क्या हर पुरुष एक बलात्कारी भेड़िया है?

पिछले दिनों मेरी एक जूनियर कॉलीग से बात हो रही थी कि रेप की घटनाओं को कैसे रोका जा सकता है। मैंने कहा, ‘बहुत मुश्किल है। क्योंकि मैं खुद पुरुष हूं और पुरुषों की मानसिकता मैं जानता हूं। इसलिए मुझे तो लगता है कि हर हिंदुस्तानी पुरुष एक पटेंशल रेपिस्ट है। यदि उसको मौका मिले तो वह किसी भी औरत के साथ रेप कर सकता है।’

वह एक बार चौंकी लेकिन फिर कुछ सोचते हुए सहमति में सिर हिलाया। मैंने कहा, ‘अधिकतर पुरुषों के पास मौका नहीं होता कि कोई स्त्री उनको अकेले में मिले जहां वे उसके साथ जबरदस्ती कर सकें। फिर भय भी होता है कि यदि पकड़े गए तो क्या होगा। लेकिन यदि किसी पुरुष को किसी स्त्री के साथ जंगल में छोड़ दिया जाए जहां उसे जानने-पहचाननेवाला कोई न हो और उसे भरोसा हो कि कानून या समाज उसका कुछ नहीं बिगड़ सकता तो वह उस स्त्री के साथ जबरदस्ती करेगा ही करेगा।’

मैंने कहा, ‘इसका कारण यह नहीं कि वह स्त्री को देखकर उत्तेजित हो जाता है और खुद पर कंट्रोल नहीं कर पाता। इसका कारण यह है कि वह मूलतः स्वार्थी है और हर जगह अपना फ़ायदा देखता है। तुम ट्रैफ़िक सिग्नल पर देखो। यदि दाएं-बाएं से कोई गाड़ी नहीं आ रही और कोई पुलिसवाला भी नहीं है तो कितने लोग होंगे जो सिग्नल का सम्मान करेंगे? बहुत ही कम। अभी पिछले शनिवार को मुझे सुबह निकलना था करीब छह-सात बजे। रास्ते में हर जगह सिग्नल चालू थे लेकिन एक भी कार, बस या रिक्शेवाले को मैंने सिग्नल पर रुकते नहीं देखा। इसी तरह यदि समाज में कोई रोकने-टोकनेवाला न हो और पुलिस, कोर्ट-कचहरी या ईश्वरीय दंड का भय न हो तो ये सारे शरीफ मर्द शिकारी बनकर महिलाओं का शिकार करते मिलेंगे। युद्ध के दौरान इसीलिए रेप होते हैं क्योंकि तब कोई रोकने-टोकनेवाला नहीं होता।’

मैंने कहा, ‘स्त्रियों के मामले में भी पुरुषों का – खास कर हिंदुस्तानी पुरुषों का क्योंकि मैं उन्हीं को जानता हूं – यही नज़रिया है कि मौका मिले तो औरत को दबोच लो। उनके मुताबिक औरत इसी के लिए प्रवृत्ति पहचाननेवाला बनी है। मुझे याद है, हमारे यहां एक शादी थी। हंसी-मज़ाक हो रहा था। वहीं पर एक सज्जन ने, जो अपनी हंसोड़ प्रवृत्ति के कारण जाने जाते थे, बताया कि WIFE का मतलब है Wonderful Instrument For Entertainment. सभी लोग हंस दिए सिवाय मेरे क्योंकि मेरे लिए पत्नी या स्त्री का मतलब सिर्फ शरीर नहीं है। लेकिन उन सबके लिए शायद था।’

मैंने उसे सालों पुराना एक किस्सा बताया कि कैसे मेरी एक मित्र जिसकी तब शादी होनेवाली थी और वह किसी परिचित के घर पर रुकी हुई थी, वहां घर के ही एक शादीशुदी पुरुष ने एकांत पाते ही उसका हाथ पकड़ लिया था। जिसने उसका हाथ पकड़ा था, उसे मैं जानता था और कभी नहीं सोचा था कि वह ऐसी बेहूदा हरकत कर सकता है। हमने इस मामले को ऐसे ही जाने नहीं दिया और उसे घर के बड़ों से डांट लगवाई लेकिन मैं दावे के साथ नहीं कह सकता कि उसके बाद उसने किसी लड़की या महिला पर हाथ नहीं डाला होगा।

आपमें से बहुत सारे पाठक मेरी बात से सहमत नहीं होंगे लेकिन पाठिकाएं मेरी बात की तसदीक कर सकती हैं। महिलाएं पुरुषों की आंखों और हावभाव से जान जाती हैं कि वे क्या सोच रहे हैं। अपरिचित ही नहीं, मित्र और रिश्तेदार भी सामने आते हैं तो उनकी नज़र उनके किन अंगों पर होती है, यह हर लड़की, हर युवती, हर महिला जानती है।

