स्टॉक मार्केट में जब आप पैसे लगाते हैं तो ब्रोकरेज, एसटीटी (सिक्योरिटी ट्रांजैक्शन फीस), एक्सचेंज ट्रांजैक्शन चार्ज, जीएसटी, सेबी चार्ज, स्टांप ड्यूटी जैसे टैक्स व चार्जेज चुकाने होते हैं और इन्हें काटकर ही शुद्ध मुनाफा या नुकसान आपको हासिल होता है. (Image- Pixabay)

फ्यूचर्स और ऑप्शंस क्या हैं?

वायदा और विकल्प (Futures & Options contracts), डेरिवेटिव हैं जिनका स्टॉक एक्सचेंज में कारोबार होता है और उनकी कीमत अंतर्निहित परिसंपत्ति से प्राप्त होती है। सट्टेबाजों और आर्बिट्राजर्स इन अनुबंधों का उपयोग मुनाफा कमाने या अंतर्निहित परिसंपत्ति के साथ जोखिम को कम करने के लिए करते हैं। एक वायदा और विकल्प अनुबंध एक परिसंपत्ति की कीमत को सुरक्षित करने में मदद करता हैवायदा अनुबंध जिसे “वायदा” कहा जाता है, एक प्रकार का अनुबंध होता है जिसमें एक निवेशक अनुबंध समाप्त होने की तारीख से पहले या उससे पहले एक निश्चित मूल्य पर एक विशिष्ट संख्या में संपत्ति खरीदने या बेचने के लिए सहमत होता है। अंतर्निहित परिसंपत्ति के मूल्य आंदोलन से लाभ का प्रयास करने के लिए निवेशक वायदा का उपयोग करते हैं। फ्यूचर्स में निवेश करने और उनके व्यापार के फायदे और नुकसान शामिल हैं। फ्यूचर्स में निवेश करने के लिए इन निवेशों के बारे में अधिक से अधिक सीख कर निवेश करे ।

विकल्प (Option)

विकल्प भी व्युत्पन्न अनुबंध हैं जो एक अंतर्निहित सुरक्षा से मूल्य प्राप्त करते हैं। खरीदार अपने पास मौजूद विकल्प के प्रकार के आधार पर किसी अंतर्निहित परिसंपत्ति को खरीद या बेच सकते हैं। एक विकल्प अनुबंध के साथ, धारक संपत्ति खरीदने या बेचने के लिए बाध्य नहीं है यदि वे नहीं चाहते हैं। विकल्प अनुबंधों की समाप्ति तिथि होती है जो हर महीने का आखिरी गुरुवार होता है।

विकल्प क्या कॉल या पुट अधिक पैसा कमाते हैं दो प्रकार के होते हैं: कॉल विकल्प (Call Option)और पुट विकल्प (Put Option)।

कॉल ऑप्शन(Call Option): कॉल ऑप्शन में, खरीदार के पास निर्दिष्ट तिथि पर निर्दिष्ट मूल्य पर विशेष संपत्ति खरीदने का अधिकार है, लेकिन दायित्व नहीं है। उदाहरण के लिए, यदि आप एक निर्दिष्ट तिथि पर INR 150 पर 100 शेयर खरीदने के लिए कंपनी ABC का कॉल ऑप्शन खरीदते हैं। समाप्ति की तारीख पर, कंपनी ABC का शेयर मूल्य 120 रुपये तक गिर गया है, और आप अनुबंध को निष्पादित करने के लिए तैयार नहीं हैं क्योंकि आप नुकसान कर रहे होंगे। आपके पास शेयर न खरीदने का अधिकार है, और इसके परिणामस्वरूप, आप केवल अनुबंध में प्रवेश करने के लिए भुगतान किए गए प्रीमियम को खो देंगे। इसलिए, INR 3,000 को खोने के बजाय, आप केवल भुगतान किए गए प्रीमियम को खो देंगे।

