Mathura Krishna Janmabhoomi Case: क्या है मथुरा श्रीकृष्ण जन्मभूमि और ईदगाह विवाद? जानें कब और कैसे शुरू हुआ मामला

डीएनए हिंदीः मथुरा की सिविल कोर्ट ने श्री कृष्ण जन्मस्थान (Krishna Janmabhoomi Case) और शाही ईदगाह (Shahi Idgah) की विवादित जमीन का सर्वे कराने का आदेश दिया है. इससे बाद मामला एक बार फिर सुर्खियों में आ गया है. कोर्ट ने सर्वे की रिपोर्ट 20 जनवरी तक सौंपने का आदेश दिया है. आखिर मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मभूमि और शाही ईदगाह मस्जिद का विवाद क्या है? कब और कैसे विवाद शुरू हुआ? हिंदू पक्ष और मुस्लिम पक्ष के दावे क्या-क्या हैं? इसे विस्तार से समझते हैं.

क्या है श्रीकृष्ण जन्मभूमि विवाद?

मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मभूमि को लेकर विवाद दशकों पुराना है. मथुरा का ये विवाद कुल 13.37 एकड़ जमीन पर मालिकाना हक से जुड़ा है. 12 अक्टूबर 1968 को श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान ने शाही मस्जिद ईदगाह ट्रस्ट के साथ समझौता किया था. इस समझौते में 13.7 एकड़ जमीन पर मंदिर और मस्जिद दोनों बनने की बात हुई थी. गौरतलब है कि श्रीकृष्ण जन्मस्थान के पास 10.9 एकड़ जमीन का मालिकाना हक है जबकि ढाई एकड़ जमीन का मालिकाना हक शाही ईदगाह मस्जिद के पास है. हिंदू पक्ष शाही ईदगाह मस्जिद को अवैध तरीके से कब्जा करके बनाया गया ढांचा बताता है और इस जमीन पर भी दावा किया है. हिंदू पक्ष की ओर से शाही ईदगाह मस्जिद को हटाने और ये जमीन भी श्रीकृष्ण जन्मस्थान को देने की मांग की गई है.

इतिहास क्या कहता है?

दावा किया जाता है कि औरंगजेब ने श्रीकृष्ण जन्म स्थली पर बने प्राचीन केशवनाथ मंदिर को नष्ट करके उसी जगह 1669-70 में शाही ईदगाह मस्जिद का निर्माण कराया था. इसके बाद 1770 में गोवर्धन में मुगलों और मराठाओं में जंग हुई. इस जंग में मराठाओं की जीत हुई. जीत के बाद मराठाओं ने फिर से मंदिर का निर्माण कराया. 1935 में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 13.37 एकड़ की भूमि बनारस के राजा कृष्ण दास को आवंटित कर दी. 1951 में श्री कृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट ने ये भूमि अधिग्रहीत कर ली.

कोर्ट ने क्या दिया आदेश

मथुरा सिविल कोर्ट में 13.37 एकड़ भूमि के स्वामित्व की मांग को लेकर मथुरा कोर्ट में याचिका दायर की गई है. याचिका में पूरी जमीन लेने और श्री कृष्ण जन्मभूमि के बराबर में बनी शाही ईदगाह मस्जिद को कैसे एक काल्पनिक मूल्य बाजार मूल्य से अलग है हटाने की मांग की गई है. इस मामले में सिविल जज सीनियर डिवीजन तृतीय सोनिका वर्मा की कोर्ट ने शाही ईदगाह के विवादित स्थल के सर्वे का आदेश दिया. इसकी रिपोर्ट सभी पक्षकारों को 20 जनवरी तक सौंपनी होगी.

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इकनॉमी और कामगार को होगा जितना नुकसान, शेयर बाजार कैसे एक काल्पनिक मूल्य बाजार मूल्य से अलग है उतना चढ़ेगा!

अर्थव्यवस्था नीचे जाती है तो शेयर बाजार ऊपर क्यों जाता है?

इकनॉमी और कामगार को होगा जितना नुकसान, शेयर बाजार उतना चढ़ेगा!