आपमें से कई पुरुष कहेंगे कि हम ऐसे नहीं हैं। यहां मेरा कहना यह है कि जब मैं कहता हूं कि ‘सभी पुरुष’ पटेंशल रेपिस्ट होते हैं तो मैं मेरा इशारा ‘उन पुरुषों’ की ओर है जो ‘महिलाओं की इच्छा और अधिकार’ का सम्मान नहीं करते। लेकिन यदि आप मानते हैं कि हर महिला का – यहां तक कि आपकी पत्नी का भी – अपने शरीर पर पूरा-का-पूरा हक है और यह फैसला करने का भी कि वह किसे अपने शरीर को हाथ लगाने दे और किसे नहीं – तभी आपके बारे में कहा जा सकता है कि आप ‘शायद’ पटेंशल रेपिस्ट नहीं हैं। लेकिन यहां भी मैं ‘शायद’ लगा रहा हूं क्योंकि हमने खुर्शीद अनवर जैसे लोग भी देखे हैं जो विचारों में पूरी तरह प्रगतिशील थे लेकिन उनपर भी रेप का आरोप लगा और शायद अपने प्रवृत्ति पहचाननेवाला अपराध बोध के चलते उन्होंने खुदकुशी कर ली। इसी तरह आर. के. पचौरी और तरुण तेजपाल भी स्त्री-पुरुष समानता में विश्वास करनेवाले बुद्धिजीवी हैं लेकिन उन पर भी जबरदस्ती करने के आरोप लगे हैं। ऐसे में किसका भरोसा करें?

शायद किसी का नहीं। क्योंकि हर पुरुष के अंदर एक जानवर छिपा हुआ है।

आपमें से कुछ पाठक यह सवाल कर सकते हैं कि मैं खुद भी पुरुष हूं तो क्या मैं यह मानता हूं कि मुझमें भी एक बलात्कारी छिपा हुआ है। सही सवाल है। मैं खुद सोच रहा हूं कि अगर प्रवृत्ति पहचाननेवाला ऊपर बताई गई अवस्था में मैं किसी स्त्री के साथ रहूं तो क्या मैं भी उसके साथ जबरदस्ती करूंगा। पता नहीं। मन कहता है कि कुछ तो पुरुष होंगे जो किसी भी अवस्था में किसी भी स्त्री से ज़ोर-जबरदस्ती नहीं करेंगे ! लेकिन वे कौन लोग होंगे, कैसे होंगे, यह नहीं समझ पा रहा हूं। यदि आप कुछ आइडिया दे सकें तो बताइए।

नीरेंद्र नागर नवभारतटाइम्स.कॉम के पूर्व संपादक हैं। इससे पहले वह नवभारत टाइम्स दिल्ली में न्यूज़ एडिटर और आज तक टीवी चैनल में सीनियर प्रड्यूसर रह चुके हैं। 33 साल से पत्रकारिता के पेशे से जुड़े नीरेंद्र लेखन को इसका ज़रूरी हिस्सा मानते हैं। वह देश और समाज और समूह की तानाशाही के खिलाफ हैं और मानते हैं कि हर व्यक्ति वह सबकुछ करने के लिए स्वतंत्र है जिससे किसी और का कोई नुकसान नहीं होता और समाज का सीधे-सीधे कोई लेना-देना नहीं है। इसीलिए राजनीतिक मुद्दा हो या इंसानी रिश्तों का तानाबाना, उनके लेखों ने अक्सर उन लोगों को बौखलाया है जिन्होंने खुद ही समाज की ठेकेदारी ले रखी है और दुनिया को अपनी सनक के मुताबिक चलाना चाहते हैं। 'एकला चलो' में भी आप ऐसे ही लेख पाएंगे।

हिन्दी, इंग्लिश और उर्दू में नब्ज़ पहचान्ना के अर्थ देखिए

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आत्मा का चैतन्य स्वरूप पहचानने वाला सुखी

निगोद से सिद्ध अवस्था तक का सार द्वादशांग ग्रंथ में है। पंडित दौलतराम ने इसको छ:ढाला में सरल शब्दों में वर्णित किया है। यह बात डॉ. संजीवकुमार.

The joyful person who knows the consciousness of the soul

सूरत।निगोद से प्रवृत्ति पहचाननेवाला सिद्ध अवस्था तक का सार द्वादशांग ग्रंथ में है। पंडित दौलतराम ने इसको छ:ढाला में सरल शब्दों प्रवृत्ति पहचाननेवाला में वर्णित किया है। यह बात डॉ. संजीवकुमार गोधा ने बुधवार को परवत पाटिया में मॉडलटाउन के श्रीचंद्रप्रभु दिगम्बर जैन मंदिर के पास प्रांगण में प्रवचन के दौरान कही।

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