ज का स्तर भी बहुत बढ़ गया है। सरकारी कर्ज और जीडीपी का रेशियो लगभग 90 प्रतिशत हो चुका है। इन हालात को देखते हुए सरकार के पास राजकोषीय मदद देने की गुंजाइश बहुत कम रह गई है।
2. दूसरा उपाय यह है कि डॉलर की बढ़ती डिमांड का दबाव घटाने के लिए आरबीआई डॉलर बेचे। आरबीआई ने ऐसा किया भी है। लेकिन इससे बात नहीं बनी, उलटे सालभर में विदेशी मुद्रा भंडार करीब 110 अरब डॉलर घट गया। करंट एकाउंट डेफिसिट अगर मामूली होता तो डॉलर बेचने से कुछ मदद मिल सकती थी। लेकिन मामला ऐसा है नहीं।
3. तीसरा उपाय है, अमेरिका में ब्याज दरें बढ़ रही हैं तो आरबीआई भी ब्याज दरें बढ़ाता जाए। लेकिन दिक्कत यह है कि अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने ब्याज दर और 125 बेसिस पॉइंट बढ़ाने का संकेत दिया है। भारत में इस तरह के इजाफे की गुंजाइश नहीं है क्योंकि इससे इकॉनमिक रिकवरी को बड़ा झटका लग सकता है।
Rupee Vs Dollar: डॉलर के आगे दुबला होता जा रहा रुपया! गिरावट का बनाया नया रिकॉर्ड, 83 के आंकड़े को किया पार
लोड न ले आरबीआई
ऐसे में ठीक यही लग रहा है कि रुपये को सहारा आख़िर डॉलर कैसे बना दुनिया की सबसे मज़बूत मुद्रा देने के लिए विदेशी मुद्रा भंडार का इस्तेमाल न किया जाए। आरबीआई रुपये की चाल में तब तक कोई दखल न दे, जब तक कि इसमें अचानक बहुत तेज गिरावट न आए। बाजार के हिसाब से यह जहां तक गिरता है, गिरने दे। इस रणनीति के फायदे भी हैं।
1. एक फायदा तो यही है कि विदेशी मुद्रा भंडार के इतने बड़े इस्तेमाल की जरूरत नहीं रहेगी। फॉरेन एक्सचेंज बचा रहेगा तो अचानक लगने वाले किसी भी बाहरी झटके से इकॉनमी को बचाने में काम आएगा।
2. दूसरी बात, रुपया नरम रहेगा तो भारतीय निर्यात को फायदा मिलेगा।
3. ट्रेड डेफिसिट और आख़िर डॉलर कैसे बना दुनिया की सबसे मज़बूत मुद्रा करंट एकाउंट डेफिसिट घटाने के लिए आयात घटाने के साथ निर्यात बढ़ाना भी जरूरी है।
4. वैश्विक बाजार में चीन का दबदबा कुछ घटता दिख रहा है। उस जगह को भरने के लिए सरकार को निर्यात पर सब्सिडी देने जैसे कदम उठाने होंगे। लेकिन रुपये में कमजोरी इस मामले में कहीं ज्यादा कारगर साबित हो सकती है।
कुल मिलाकर इस स्ट्रैटेजी में फायदे ज्यादा हैं, नुकसान कम। अच्छी आख़िर डॉलर कैसे बना दुनिया की सबसे मज़बूत मुद्रा बात यह है कि आरबीआई अब इसी राह पर आ चुका है। ध्यान केवल इतना रखना होगा कि रुपया इतना कमजोर न हो जाए कि इंपोर्ट बिल बहुत ज्यादा बढ़ जाए।
Dollar vs INR Today: राहत! रिकॉर्ड लो लेवल से लौटा रुपया, 25 पैसे हुआ मजबूत, जानें 1 डॉलर कितने के है बराबर
Dollar vs INR Today: विदेशी बाजारों में अमेरिकी मुद्रा में गिरावट के कारण घरेलू मुद्रा में सुधार आया है. पिछले कारोबारी सत्र में रुपया 60 पैसे की गिरावट के साथ पहली बार 83 रुपये के स्तर से नीचे चला गया था.
Dollar vs INR Today: अमेरिकी मुद् यूएस डॉलर के मुकाबले रुपया रिकॉर्ड निचले लेवल से उबरते हुए गुरुवार को 25 पैसे चढ़कर 82.75 प्रति डॉलर (अस्थायी) पर बंद हुआ. विदेशी बाजारों में अमेरिकी मुद्रा में गिरावट के कारण घरेलू मुद्रा में सुधार आया है. भाषा की खबर के मुताबिक, विदेशी मुद्रा कारोबारियों के मुताबिक, शेयर बाजार में आखिरी घंटे में हुए कारोबार से भी रुपये को सपोर्ट मिला. हालांकि, इंटरनेशनल मार्केट में कच्चे तेल की कीमतों में तेजी ने रुपये में मजबूती (Dollar vs INR) को लिमिट में ला दिया.
पहली बार 83 रुपये के स्तर से नीचे चला गया था
खबर के मुताबिक, अंतर-बैंक विदेशी मुद्रा विनिमय बाजार में रुपया 83.05 पर कमजोर खुला और बाद में 83.29 के निचले लेवल तक चला गया. कारोबार के दौरान यह 82.72 के उच्चतम स्तर पर भी गया. आखिर में रुपया गिरावट से उबरते हुए बुधवार के बंद भाव के मुकाबले 25 पैसे मजबूत होकर 82.75 प्रति डॉलर पर बंद हुआ. इससे पिछले कारोबारी सत्र में रुपया 60 पैसे की गिरावट के साथ पहली बार 83 रुपये के स्तर (Dollar vs INR) से नीचे चला गया.
डॉलर सूचकांक का लेवल
दुनिया की छह प्रमुख मुद्राओं के मुकाबले डॉलर की मजबूती को आंकने वाला डॉलर सूचकांक 0.17 प्रतिशत गिरकर 112.79 पर आ गया. इधर, बीएसई सेंसेक्स 95.71 अंक चढ़कर 59,202.90 और एनएसई निफ्टी 51.70 अंक की बढ़त के साथ 17,563.95 अंक पर बंद हुआ. इसके अलावा इंटरनेशनल ऑयल स्टैंडर्ड ब्रेंट क्रूड वायदा 1.17 प्रतिशत बढ़कर 93.49 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गया.
विदेशी संस्थागत निवेशक ने खूब बिक्री की
शेयर बाजार के आंकड़ों के मुताबिक, विदेशी संस्थागत निवेशक पूंजी बाजार में शुद्ध बिकवाल रहे. उन्होंने बुधवार को 453.91 करोड़ रुपये मूल्य के शेयर बेचे. पिछले कई समय से डॉलर के मुकाबले रुपया (Dollar vs INR) कमजोर होता गया है. सरकार के लिए इसकी गिरावट को रोकना एक चुनौती है. बाकी करेंसी के मुकाबले अमेरिकी डॉलर में हाल के दिनों में दुनियाभर में लगातार मजबूती देखने को मिली है.
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