बांग्लादेश, अफ्रीकी देशों के साथ रुपये में कारोबार की संभावना तलाश रहे बैंक
सूत्रों ने कहा कि पड़ोसी देश बांग्लादेश के अलावा मिस्र जैसे कुछ अफ्रीकी देशों के साथ व्यापार रुपये में ही संचालित करने की तैयारी में बैंक जुटे हुए हैं। दरअसल रुपये में विदेशी कारोबार होने से विदेशी मुद्रा विनिमय बाजार में होने वाली उठापटक के असर से बचने में मदद मिलेगी।
सूत्रों ने कहा कि वित्त मंत्रालय की हाल में हुई एक बैठक में सभी हितधारकों से कहा गया कि वे अन्य देशों के साथ भी रुपये में विदेशी कारोबार की सुविधा देने की संभावना तलाशें।
फिलहाल भारत से रुपये में विदेशी कारोबार रूस, मॉरीशस एवं श्रीलंका के साथ हो रहा है जिसके लिए बैंकों के विशेष रुपया वोस्ट्रो खाते (एसआरवीए) का इस्तेमाल किया जाता है। अब तक 11 बैंकों ने इस तरह के 18 खाते खोले हैं।
वाणिज्य मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, भारत ने पिछले वित्त वर्ष में मिस्र से 352 करोड़ डॉलर, अल्जीरिया से 100 करोड़ डॉलर और अंगोला से 272 करोड़ डॉलर की वस्तुओं का आयात किया था। इसी तरह बांग्लादेश से भारत ने वित्त वर्ष 2021-22 में 197 करोड़ डॉलर का आयात किया था।
लिस्टिंग के दिन 90% का मुनाफा और अब 70% टूटा भाव, अब लगातार निवेशक बेच रहे शेयर
कंपनी के शेयर आज मामूली गिरावट के साथ 599.90 रुपये पर बंद हुए। पिछले पांच ट्रेडिंग डेज में यह शेयर लगभग 2% तक टूटा है। वहीं, इस साल यह शेयर 50.08% गिर गया है।
Nazara Technologies Share Crash: नज़ारा टेक्नोलॉजीज (Nazara Technologies Ltd share) के शेयर पिछले कई ट्रेडिंग सेशंस में लगातार अपने निवेशकों को निराश कर रहा है। कंपनी के शेयर आज मामूली गिरावट के साथ 599.90 रुपये पर बंद हुए। पिछले पांच ट्रेडिंग डेज में यह शेयर लगभग 2% तक टूटा है। वहीं, इस साल नज़ारा टेक का शेयर 50.08% गिर गया है। बता दें कि पिछले साल कंपनी का आईपीओ आया था, तब कंपनी के शेयरों ने लिस्टिंग पर अपने निवेशकों को लगभग 90% तक का मुनाफा कराया था।
कंपनी के शेयरों का हाल
नज़ारा टेक्नोलॉजीज का स्टॉक 22 जून 2022 को 484 रुपये के 52-वीक के निचले स्तर और 11 अक्टूबर, 2021 को 1,677 रुपये के रिकॉर्ड हाई पर पहुंच गया था। रिकॉर्ड हाई से शेयर 64% टूट चुका है। वहीं, इस साल YTD में यह शेयर अब तक 50% गिर गया है। इस दौरान यह 1201.78 रुपये से टूटकर मौजूदा शेयर प्राइस पर आ गया है।
1 अरब डॉलर की हो गई यह भारतीय कंपनी, 6 महीने में निवेशकों के पैसे भी डबल, ₹198 के पार शेयर