पुट ऑप्शन(Put Option): पुट ऑप्शन में, विकल्प धारक के पास निर्दिष्ट तिथि पर निर्दिष्ट मूल्य पर विशेष संपत्ति को बेचने का अधिकार है, लेकिन दायित्व नहीं है। उदाहरण के लिए, यदि आप एक निर्दिष्ट तिथि पर INR 150 पर 100 शेयर बेचने के लिए कंपनी ABC का पुट ऑप्शन खरीदते हैं। समाप्ति की तारीख पर, कंपनी ABC का शेयर मूल्य 180 रुपये तक बढ़ गया है, और आप अनुबंध को निष्पादित करने के लिए तैयार नहीं हैं क्योंकि आप नुकसान कर रहे होंगे। आपको शेयर न बेचने और INR 3,000 के नुकसान से बचने का अधिकार है।

फ्यूचर्स (Futures)

एक वायदा अनुबंध एक पूर्व निर्धारित मूल्य और मात्रा पर भविष्य की तारीख में एक अंतर्निहित परिसंपत्ति को खरीदने या बेचने का एक समझौता है। एक बार वायदा अनुबंध में प्रवेश करने के बाद, एक खरीदार और एक विक्रेता वर्तमान बाजार मूल्य की परवाह किए बिना अनुबंध को पूरा करने के लिए बाध्य होते हैं। अंतर्निहित परिसंपत्ति शेयर, ईटीएफ, अन्य वित्तीय साधन और यहां तक ​​कि तेल जैसी वस्तुएं भी हो सकती हैं। वायदा अनुबंध में मात्रा, कीमत और लेनदेन की तारीख का स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है। फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट एक डेरिवेटिव कॉन्ट्रैक्ट है जो स्टॉक एक्सचेंज में ट्रेड करता है। इसका उपयोग अटकलों या जोखिम की हेजिंग के लिए भी किया जा सकता है। हालांकि, वायदा अनुबंध के मुख्य उद्देश्यों में से एक बाजार की अस्थिरता के खिलाफ संपत्ति की कीमत को सुरक्षित और ठीक करना है। वायदा अनुबंध के पीछे मुख्य उद्देश्य अंतर्निहित परिसंपत्ति का आदान-प्रदान करना है। लेकिन सट्टेबाज वास्तव में उत्पाद विनिमय की तलाश नहीं करते हैं। इसके बजाय, वे मूल्य परिवर्तन का लाभ उठाना चाहते हैं और पैसा कमाना चाहते हैं। यह व्युत्पन्न उपकरण बहुत तरल है क्योंकि स्टॉक एक्सचेंज में इनका बहुत अधिक कारोबार होता है। हालांकि, वे काफी जोखिम भरे भी हो सकते हैं। फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट में मार्जिन और लीवरेज का फायदा उठाया जा सकता है। एक एक्सचेंज एक मार्जिन आवश्यकता निर्धारित करता है, जो कि न्यूनतम राशि है जिसे व्यापारी को वायदा में व्यापार करने के लिए जमा करने की आवश्यकता होती है। मार्जिन जितना कम होगा, लीवरेज उतना ही अधिक होगा। उदाहरण के लिए, यदि एक्सचेंज किसी वस्तु के लिए 5% का मार्जिन निर्धारित करता है, तो उत्तोलन 20 गुना है। इसका मतलब है कि कोई केवल 5 रुपये का निवेश करके 100 रुपये के लिए व्यापार कर सकता है। अनुबंध समाप्त होने के बाद, व्यापारी को पूरी राशि का भुगतान करना होगा। इसलिए जितना अधिक उत्तोलन, उतना अधिक जोखिम।

क्या कॉल या पुट अधिक पैसा कमाते हैं

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Income Tax on Share Market Earning: जानिए शेयर बाजार से हुई कमाई पर कैसे लगता है इनकम टैक्स, समझ लेंगे तो होगा फायदा ही फायदा!

Income Tax on Share Market Earning: शेयर बाजार से हुई कमाई (Share Market Earning) के साथ-साथ उस पर लगने वाले इनकम टैक्स (Income Tax) की जानकारी होना भी जरूरी है। अलग-अलग तरह की कमाई पर अलग-अलग दर से टैक्स (Taxation on Share Market Earning) लगता है। अगर आप शेयर बाजार से हुई कमाई पर इनकम टैक्स का सही कैल्कुलेशन (Income Tax Calculation on Share Market Earning) नहीं कर पाएंगे, तो आपको नुकसान हो सकता है। आइए जानते हैं शेयर बाजार से हुई कमाई पर कैसे और कितना लगता है टैक्स।

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Income Tax on Share Market Earning: जानिए शेयर बाजार से हुई कमाई पर कैसे लगता है इनकम टैक्स, समझ लेंगे तो होगा फायदा ही फायदा!