भारत की अर्थव्यवस्था अभी भी तीन साल पहले की स्थिति में नहीं पहुंची है. ऐसे में सेंसेक्स के लिए नई ऊंचाई पर पहुंचना कैसे संभव है? मेनस्ट्रीम अर्थशास्त्री आपको बताएंगे कि यह एक संकेत है कि शेयर बाजार वास्तविक अर्थव्यवस्था से अलग हो गए हैं. वे कहेंगे कि सिस्टम में एक खतरनाक 'बबल' बन रहा है जो जल्द ही फटने वाला है.

यह विचार कि बाजार एक 'तर्कहीन उत्साह' प्रदर्शित कर रहा हैं, न केवल शेयर बाजार कैसे काम करता है, बल्कि यह भी कि वे पूरी तरीके से अर्थव्यवस्था से कैसे संबंधित हैं, की गलत समझ पर आधारित है.

इसे समझने के लिए हमें मेनस्ट्रीम के अर्थशास्त्र की दुनिया को छोड़कर राजनीतिक अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में प्रवेश करना होगा.

आधुनिक पूंजीवादी अर्थव्यवस्थाएं (सरलता के लिए हम भारत को मानेंगे) मुख्य रूप से लोगों के तीन समूहों से बनी हैं. पहले वे हैं जिनके पास उत्पादक संसाधन जैसे भूमि, कारखाने, मशीनें और कार्यालय हैं. दूसरा, बहुत बड़ा समूह उन लोगों से बनता है जो पहले समूह के लिए काम करते हैं. और तीसरे वे हैं जो इस पूरे प्रणाली को आसान बनाते हैं और यह सुनिश्चित करते हैं कि यह सुचारू रूप से चले. इनमें न केवल सुपरवाइजर और मैनेजर शामिल हैं जो पूंजी के मालिकों की ओर से बिजनेस चलाते हैं, बल्कि नेता, बाबु, न्यायिक अधिकारी, पुलिस, वकील, शिक्षक और हर कोई जो रूल ऑफ कैपिटल के चक्र में शामिल हैं.

मार्केट मुनाफे के पीछे भागता है

कोई भी व्यक्ति किसी कंपनी के शेयर को खरीदकर उस कंपनी के पूंजी का मालिक हो सकता है, भले ही वह बहुत छोटे हिस्से का हकदार ही क्यों न हो. ऐसा इसलिए क्योंकि किसी कंपनी के शेयर में शेयरधारकों का उसके मुनाफे पर अधिकार होता है. तो, एक अर्थव्यवस्था में उत्पन्न कुल आय में मुनाफे के हिस्से के आधार पर शेयर बाजार ऊपर या नीचे जाता है. अगर वह शेयर बढ़ता है, तो बाजार ऊपर जाता है. यदि यह गिरता है, तो बाजार या तो गिर जाता है या ज्यादातर समय 'साइडवेज' में चला जाता है.कैसे एक काल्पनिक मूल्य बाजार मूल्य से अलग है

आइए इसे समझने के लिए एक काल्पनिक उदाहरण लेते हैं. कल्पना कीजिए कि एक अर्थव्यवस्था में उत्पन्न कुल आय पहले वर्ष में ₹100 है. इसमें से ₹50 उन लोगों के पास जाते हैं जिनके पास मुनाफे के रूप में पूंजी होती है, और शेष ₹50 उनके लिए जो काम करते हैं, मजदूरी और वेतन के रूप में दिया जाता है. दूसरे वर्ष में, अर्थव्यवस्था ₹110 तक फैल जाती है. इस बार, हालांकि, मुनाफे का हिस्सा घटकर ₹45 रह गया और मजदूरी का हिस्सा बढ़कर ₹65 हो गया. देश की जीडीपी में 10 फीसदी की बढ़ोतरी के बावजूद शेयर बाजार में गिरावट आएगी.

अब, कल्पना कीजिए कि तीसरे वर्ष में मंदी है और अर्थव्यवस्था का आकार सिकुड़ कर ₹95 हो गया है। इस बार, मजदूरी तेजी से घटकर ₹40 हो गई, लेकिन मुनाफा ₹55 तक बढ़ गया. भले ही देश की जीडीपी में 13.6 फीसदी की गिरावट आई हो, लेकिन मुनाफे में 22 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है. प्रॉफिट में हुई ग्रोथ को दर्शाने के लिए अब शेयर बाजार में तेजी आएगी. दूसरे शब्दों में, पूंजीपतियों और उनके कर्मचारियों के बीच जितनी अधिक असमानता होगी, शेयर बाजार उतना ही बढ़ेगा.