मार्च 2021 में आया था आईपीओ
ऑनलाइन गेमिंग कंपनी नजारा टेक का आईपीओ पिछले साल मार्च में आया था। Nazara Technologies के आईपीओ की 79% प्रीमियम पर शानदार लिस्टिंग हुई थी। इस आईपीओ का इश्यू प्राइस 1101 रुपये था इसके मुकाबले NSE पर 1926.75 रुपये और BSE पर 1971 पर लिस्टिंग हुई थी। वहीं, लिस्टिंग प्राइस से कंपनी के शेयर लगभग 70% तक गिर गया।
कंपनी के बारे में
बता दें कि नज़ारा टेक्नोलॉजीज मुख्य रूप से भारत और दुनिया भर में कंज्यूमर बेस्ड गेम/अन्य सामग्री की सब्सक्राइबन/डाउनलोड करने और डिजिटल सेवाएं देती है। बता दें कि कंपनी के प्रमुख गेम्स में छोटा भीम, ऑगी एंड कॉकरोचेस, कैरम क्लैश, वर्ल्ड टेबल टेनिक चैम्पियनशिप, वर्ल्ड क्रिकेट चैम्पियनशिप, मोटू-पतलू आदि शामिल हैं। हाल ही में कंपनी ने एब्सोल्यूट स्पोर्ट्स का अधिग्रहण पूरा कर लिया है। इस अधिग्रहण के साथ एब्सोल्यूट स्पोर्ट्स में कंपनी की इक्विटी होल्डिंग 65.00% से बढ़कर 70.71% हो गई।
जानिए डिजिटल करेंसी और पेमेंट्स एप में अंतर, क्या कहते हैं जानकार
by बिजनेस वर्ल्ड ब्यूरो ।।
Published - Saturday, 17 December, 2022
हाल ही में भारतीय रिजर्व बैंक ने डिजिटल करेंसी लॉन्च की है. सेंट्रल बैंक द्वारा जारी की गई यह डिजिटल करेंसी एक तरह का कानूनी दस्तावेज है. डिजिटल करेंसी एक तरह की विदेशी मुद्रा बाजार का ट्रेडिंग समय सामान्य करेंसी की तरह ही है और इसे एक दूसरे को ट्रांसफर भी किया जा सकता है. डिजिटल करेंसी भी ठीक उसी तरह काम करती है जैसे हम नोट या फिर अलग-अलग तरह की सिक्कों को इस्तेमाल करते हैं. लेकिन सवाल यह खड़ा होता है कि अगर डिजिटल करेंसी वैसी ही है तो फिर ये यूपीआई UPI, आरटीजीएस RTGS और नेफ्ट NEFT से कैसे अलग है.
आखिर क्या है डिजिटल करेंसी
रिटेल डिजिटल करेंसी एक तरह का डिजिटल टोकन है, जिसे रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने जारी किया है. रिजर्व बैंक ने इस मुद्रा के परिचालन के लिए 2 फेस में 8 बैंकों को इसकी जिम्मेदारी दी है. इन बैंकों में स्टेट बैंक ऑफ इंडिया SBI, आईसीआईसीआई बैंक ICICI Bank, यस बैंक YES Bank, आईडीएफसी फर्स्ट बैंक IDFC First Bank, यह चार बैंक ऐसे हैं जो इसके फर्स्ट फेस में काम कर रहे हैं. आरबीआई ने सेकंड फेस के लिए भी बैंकों का चयन कर लिया है, जिसमें बैंक ऑफ बड़ौदा BOB, यूनियन बैंक ऑफ इंडिया UBI, एचडीएफसी बैंक HDFC Bank, कोटक महिंद्रा बैंक Kotak Mahindra, 2nd फेज में इस डिजिटल करेंसी के लेनदेन में शामिल होंगे.