इंट्रा-डे और फ्यूचर-ऑप्शन ट्रेडिंग से हुई कमाई पर टैक्स

शेयर बाजार में अगर आप एक ही दिन में शेयर खरीद कर उसी दिन शाम तक बेच देते हैं तो इसे इंट्रा-डे ट्रेडिंग कहा जाता है। इस तरह से हुई कमाई को स्पेक्युलेटिव बिजनस इनकम कहा जाता है। वहीं फ्यूचर और ऑप्शन ट्रेडिंग से हुई कमाई को नॉन-स्पेक्युलेटिव बिजनस इनकम कहा जाता है। इंट्रा-डे और फ्यूचर-ऑप्शन ट्रेडिंग से हुई कमाई पर आपको टैक्स स्लैब के हिसाब से टैक्स देना होता है। यानी 2.5 लाख रुपये तक की कुल कमाई पर कोई टैक्स नहीं लगेगा, उसके ऊपर टैक्स स्लैब के हिसाब से टैक्स लगेगा।

शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन पर टैक्स

अगर आप शेयर बाजार में 1 साल से कम और 1 दिन से अधिक के लिए शेयर खरीदते हैं तो इससे हुए कमाई शॉर्ट टर्म कैपिल गेन कहलाती है। शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन पर आपको फ्लैट 15 फीसदी टैक्स देना होता है। हालांकि, अगर आपकी कुल कमाई 2.5 लाख रुपये तक ही है, तो आपको कोई टैक्स नहीं चुकाना होता है। इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ेगा कि आप कौन से टैक्स स्लैब में आते हैं।

लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन पर टैक्स

अगर शेयर बाजार में आप 1 साल से अधिक की अवधि के लिए शेयर खरीदते हैं तो 1 साल बाद उसे बेचने से हुई कमाई लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन कहलाती है। लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन पर 1 लाख रुपये तक की कमाई पर कोई टैक्स नहीं लगता है, जबकि उससे अधिक की कमाई पर फ्लैट 10 फीसदी का टैक्स लगता है। इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप किस टैक्स स्लैब में आते हैं। हालांकि, अगर आपकी कुल कमाई 2.5 लाख रुपये तक ही है, तो आपको कोई टैक्स नहीं चुकाना होता है।

बैंक FD या NCD में निवेश से पहले क्या रखें ध्यान?

बैंक FD या NCD में निवेश कर आप बैंक फिक्स्ड डिपाजिट की तुलना में अधिक पैसे कमा सकते हैं.

बैंक FD या NCD में निवेश से पहले क्या रखें ध्यान?

बढ़ती ब्याज दरों के इस माहौल में नियमित आमदनी चाहने वाले निवेशकों के लिए काफी विकल्प उपलब्ध हैं. बैंक अब फिक्स्ड डिपाजिट (FD) पर ब्याज दरें बढ़ा रहे हैं. निवेशकों से पैसे जुटाने के लिए कंपनियां बैंक FD से अधिक ब्याज ऑफर कर रही हैं.

इसके साथ ही बाजार में निवेश के लिए बांड्स और नॉन कन्वर्टिबल डिबेंचर्स (NCD) भी उपलब्ध हैं.

इन विकल्पों में निवेश कर आप बैंक फिक्स्ड डिपाजिट की तुलना में अधिक पैसे कमा सकते हैं.

बाजार में इन दिनों NCD की भरमार है. टाटा कैपिटल, डीएचएफएल, इंडियाबुल्स कमर्शियल क्रेडिट, आधार हाउसिंग जैसी कंपनियां NCD से पैसे जुटा रही हैं.

कंपनी फिक्स्ड डिपाजिट की तुलना में NCD ज्यादा सुरक्षित निवेश विकल्प है.

बैंकों की आम ब्याज दर की तुलना में इन NCD में निवेश कर निवेशक 2 से 2.75 फीसदी अधिक रिटर्न कमा सकते हैं. आप डिबेंचर को आप स्टॉक एक्सचेंज के जरिये खरीद या बेच सकते हैं.