क्या होगा कैसे एक काल्पनिक मूल्य बाजार मूल्य से अलग है यदि चौथे वर्ष में, सकल घरेलू उत्पाद वापस ₹115 पर उछलता है, लाभ ₹58 तक बढ़ जाता है और मजदूरी ₹57 तक बढ़ जाती है? सामान्य तौर पर, बाजारों में वृद्धि होनी चाहिए क्योंकि मुनाफा बढ़ा है और चूंकि मजदूरी दर में हुई वृद्धि से मार्केट में कमोडिटी की डिमांड बढ़ेगी और इसलिए भविष्य में कंपनी का मुनाफा और बढ़ना चाहिए. फिर भी, संभावना है कि बाजार सिकुड़ जाएगा, या धीरे-धीरे बढ़ेगा. ऐसा इसलिए है क्योंकि कैसे एक काल्पनिक मूल्य बाजार मूल्य से अलग है पूंजीवाद प्रोडक्टिव संसाधनों के जमा होने पर दांव लगाता है. इस मामले में, भले ही मुनाफे में वृद्धि हुई हो, लेकिन मजदूरी दर की तुलना में कंपनी के प्रॉफिट में गिरावट आई है. यह एक सिस्टम के रूप में पूंजीवाद के कामकाज और रिप्रोडक्शन के लिए एक समस्या है.

थोक मुद्रास्फीति अप्रैल में बढ़कर 15.08 प्रतिशत के रिकॉर्ड स्तर पर

थोक मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति मार्च में 14.55 प्रतिशत और पिछले साल अप्रैल में 10.74 फीसदी थी. अप्रैल 2021 से यह लगातार 13वें महीने दहाई के अंक में बनी हुई है. पिछले सप्ताह जारी आंकड़ों में बताया गया था कि खुदरा मुद्रास्फीति अप्रैल में बढ़कर आठ साल के उच्च स्तर 7.79 प्रतिशत पर पहुंच गई है. The post थोक मुद्रास्फीति अप्रैल में बढ़कर 15.08 प्रतिशत के रिकॉर्ड स्तर पर appeared first on The Wire - Hindi.

थोक मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति मार्च में 14.55 प्रतिशत और पिछले साल अप्रैल में 10.74 फीसदी थी. अप्रैल 2021 से यह लगातार 13वें महीने दहाई के अंक में बनी हुई है. पिछले सप्ताह जारी आंकड़ों में बताया गया था कि खुदरा मुद्रास्फीति अप्रैल में बढ़कर आठ साल के उच्च स्तर 7.79 प्रतिशत पर पहुंच गई है.

(प्रतीकात्मक फोटो: रॉयटर्स)

नई दिल्ली/मुंबई: थोक कीमतों पर आधारित मुद्रास्फीति (महंगाई दर) अप्रैल में बढ़कर 15.08 प्रतिशत के रिकॉर्ड उच्च स्तर पर पहुंच गई. यह तेजी खाद्य वस्तुओं से लेकर जिंसों तक के महंगा होने की वजह से हुई.

थोक मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति मार्च में 14.55 प्रतिशत और पिछले साल अप्रैल में 10.74 फीसदी थी. अप्रैल 2021 से यह लगातार 13वें महीने दहाई के अंक में बनी हुई है.

आंकड़ों से पता चलता है, बीते मार्च महीने के दौरान थोक मूल्य सूचकांक में 14.55 प्रतिशत की वृद्धि हुई थी, जबकि फरवरी के लिए इसे 13.43 प्रतिशत से संशोधित कर 13.11 प्रतिशत किया गया था.

माना जा रहा है कि मुद्रास्फीति बढ़ने के कारण रिजर्व बैंक अगले महीने नीति समीक्षा बैठक में ब्याज दरों को बढ़ाने का फैसला कर सकता है.

वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय ने एक बयान में कहा, ‘अप्रैल, 2022 में मुद्रास्फीति की ऊंची दर मुख्य रूप से खनिज तेलों, मूल धातुओं, कच्चे तेल और प्राकृतिक गैस, खाद्य वस्तुओं, गैर-खाद्य वस्तुओं, खाद्य उत्पादों, रसायनों और रासायनिक उत्पादों आदि की कीमतों में बढ़ोतरी के कारण हुई.’