कैसे काम करेगी ये करेंसी
डिजिटल करेंसी एक तरह से मौजूदा करेंसी की ही तरह काम करेगी, जिसमें आपके पास डिजिटल नोट करेंसी और डिजिटल कॉइन करेंसी शामिल होंगे. इसके इस्तेमाल के लिए ग्राहकों को बैंकों के द्वारा एक वॉलेट दिया जाएगा, जिसके जरिए इस डिजिटल करेंसी का लेनदेन हो सकेगा. इस डिजिटल वॉलेट को आप अपने एंड्रॉयड स्मार्टफोन से इस्तेमाल कर सकते हैं. मौजूदा समय में पहले चरण के चार बैंकों के साथ ग्राहक इन बैंकों द्वारा दिए गए डिजिटल वॉलेट के जरिए क्लोज यूजर ग्रुप, जिसमें कि कस्टमर और विदेशी मुद्रा बाजार का ट्रेडिंग समय मर्चेंट दोनों शामिल हैं वो कुछ ही शहरों में इस्तेमाल कर पाएंगें. इसमें मुंबई, नई दिल्ली, बेंगलुरु, भुवनेश्वर जैसे शहर शामिल हैं. आप अगर इन शहरों में रहते हैं तो इन 4 बैंकों के जरिए ही डिजिटल करेंसी के लिए वॉलेट को लिंक कर सकते हैं और उसी के जरिए आप उस डिजिटल रूपी को अलग-अलग मरचेंट्स पर इस्तेमाल कर सकते हैं. डिजिटल करेंसी के लेनदेन के लिए वॉलेट कंपलसरी है.
कैसे अलग है ये मौजूदा पेमेंट एप से
जानकार बताते हैं कि डिजिटल करेंसी के परिचालन के लिए ना तो किसी तरह के बैंक सिस्टम की जरूरत होगी और ना ही इसके लिए आरबीआई को करेंसी छापनी पड़ेगी. मसलन नोट्स या फिर सिक्कों को नहीं छापना पड़ेगा. इससे पैसों का इंस्टेंट ट्रांसफर भी हो जाएगा और आदमी को जल्दी से सुविधा भी मिलेगी.
आखिर UPI, RTGS और दूसरे पेमेंट ऑप्शन से कैसे अलग है डिजिटल करेंसी
जानकार कहते हैं कि डिजिटल करेंसी एक तरह से भारत की करेंसी है, जिसे आप सीधे इस्तेमाल कर सकते हैं. जबकि यूपीआई के तहत अलग-अलग एप्लीकेशंस का इस्तेमाल करना पड़ता है, जिसमें गूगल पे, फोन पे, नेफ्ट, और आरटीजीएस जैसे पेमेंट एप शामिल हैं. अलग-अलग विदेशी मुद्रा बाजार का ट्रेडिंग समय तरीके से पेमेंट ट्रांसफर के लिए इस्तेमाल होते हैं सबसे बड़ा अंतर यह है कि यूपीआई ट्रांजैक्शन करने के लिए आपके खाते में पैसे होने जरूरी हैं जबकि डिजिटल करेंसी एक तरह का लीगल टेंडर है, जिसे आप सीधे इस्तेमाल कर सकते हैं.
जानकार कहते हैं डिजिटल करेंसी केवल पेमेंट एप तक ही सीमित नहीं है बल्कि यह एक तरह की करेंसी है. डिजिटल रुपया एक तरह से आप की स्टोर वैल्यू की तरह काम करता है जबकि यूपीआई के ट्रांजैक्शन करने के लिए आपके अकाउंट में पैसे होने जरूरी है, जिसके बाद ही आप यूपीआई और अलग-अलग तरह की ऐप जैसे इंफ्रास्ट्रक्चर से अपने पैसे को ट्रांसफर करते हैं.