यहां सवाल यह उठता है कि क्या NCD बैंक FD से अधिक सुरक्षित है?

इसे भी पढ़ें: FD या MF, टैक्स बचत में कौन करेगा मदद?

हम आपको आठ चीजें बता रहे हैं जिनकी मदद से आप इस सवाल का जवाब पा सकते हैं.

1.ब्याज दरें
इस समय 3-5-10 साल के लिए अधिकतर बैंक सात फीसदी तक का ब्याज ऑफर कर रहे हैं. इसी अवधि के लिए आपको NCD पर नौ फीसदी या उससे अधिक का रिटर्न मिल रहा है. बढ़ती ब्याज दरों के इस माहौल में आगे आने वाली NCD पर आपको और अधिक ब्याज कमाने का मौका मिल सकता है.

इस निवेश पर आपको दो फीसदी तक अधिक ब्याज कमाने का मौका मिल रहा है.

2.कर देनदारी
बैंक FD की तरह ही NCD पर कमाया गया ब्याज आपकी कुल आमदनी में जोड़ दिया जाता है. इस पर आपको अपने इनकम टैक्स स्लैब के हिसाब से टैक्स चुकाना पड़ता है.

अगर आपको बैंक FD पर 7.5 फीसदी रिटर्न मिल रहा है और आप पांच फीसदी टैक्स ब्रैकेट में आते हैं तो आपके लिए FD पर प्रभावी ब्याज दर 7 फीसदी होती है.

3.कैपिटल गेंस/लॉस की संभावना
जिस तरह आप बैंक FD पर कैपिटल गेंस या लॉस का लाभ नहीं उठा सकते, उसी तर्ज पर NCD भी इसके दायरे से बाहर है. जब ब्याज दरों में बदलाव होता है तो शेयर बाजार में सूचीबद्ध NCD की वैल्यू में बदलाव आता है.

4.अवधि
बैंक FD आप सात दिन से लेकर 10 साल के लिए शुरू कर सकते हैं. इसमें अवधि के हिसाब से ब्याज दरों में अंतर हो सकता है. NCD भी आमतौर पर एक से दस साल के लिए ऑफर किये जाते हैं. NCD निवेश के लिए हर समय उपलब्ध नहीं होते. इन्हें कंपनियां सीमित अवधि के लिए पेश करती हैं.

5.कैसे करें निवेश?
बैंक FD में निवेश के लिए आपको बैंक जाना पड़ता है. आप ऑनलाइन भी बैंक में फिक्स्ड डिपाजिट कर सकते हैं. NCD में निवेश के लिए आपके पास डीमैट अकाउंट होना जरूरी है. डीमैट अकाउंट किसी ब्रोकरेज हाउस के साथ खोला जा सकता है.

6. पेमेंट की फ्रीक्वेंसी
बैंक FD में ब्याज पाने के लिए आप तिमाही, छमाही या सालाना अवधि तय कर सकते हैं. NCD में निवेश करने पर आपको इस तरह की कोई सुविधा नहीं मिलती. NCD में ब्याज आपको मैच्योरिटी पर ही मिलता है.

7. तरलता की स्थिति (किसी भी समय पैसे निकालने की सुविधा)
बैंक FD को आप किसी भी समय तोड़ सकते हैं और अपने पैसे निकाल सकते हैं. कुछ FD में हालांकि समय से पहले रकम निकालने की सुविधा नहीं होती.

NCD में कॉल या पुट ऑप्शन नहीं होता. इसमें आपको निवेश लंबी अवधि के लक्ष्य के साथ ही करना चाहिए. NCD शेयर बाजार में सूचीबद्ध होती हैं और कम तरलता की वजह से कई बार इनसे अपनी जरूरत के हिसाब से निकलना मुश्किल हो सकता है.

8.सुरक्षा
सरकार ने इस साल अगस्त में वित्तीय समाधान एवं डिपॉजिट इंश्योरेंस (FRDI) बिल संसद से वापस ले लिया था. बैंक में आपका जमा डिपाजिट इंश्योरेंस एवं क्रेडिट गारंटी कॉर्पोरेशन से बीमित होता है.

NCD की सुरक्षा उसकी रेटिंग और डिबेंचर के प्रकार पर निर्भर करती है. बहुत अच्छी रेटिंग वाली NCD भी जोखिम भरा हो सकता है. NCD खुद में सुरक्षित या असुरक्षित हो सकता है. इसमें निवेश से पहले सभी पहलुओं को ध्यान से देखें.