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, आंकड़ों से पता चलता है कि अप्रैल में वस्तुओं की मुद्रास्फीति में 8.35 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई. इस दौरान सब्जियों, गेहूं, फल और आलू की कीमतों में तेज वृद्धि देखी गई थी.

इससे पहले के महीने में यह 8.06 फीसदी था. महीने-दर-महीने मामूली वृद्धि के लिए सब्जियों की कीमतों में वृद्धि को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है.

ईंधन और बिजली खंड में मुद्रास्फीति 38.66 प्रतिशत थी, जबकि विनिर्मित उत्पादों और तिलहन में यह क्रमशः 10.85 प्रतिशत और 16.10 प्रतिशत थी.

आंकड़ों से पता चलता है कि मार्च में 19.88 प्रतिशत की वृद्धि के मुकाबले सब्जियों की कीमतें अप्रैल में 23.24 प्रतिशत बढ़ीं. आलू के दाम 19.84 फीसदी चढ़े, जबकि प्याज (-)4.02 फीसदी फिसले.

हालांकि फलों की कीमतों में पिछले महीने मार्च में 10.62 प्रतिशत से 10.89 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई, जबकि गेहूं की कीमतें एक महीने पहले 14.04 प्रतिशत से घटकर 10.70 प्रतिशत हो गईं.

अंडे, मांस और मछली की कीमतें अप्रैल में एक महीने पहले 9.42 प्रतिशत से घटकर 4.50 प्रतिशत हो गईं और मार्च में 8.12 प्रतिशत की तुलना में पिछले महीने अनाज 7.80 प्रतिशत बढ़ गया.

कच्चे तेल और प्राकृतिक गैस की मुद्रास्फीति अप्रैल में 69.07 प्रतिशत थी. विनिर्मित उत्पाद खंड (Manufactured Products Segment) अप्रैल में मुद्रा​स्फीति 10.85 प्रतिशत बढ़ी, जो एक महीने पहले 10.71 प्रतिशत थी.

रिपोर्ट के अनुसार, ईंधन और बिजली श्रेणी में मुद्रास्फीति की बात करें तो मार्च में यह 34.52 प्रतिशत से अप्रैल में बढ़कर 38.66 प्रतिशत हो गई. पेट्रोल की कीमत में 60.63 प्रतिशत, हाई-स्पीड डीजल में 66.14 प्रतिशत और एलपीजी की कीमतों में 38.48 प्रतिशत की वृद्धि हुई है.

पिछले सप्ताह जारी आंकड़ों के मुताबिक, खुदरा मुद्रास्फीति अप्रैल में बढ़कर आठ साल के उच्च स्तर 7.79 प्रतिशत पर पहुंच गई है.

महंगाई पर काबू पाने के लिए आरबीआई ने इस महीने की शुरुआत में रेपो दर में 0.40 प्रतिशत और नकद आरक्षित अनुपात में 0.50 प्रतिशत की वृद्धि की थी.

रेटिंग एजेंसी इक्रा की मुख्य अर्थशास्त्री अदिति नायर ने कहा कि चीन में कमजोर मांग के परिणामस्वरूप जिंस कीमतों में कुछ नरमी से रुपये में गिरावट की भरपाई हो सकती है. उन्होंने कहा कि मई में थोक कीमतों पर आधारित मुद्रास्फीति 15 प्रतिशत से कम रह सकती है, हालांकि यह उच्चस्तर पर बनी रहेगी.

उन्होंने कहा कि थोक कीमतों पर आधारित मुद्रास्फीति लगातार दो अंक में बनी हुई है, इसलिए जून, 2022 में मौद्रिक नीति की समीक्षा कैसे एक काल्पनिक मूल्य बाजार मूल्य से अलग है में रेपो दर में बढ़ोतरी की संभावना बढ़ गई है. नायर ने कहा कि जून, 2022 में 0.40 प्रतिशत और अगस्त में 0.35 प्रतिशत वृद्धि का अनुमान है.