पहले दीवार से घड़ियां और अब कैलेंडर भी हो गए गायब, जानें क्यों चौपट हो रहा बाजार
कोरोना से पहले विदेशी मुद्रा बाजार का ट्रेडिंग समय तक बड़े पैमाने पर नए साल के कैलेंडर प्रिंट करवाए जाते थे, लेकिन अब यह चलन कम हो गया है.
by बिजनेस वर्ल्ड ब्यूरो
Published - Monday, 19 December, 2022
सस्ते इम्पोर्टेड तेल की वजह से बाजार में नहीं खप रहा देशी तिलहन, किसानों को हो रहा नुकसान
Edible Oil Prices: सरसों पेराई में मिल वालों को नुकसान होने से सरसों तिलहन कीमतों में गिरावट आई. ड्यूटी फ्री इम्पोर्ट काफी सस्ता होने से सोयाबीन तेल (Soybean Oil) कीमतों में भी गिरावट आई. बाकी तेल-तिलहनों के भाव पहले के स्तर पर बने रहे.
आयातित सस्ते तेलों पर ड्यूटी लगाने की हो रही मांग. (Photo- Reuters)
Oil Prices: सूरजमुखी (Sunflower) और सोयाबीन (Soybean) जैसे आयातित हल्के (सॉफ्ट) खाद्य तेलों की कीमतें टूटने से स्थानीय तेल कीमतों पर दबाव बढ़ने और जाड़े व शादी-विवाह के मौसम की मांग के बीच बीते सप्ताह दिल्ली तेल-तिलहन बाजार में खाद्य तेल कीमतों में कारोबार का मिला-जुला रुख दिखा. सरसों तेल (Mustard Oil), मूंगफली तेल-तिलहन, सोयाबीन तिलहन, कच्चा पामतेल (Crude Palmoil) और पामोलीन तेल कीमतों में जहां सुधार आया, वहीं सरसों पेराई में मिल वालों को नुकसान होने से सरसों तिलहन कीमतों में गिरावट आई. ड्यूटी फ्री इम्पोर्ट काफी सस्ता होने से सोयाबीन तेल (Soybean Oil) कीमतों में भी गिरावट आई. बाकी तेल-तिलहनों के भाव पहले के स्तर पर बने रहे.
सरसों तेल कीमतों में आया मामूली सुधार
बाजार के जानकार सूत्रों ने कहा कि तेल पेराई मिलों को सरसों की पेराई करने में 4-5 रुपये प्रति किलो का नुकसान है. मिल वालों की मांग कमजोर होने से सरसों तिलहन में गिरावट आई. नीचे भाव में तेल मिलों द्वारा बिकवाली कम करने से सरसों तेल कीमतों में मामूली सुधार आया.
किसानों को नहीं मिल रहा कोई फायदा
सूत्रों ने कहा विदेशी मुद्रा बाजार का ट्रेडिंग समय कि विदेशों में सूरजमुखी और सोयाबीन तेल के दाम में पिछले 6 माह के दौरान 70-90 रुपये किलो की गिरावट आई है. दूसरी ओर सरकार ने कीमतों को कम करने के मकसद से सोयाबीन और सूरजमुखी तेल के आयात को ड्यूटी फ्री करते हुए कोटा सिस्टम लागू कर दिया जिसके अनपेक्षित रूप से उल्टे परिणाम देखने को मिले हैं.
स्थानीय तेल उद्योग संकट में है क्योंकि उनकी पेराई की लागत सस्ते खाद्य तेल के आयात भाव से काफी महंगी बैठती है. इससे किसानों को कोई फायदा नहीं मिल रहा क्योंकि उनके तिलहन की खपत प्रभावित हुई है. उपभोक्ताओं को तेल सस्ता होने के बजाय काफी ऊंची दरों पर मिल रहा है.
खाद्य तेल आयात का खर्च बढ़ा
सूत्रों ने कहा कि पिछले नवंबर में समाप्त हुए तेल वर्ष में खाद्य तेलों के आयात में 6.8% यानी 9 लाख टन सालाना की बढ़ोतरी हुई है जिसका साफ मतलब है कि अपनी जरूरत के लिए लगभग 60% खाद्य तेलों के आयात पर निर्भर इस देश में सरसों और सोयाबीन जैसे तिलहन का उत्पादन बढ़ने के बाद भी सस्ते आयातित तेल के कारण देशी तिलहन बाजार में खप नहीं रहा है. खाद्य तेल आयात पर विदेशी मुद्रा खर्च भी पहले के 1,17,000 करोड़ रुपये से बढ़कर 1,57,000 करोड़ रुपये हो गया है.