अगर आप चाहें तो स्माल फाइनेंस बैंक में प्रतियोगी दरों पर पैसे जमा कर ब्याज कमा सकते हैं. इनमें AU स्माल फाइनेंस बैंक, फिनकेयर, सूर्योदय, जना, उज्जीवन आदि शामिल हैं.

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Stock Market Trading: इन तरीकों से बढ़ा सकते हैं स्टॉक मार्केट से कमाई, जानिए कैसे घट जाता है वास्तविक मुनाफा

Stock Market Trading: स्टॉक मार्केट में कारोबार करते हैं तो सभी चार्जेज को आसानी से समझें ताकि मुनाफा बढ़ा सकें. मुनाफे के मामले में एनएसई और बीएसई पर ट्रेडिंग में भी फर्क है.

Stock Market Trading: इन तरीकों से बढ़ा सकते हैं स्टॉक मार्केट से कमाई, जानिए कैसे घट जाता है वास्तविक मुनाफा

स्टॉक मार्केट में जब आप पैसे लगाते हैं तो ब्रोकरेज, एसटीटी (सिक्योरिटी ट्रांजैक्शन फीस), एक्सचेंज ट्रांजैक्शन चार्ज, जीएसटी, सेबी चार्ज, स्टांप ड्यूटी जैसे टैक्स व चार्जेज चुकाने होते हैं और इन्हें काटकर ही शुद्ध मुनाफा या नुकसान आपको हासिल होता है. (Image- Pixabay)

Stock Market Trading:क्या कॉल या पुट अधिक पैसा कमाते हैं अगर आप स्टॉक मार्केट में कारोबार करते हैं और शेयरों की सक्रिय रूप से खरीद-बिक्री करते हैं तो इससे जुड़े चार्जेज के बारे में पहले से कैलकुलेशन कर लेना चाहिए. यह कैलकुलेशन इसलिए जरूरी है क्योंकि इससे मुनाफा बढ़ाने में मदद मिलती है. इक्विटी में जब आप पैसे लगाते हैं तो यह इंट्रा-डे होता है या डिलीवरी या फ्यूचर या ऑप्शंस, इन सभी तरीकों में पैसे लगाने पर क्या कॉल या पुट अधिक पैसा कमाते हैं मुनाफा अलग-अलग हासिल होता है. स्टॉक मार्केट में जब आप पैसे लगाते हैं तो ब्रोकरेज, एसटीटी (सिक्योरिटी ट्रांजैक्शन फीस), एक्सचेंज ट्रांजैक्शन चार्ज, जीएसटी, सेबी चार्ज, स्टांप ड्यूटी जैसे टैक्स व चार्जेज चुकाने होते हैं और इन्हें काटकर ही शुद्ध मुनाफा या नुकसान आपको हासिल होता है.

इन चार तरीकों से होती है ट्रेडिंग

  • Intra-Day Equity: जब आप शेयर की खरीद-बिक्री यानी लांग या शॉर्ट पोजिशन सिर्फ एक ही दिन के लिए लेते हैं यानी कि आज ही खरीदकर बेच दिया तो यह इंट्रा-डे के तहत माना जाता है. इसमें इक्विटी की होल्डिंग नहीं मिलती है.
  • Delivery Equity: इंट्रा-डे के विपरीत डिलीवरी ट्रेडिंग में आप जो शेयर खरीदते हैं, उसे डीमैट खाते में रखा जाता है और इसकी होल्डिंग कुछ समय के लिए मिलती है. इंट्रा-डे में चाहे घाटा हो या फायदा, पोजिशन को स्क्वॉयर ऑफ करना जरूरी होता है, जबकि डिलीवरी इक्विटी ट्रेडिंग में अपने हिसाब से जब चाहें किसी भी कारोबारी समय पर शेयरों की बिक्री कर सकते हैं.
  • Future: यह खरीदार और विक्रेता के बीच एक वायदा है जिसके तहत एक खास दिन निश्चित प्राइस पर स्टॉक्स का लेन-देन होता है. सौदा हो जाने के बाद दोनों ही पार्टियों को इस सौदे को पूरा करना अनिवार्य है और कोई भी पक्ष मुकर नहीं सकता है.
  • Options: ऑप्शंस के तहत किसी खास दिन निश्चित प्राइस पर लेन-देन के लिए एक सौदा होता है जिसमें कुछ प्रीमियम चुकाना होता है. ऑप्शंस के तहत कॉल और पुट दो विकल्प मिलते हैं. कॉल ऑप्शंस के तहत खरीदार को खरीदने का अधिकार मिलता है और पुट ऑप्शंस के तहत बेचने का.