रुपया रिकॉर्ड निचले स्तर से उबरकर सात पैसे की तेजी के साथ 77.47 प्रति डॉलर पर

घरेलू शेयर बाजारों में जोरदार तेजी के बीच अंतर-बैंक विदेशी मुद्रा विनिमय बाजार में रुपया मंगलवार को अपने सर्वकालिक निचले स्तर 77.79 से उबरता हुआ सात पैसे की तेजी के साथ बंद हुआ.

अंतर-बैंक विदेशी मुद्रा विनिमय बाजार में रुपया डॉलर के मुकाबले 77.67 पर कमजोर खुला तथा निराशाजनक वृहद आर्थिक आंकड़े सामने आने के बाद दिन में कारोबार के सबसे निचले स्तर 77.79 प्रति डॉलर पर आ गया.

हालांकि, घरेलू शेयर बाजार में भारी तेजी के कारण रुपये में सुधार का दौर लौटा और कारोबार के अंत में रुपया 77.48 पर बंद हुआ, जो पिछले बंद भाव 77.55 रुपये से सात पैसे की तेजी को दर्शाता है. विदेशी मुद्रा विनिमय बाजार सोमवार को बुद्ध पुर्णिमा के मौके पर बंद था.

इस बीच, छह प्रमुख मुद्राओं के मुकाबले अमेरिकी डॉलर की स्थिति को दर्शाने वाला डॉलर सूचकांक 0.41 प्रतिशत गिरकर कैसे एक काल्पनिक मूल्य बाजार मूल्य से अलग है 103.75 रह गया.

वैश्विक तेल मानक ब्रेंट क्रूड वायदा का दाम 0.74 प्रतिशत बढ़कर 115.09 डॉलर प्रति बैरल हो गया. बीएसई का 30 शेयरों वाला सेंसेक्स 1,344.63 अंक की तेजी के साथ 54,318.47 अंक पर बंद हुआ.

शेयर बाजार के आंकड़ों के मुताबिक, विदेशी संस्थागत निवेशक पूंजी बाजार में शुद्ध बिकवाल रहे और उन्होंने सोमवार को 1,788.93 करोड़ रुपये मूल्य के शेयर बेचे.

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भारत की अर्थव्यवस्था अभी भी तीन साल पहले की स्थिति में नहीं पहुंची है. ऐसे में सेंसेक्स के लिए नई ऊंचाई पर पहुंचना कैसे संभव है? मेनस्ट्रीम अर्थशास्त्री आपको बताएंगे कि यह एक संकेत है कि शेयर बाजार वास्तविक अर्थव्यवस्था से अलग हो गए हैं. वे कहेंगे कि सिस्टम में एक खतरनाक 'बबल' बन रहा है जो जल्द ही फटने वाला है.

यह विचार कि बाजार एक 'तर्कहीन उत्साह' प्रदर्शित कर रहा हैं, न केवल शेयर बाजार कैसे काम करता है, बल्कि यह भी कि वे पूरी तरीके से अर्थव्यवस्था से कैसे संबंधित हैं, की गलत समझ पर आधारित है.

इसे समझने के लिए हमें मेनस्ट्रीम के अर्थशास्त्र की दुनिया को छोड़कर राजनीतिक अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में प्रवेश करना होगा.

आधुनिक पूंजीवादी अर्थव्यवस्थाएं (सरलता के लिए हम भारत को मानेंगे) मुख्य रूप से लोगों के तीन समूहों से बनी हैं. पहले वे हैं जिनके पास उत्पादक संसाधन जैसे भूमि, कारखाने, मशीनें और कार्यालय हैं. दूसरा, बहुत बड़ा समूह उन लोगों से बनता है जो पहले समूह के लिए काम करते हैं. और तीसरे वे हैं जो इस पूरे प्रणाली को आसान बनाते हैं और यह सुनिश्चित करते हैं कि यह सुचारू रूप से चले. इनमें न केवल सुपरवाइजर और मैनेजर शामिल हैं जो पूंजी के मालिकों की ओर से बिजनेस चलाते हैं, बल्कि नेता, बाबु, न्यायिक अधिकारी, पुलिस, वकील, शिक्षक और हर कोई जो रूल ऑफ कैपिटल के चक्र में शामिल हैं.