सोयाबीन तिलहन कीमतों में सुधार
सूत्रों ने कहा कि सोयाबीन के भाव न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) से अधिक होने के बावजूद पिछले साल से कम होने के कारण मंडियों में किसान कम माल ला रहे हैं जिससे सोयाबीन तिलहन कीमतों में सुधार आया. मंडियों में जो सोयाबीन की आवक पिछले सप्ताह लगभग 8 लाख बोरी की थी वह घटकर लगभग 5 लाख बोरी रह गई है. दूसरी ओर विदेशी मुद्रा बाजार का ट्रेडिंग समय विदेशों से सस्ता आयात होने के कारण सोयाबीन तेल कीमतों में गिरावट आई.
बिनौला-कपास नरमा की आवक आधी घटी
सूत्रों ने कहा कि किसानों द्वारा नीचे भाव में बिकवाली नहीं करने और उपभोक्ता मांग बढ़ने के कारण मूंगफली तेल-तिलहन कीमतों में सुधार आया. सूत्रों ने कहा कि इस वर्ष मंडियों में बिनौला, कपास नरमा की आवक घटकर लगभग आधी रह गई है जिससे बिनौला तेल कीमतों में सुधार आया. बता दें कि पशु आहार के लिए सबसे अधिक यानी लगभग 110 लाख टन खल की प्राप्ति बिनौले से होती है.
सूत्रों ने कहा कि भाव नीचे होने के कारण कच्चे पामतेल (CPO) और पामोलीन तेल की भारी मांग है जिससे इन दोनों तेलों की कीमतों में मामूली मजबूती दिखी. उन्होंने कहा कि पाम, पामोलीन देशी तेलों के कीमत पर ज्यादा असर नहीं डालते और इसकी ज्यादा खपत कमजोर आय वर्ग के लोग करते हैं. देशी तेल-तिलहनों पर सबसे अधिक असर सूरजमुखी और सोयाबीन जैसे हल्के तेल डालते हैं जिसकी खपत उच्च आय वर्ग के लोग करते हैं. सरकार ने रैपसीड तेल पर जो 38.5% आयात शुल्क लगा रखा है उसी तरह बाकी आयातित हल्के तेलों पर भी लगाया जाना चाहिये जो समय की मांग विदेशी मुद्रा बाजार का ट्रेडिंग समय है.
MRP का कोई नियम नहीं
सूत्रों ने कहा कि तेल-तिलहन की महंगाई में सबसे बड़ी दिक्कत बड़ी खाद्य तेल कंपनियों के अधिकतम खुदरा मूल्य (MRP) निर्धारण की प्रथा में छिपी है, जिसका कोई नियम नहीं है. उन्होंने कहा कि सरकार की ओर से कोई समूह जाकर बाजार में मॉल या बड़ी दुकानों में सूरजमुखी, मूंगफली, सोयाबीन रिफाइंड, सरसों आदि खाद्य तेलों के भाव की जांच करे तो ‘दूध का दूध और पानी का पानी’ हो जायेगा. इस पहलू पर भी ध्यान देना चाहिए कि किसानों से तिलहन की खरीद किस भाव पर की गई थी या बंदरगाह पर इसके आयातित तेल का थोक भाव क्या है.
उन्होंने कहा कि तेल कीमतों के बढ़ने की खबरों के आने पर सरकार जब तेल कंपनियों को कीमतें कम करने के लिए कहती है, तो पहले से 60-100 रुपये के बढ़े हुए एमआरपी में ये कंपनियां सिर्फ 15 रुपये प्रति लीटर की कमी करती हैं.
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