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मुनाफे पर ऐसे पड़ता है असर

ऊपर चार तरीकों के बारे में जानकारी दी गई जिससे आप शेयर मार्केट के जरिए पैसे कमाते हैं. अब नीचे देखते हैं कि आपको सभी तरीके से कितना मुनाफा हो रहा है-

  • मान लेते हैं कि आप किसी कंपनी के 1 हजार रुपये के 400 शेयरों को खरीदकर इंट्रा-डे में ही 1100 रुपये में बेच देते हैं तो कुल टर्नओवर 8.40 लाख रुपये का हुआ. इस पर ब्रोकरेज, एसटीटी, एक्सचेंज ट्रांजैक्शन फीस, जीएसटी, सेबी शुल्क और स्टांप ड्यूटी मिलाकर करीब 202.24 रुपये टैक्स व चार्जेज के रूप में चुकाने होंगे. इस ट्रेडिंग में आपको 39795.76 रुपये का मुनाफा होगा.
  • अगर आप 1 हजार रुपये के 400 शेयरों को खरीदकर डिलीवरी लेते हैं यानी कि उनकी बिक्री किसी और दिन 1100 रुपये के भाव पर करते हैं तो कुल टर्नओवर 8.40 लाख रुपये का हुआ लेकिन टैक्सेज व चार्जेज के रूप में 935.04 रुपये चुकाने होंगे. इसमें 39064.96 रुपये का मुनाफा हुआ जो इंट्रा-डे ट्रेडिंग से कम है. हालांकि इंट्रा-डे में बहुत रिस्क है क्योंकि इसमें मुनाफा हो या नुकसान, पोजिशन को स्क्वॉयर ऑफ करना ही होगा.
  • फ्यूचर के मामले में अगर आपने 400 शेयरों को 1000 रुपये में खरीदकर 1100 रुपये में बेचा है तो 8.4 लाख रुपये के टर्नओवर वाले इस ट्रांजैक्शन में 119.86 रुपये का टैक्स व चार्जेज चुकाने होंगे. इसमें 39880.14 रुपये का मुनाफा होगा.
  • अगर ऑप्शंस के तहत 1 हजार रुपये के 400 शेयरों के लिए सौदा किया है जिसकी बिक्री 1100 रुपये के भाव पर होती है तो 8.4 लाख रुपये के टर्नओवर के इस सौदे में 805.38 रुपये टैक्स व चार्जेज के रूप में चुकाने होंगे. इसमें 39194.62 रुपये का मुनाफा होगा.
    (यह कैलकुलेशन ब्रोकरेज फर्म Zerodha के कैलकुलेटर से किया गया है और इसमें एनएसई- नेशनल स्टॉक एक्सचेंज पर ट्रेडिंग का कैलकुलेशन है. सभी फर्मों के लिए ब्रोकरेज जैसे चार्जेज भिन्न होते हैं.)

F&O ट्रेडिंग में BSE क्या कॉल या पुट अधिक पैसा कमाते हैं क्या कॉल या पुट अधिक पैसा कमाते हैं पर NSE की तुलना में अधिक मुनाफा

Zerodha कैलकुलेटर के मुताबिक अगर आप एनएसई की बजाय बीएसई पर फ्यूचर एंड ऑप्शंस ट्रेडिंग करते हैं तो मुनाफा बढ़ सकता है. बीएसई पर F&O के लिए कोई एक्सचेंज ट्रांजैक्शन फीस नहीं लगता है और इससे जीएसटी भी कम हो जाता है. ध्यान रहे कि इंट्रा-डे इक्विटी और डिलीवरी इक्विटी में बीएसई पर एक्सचेंज ट्रांजैक्शन फीस एनएसई के बराबर ही चुकानी होती है.

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