मार्केट मुनाफे के पीछे भागता है

कोई भी व्यक्ति किसी कंपनी के शेयर को खरीदकर उस कंपनी के पूंजी का कैसे एक काल्पनिक मूल्य बाजार मूल्य से अलग है मालिक हो सकता है, भले ही वह बहुत छोटे हिस्से का हकदार ही क्यों न हो. ऐसा इसलिए क्योंकि किसी कंपनी के शेयर में शेयरधारकों का उसके मुनाफे पर अधिकार होता है. तो, एक अर्थव्यवस्था में उत्पन्न कुल आय में मुनाफे के हिस्से के आधार पर शेयर बाजार ऊपर या नीचे जाता है. अगर वह शेयर बढ़ता है, तो बाजार ऊपर जाता है. यदि यह गिरता है, तो बाजार या तो गिर जाता है या ज्यादातर समय 'साइडवेज' में चला जाता है.

आइए इसे समझने के लिए एक काल्पनिक उदाहरण लेते हैं. कल्पना कीजिए कि एक अर्थव्यवस्था में उत्पन्न कुल आय पहले वर्ष में ₹100 है. इसमें से ₹50 उन लोगों के पास जाते हैं कैसे एक काल्पनिक मूल्य बाजार मूल्य से अलग है जिनके पास मुनाफे के रूप में पूंजी होती है, और शेष ₹50 उनके लिए जो काम करते हैं, मजदूरी और वेतन के रूप में दिया जाता है. दूसरे वर्ष में, अर्थव्यवस्था ₹110 तक फैल जाती है. इस बार, हालांकि, मुनाफे का हिस्सा घटकर ₹45 रह गया और मजदूरी का हिस्सा बढ़कर ₹65 हो गया. देश की जीडीपी में 10 फीसदी की बढ़ोतरी के बावजूद शेयर बाजार में गिरावट आएगी.

अब, कल्पना कीजिए कि तीसरे वर्ष में मंदी है और अर्थव्यवस्था का आकार सिकुड़ कर ₹95 हो गया है। इस बार, मजदूरी तेजी से घटकर ₹40 हो गई, लेकिन मुनाफा ₹55 तक बढ़ गया. भले ही देश की जीडीपी में 13.6 फीसदी की गिरावट आई हो, लेकिन मुनाफे में 22 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है. प्रॉफिट में हुई ग्रोथ को दर्शाने के लिए अब शेयर बाजार में तेजी आएगी. दूसरे शब्दों में, पूंजीपतियों और उनके कर्मचारियों के बीच जितनी अधिक असमानता होगी, शेयर बाजार उतना ही बढ़ेगा.

क्या होगा यदि चौथे वर्ष में, सकल घरेलू उत्पाद वापस ₹115 पर उछलता है, लाभ ₹58 तक बढ़ जाता है और मजदूरी ₹57 तक बढ़ जाती है? सामान्य तौर पर, बाजारों में वृद्धि होनी चाहिए कैसे एक काल्पनिक मूल्य बाजार मूल्य से अलग है क्योंकि मुनाफा बढ़ा है और चूंकि मजदूरी दर में हुई वृद्धि से मार्केट में कमोडिटी की डिमांड बढ़ेगी और इसलिए भविष्य में कंपनी का मुनाफा और बढ़ना चाहिए. फिर भी, संभावना है कि बाजार सिकुड़ जाएगा, या धीरे-धीरे बढ़ेगा. ऐसा कैसे एक काल्पनिक मूल्य बाजार मूल्य से अलग है इसलिए है क्योंकि पूंजीवाद प्रोडक्टिव संसाधनों के जमा होने पर दांव लगाता है. इस मामले में, भले ही मुनाफे में वृद्धि हुई हो, लेकिन मजदूरी दर की तुलना में कंपनी के प्रॉफिट में गिरावट आई है. यह एक सिस्टम के रूप में पूंजीवाद के कामकाज और रिप्रोडक्शन के लिए एक समस्या है.

थोक मुद्रास्फीति अप्रैल में बढ़कर 15.08 प्रतिशत के रिकॉर्ड स्तर पर

थोक मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति मार्च में 14.55 प्रतिशत और पिछले साल अप्रैल में 10.74 फीसदी थी. अप्रैल 2021 से यह लगातार 13वें महीने दहाई के अंक में बनी हुई है. पिछले सप्ताह जारी आंकड़ों में बताया गया था कि खुदरा मुद्रास्फीति अप्रैल में बढ़कर आठ साल के उच्च स्तर 7.79 प्रतिशत पर पहुंच गई है. The post थोक मुद्रास्फीति अप्रैल में बढ़कर 15.08 प्रतिशत के रिकॉर्ड स्तर पर appeared first on The Wire - Hindi.

थोक मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति मार्च में 14.55 प्रतिशत और पिछले साल अप्रैल में 10.74 फीसदी थी. अप्रैल 2021 से यह लगातार 13वें महीने दहाई के अंक में बनी हुई है. पिछले सप्ताह जारी आंकड़ों में बताया गया था कि खुदरा मुद्रास्फीति अप्रैल में बढ़कर आठ साल के उच्च स्तर 7.79 प्रतिशत पर पहुंच गई है.

(प्रतीकात्मक फोटो: रॉयटर्स)

नई दिल्ली/मुंबई: थोक कीमतों पर आधारित मुद्रास्फीति (महंगाई दर) अप्रैल में बढ़कर 15.08 प्रतिशत के रिकॉर्ड उच्च स्तर पर पहुंच गई. यह तेजी खाद्य वस्तुओं से लेकर जिंसों तक के महंगा होने की वजह से हुई.

थोक मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति मार्च में 14.55 प्रतिशत और पिछले साल अप्रैल में 10.74 फीसदी थी. अप्रैल 2021 से यह लगातार 13वें महीने दहाई के अंक में बनी हुई है.

आंकड़ों से पता चलता है, बीते मार्च महीने के दौरान थोक मूल्य सूचकांक में 14.55 प्रतिशत की वृद्धि हुई थी, जबकि फरवरी के लिए इसे 13.43 प्रतिशत से संशोधित कर 13.11 प्रतिशत किया गया था.

माना जा रहा है कि मुद्रास्फीति बढ़ने के कारण रिजर्व बैंक अगले महीने नीति समीक्षा बैठक में ब्याज दरों को बढ़ाने का फैसला कर सकता है.

वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय ने एक बयान में कहा, ‘अप्रैल, 2022 में मुद्रास्फीति की ऊंची दर मुख्य रूप से खनिज तेलों, मूल धातुओं, कच्चे तेल और प्राकृतिक गैस, खाद्य वस्तुओं, गैर-खाद्य वस्तुओं, खाद्य उत्पादों, रसायनों और रासायनिक उत्पादों आदि की कीमतों में बढ़ोतरी के कारण हुई.’

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, आंकड़ों से पता चलता है कि अप्रैल में वस्तुओं की मुद्रास्फीति में 8.35 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई. इस दौरान सब्जियों, गेहूं, फल और आलू की कीमतों में तेज वृद्धि देखी गई थी.

इससे पहले के महीने में यह 8.06 फीसदी था. महीने-दर-महीने मामूली वृद्धि के लिए सब्जियों की कीमतों में वृद्धि को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है.

ईंधन और बिजली खंड में मुद्रास्फीति 38.66 प्रतिशत थी, जबकि विनिर्मित उत्पादों और तिलहन में यह क्रमशः 10.85 प्रतिशत और 16.10 प्रतिशत थी.

आंकड़ों से पता चलता है कि मार्च में 19.88 प्रतिशत की वृद्धि के मुकाबले सब्जियों की कीमतें अप्रैल में 23.24 प्रतिशत बढ़ीं. आलू के दाम 19.84 फीसदी चढ़े, जबकि प्याज (-)4.02 फीसदी फिसले.

हालांकि फलों की कीमतों में पिछले महीने मार्च में 10.62 प्रतिशत से 10.89 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई, जबकि गेहूं की कीमतें एक महीने पहले 14.04 प्रतिशत से घटकर 10.70 प्रतिशत हो गईं.

अंडे, मांस और मछली की कीमतें अप्रैल में एक महीने पहले 9.42 प्रतिशत से घटकर 4.50 प्रतिशत हो गईं और मार्च में 8.12 प्रतिशत की तुलना में पिछले महीने अनाज 7.80 प्रतिशत बढ़ गया.

कच्चे तेल और प्राकृतिक गैस की मुद्रास्फीति अप्रैल में 69.07 प्रतिशत थी. विनिर्मित उत्पाद खंड (Manufactured Products Segment) अप्रैल में मुद्रा​स्फीति 10.85 प्रतिशत बढ़ी, जो एक महीने पहले 10.71 प्रतिशत थी.

रिपोर्ट के अनुसार, ईंधन और बिजली श्रेणी में मुद्रास्फीति की बात करें तो मार्च में यह 34.52 प्रतिशत से अप्रैल में बढ़कर 38.66 प्रतिशत हो गई. पेट्रोल की कीमत में 60.63 प्रतिशत, हाई-स्पीड डीजल में 66.14 प्रतिशत और एलपीजी की कीमतों में 38.48 प्रतिशत की वृद्धि हुई है.

पिछले सप्ताह जारी आंकड़ों के मुताबिक, खुदरा मुद्रास्फीति अप्रैल में बढ़कर आठ साल के उच्च स्तर 7.79 प्रतिशत पर पहुंच गई है.

महंगाई पर काबू पाने के लिए आरबीआई ने इस महीने की शुरुआत में रेपो दर में 0.40 प्रतिशत और नकद आरक्षित अनुपात में 0.50 प्रतिशत की वृद्धि की थी.

रेटिंग एजेंसी इक्रा की मुख्य अर्थशास्त्री अदिति नायर ने कहा कि चीन में कमजोर मांग के परिणामस्वरूप जिंस कीमतों में कुछ नरमी से रुपये में गिरावट की भरपाई हो सकती है. उन्होंने कहा कैसे एक काल्पनिक मूल्य बाजार मूल्य से अलग है कि मई में थोक कीमतों पर आधारित मुद्रास्फीति 15 प्रतिशत से कम रह सकती है, हालांकि यह उच्चस्तर पर बनी रहेगी.

उन्होंने कहा कि थोक कीमतों पर आधारित मुद्रास्फीति लगातार दो अंक में बनी हुई है, इसलिए जून, 2022 में मौद्रिक नीति की समीक्षा में रेपो दर में बढ़ोतरी की संभावना बढ़ गई है. नायर ने कहा कि जून, 2022 में 0.40 प्रतिशत और अगस्त में 0.35 प्रतिशत वृद्धि का अनुमान है.

रुपया रिकॉर्ड निचले स्तर से उबरकर सात पैसे की तेजी के साथ 77.47 प्रति डॉलर पर

घरेलू शेयर बाजारों में जोरदार तेजी के बीच अंतर-बैंक विदेशी मुद्रा विनिमय बाजार में रुपया मंगलवार को अपने सर्वकालिक निचले स्तर 77.79 से उबरता हुआ सात पैसे की तेजी के साथ बंद हुआ.

अंतर-बैंक विदेशी मुद्रा विनिमय बाजार में रुपया डॉलर के मुकाबले 77.67 पर कमजोर खुला तथा निराशाजनक वृहद आर्थिक आंकड़े सामने आने के बाद दिन में कारोबार के सबसे निचले स्तर 77.79 प्रति डॉलर पर आ गया.

हालांकि, घरेलू शेयर बाजार में भारी तेजी के कारण रुपये में सुधार का दौर लौटा और कारोबार के अंत में रुपया 77.48 पर बंद हुआ, जो पिछले बंद भाव 77.55 रुपये से सात पैसे की तेजी को दर्शाता है. विदेशी मुद्रा विनिमय बाजार सोमवार को बुद्ध पुर्णिमा के मौके पर बंद था.

इस बीच, छह प्रमुख मुद्राओं के मुकाबले अमेरिकी डॉलर की स्थिति को दर्शाने वाला डॉलर सूचकांक 0.41 प्रतिशत गिरकर 103.75 रह गया.

वैश्विक तेल मानक ब्रेंट क्रूड वायदा का दाम 0.74 प्रतिशत बढ़कर 115.09 डॉलर प्रति बैरल हो गया. बीएसई का 30 शेयरों वाला सेंसेक्स 1,344.63 अंक की तेजी के साथ 54,318.47 अंक पर बंद हुआ.

शेयर बाजार के आंकड़ों के मुताबिक, विदेशी संस्थागत निवेशक पूंजी बाजार में शुद्ध बिकवाल रहे और उन्होंने सोमवार को 1,788.93 करोड़ रुपये मूल्य के शेयर बेचे.

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