रचनावाद-आधारित शिक्षण और अधिगम की सुविधा के लिए सामाजिक और सांस्कृतिक सामंजस्य बनाना

कई शोधकर्ता मानते हैं प्लेटफार्म की शैक्षिक संभावनाएं कि अधिगम का एक सामाजिक संदर्भ होता है। इसका अर्थ है ज्ञान का निर्माण, और इसके बाद यह मानव विकास दूसरों के साथ परस्पर बातचीत के माध्यम से होता है। सामाजिक संरचनावाद एक ऐसा सिद्धांत है जो अधिगम की प्रक्रिया में प्रत्यक्ष भागीदारी की प्रकृति पर जोर देता है और उसकी व्याख्या करता है।

संरचनावाद को आमतौर पर अधिगम के सिद्धांत के रूप में दर्शाया जाता है जिसमें अधिगमकर्ता डेटा की व्यक्तिगत संरचना बनाने के लिए ज्ञान के साथ महत्वपूर्ण जुड़ाव के माध्यम से अपनी समझ का निर्माण करते हैं। केवल जानकारी प्राप्त करने के बजाय, अधिगमकर्ता डेटा स्रोतों के प्रसार और दूसरों के साथ चर्चा से अर्थ तलाशता है। शिक्षण अभ्यास व्याख्यान और अन्य संचारण विधियों से अधिगम के लिए समस्या-आधारित, सहयोगात्मक और अनुभवजन्य डिजाइनों में बदल जाता है।

इस सिद्धांत के अनुसार, केवल नए ज्ञान को आत्मसात करने से ही व्यक्ति के भीतर अधिगम नहीं होता है। सामाजिक और सांस्कृतिक व्यवस्थाएँ जिनमें अधिगम होता है, इसमें प्राथमिक भूमिका निभाते हैं। सफल शिक्षण और अधिगम पारस्परिक बातचीत, संचार और चर्चा पर निर्भर करता है, छात्रों की चर्चा की समझ पर ध्यान केंद्रित करता है। यह सिद्धांत शिक्षकों को कक्षा में बातचीत को प्रोत्साहित करने और सुविधाजनक बनाने के लिए प्रोत्साहित करता है।

कई अध्ययनों से पता चलता है कि कक्षा में छात्र चर्चा के परिणामस्वरूप नए ज्ञान काउद्भव होता है और कौशल का विकास होता है जो सामाजिक संरचनावाद के सिद्धांत का समर्थन करता है। उदाहरण के लिए, कक्षा में समूह चर्चा में भाग लेने से छात्र चर्चा के टॉपिक को बेहतर ढंग से समझ सकते हैं, अपने ज्ञान को स्थानांतरित कर सकते हैं और अपने संचार कौशल को विकसित कर सकते हैं।

संरचनावाद शिक्षण और अधिगम को इस प्रकार आकार देता है:

  1. एक निरंतर गतिविधि
  2. अर्थ की खोज
  3. अनुकूलित पाठ्यक्रम का सुझाव देने वाले विद्वानों और अन्य ज्ञान निर्माताओं के मानसिक मॉडल को समझना
  4. मूल्यांकन प्रशिक्षण प्रक्रिया का एक घटक है
  5. परस्पर बातचीत के माध्यम से एक सहयोगी प्रक्रिया को सुगम बनाना।

संरचनावाद अधिगम के प्रति शिक्षकों और छात्रों का एक सहयोगपूर्ण दृष्टिकोण है।

सामाजिक संरचनावादी शिक्षण मॉडल में शिक्षकों की जिम्मेदारियों में से एक प्रत्येक छात्र के व्यक्तित्व को पहचानना है। ‘समीपस्थ विकास के क्षेत्र’ के रूप में वर्णित, यह वह क्षेत्र है जहां छात्र को चुनौती दी जाती है लेकिन अभिभूत नहीं किया जाता है, जहां वे सुरक्षित रह सकते हैं और अनुभव से कुछ नया सीख सकते हैं।

इसका अर्थ यह है कि शिक्षण की प्रक्रिया को वही से शुरू करना चाहिए जो छात्र पहले से जानता है और फिर एक और ढांचा तैयार करना चाहिए जो आगे के ज्ञान का समर्थन करता है।

सामाजिक संरचनावाद में, छात्रों को परस्पर संवाद के माध्यम से बोलना सीखना चाहिए और बाद में कॉन्सेप्ट के बीच व्यक्तिपरक संबंध बनाकर भाषण के अर्थ को समझना चाहिए। इसलिए, छात्रों को अधिगम सामग्री के माध्यम से चुनौती दी जानी चाहिए जिससे संभावना है कि वे अपने दम पर इसे पूरा करने में इसे असमर्थ हो, लेकिन मदद से, सफलतापूर्वक सीख सकते हैं। यह अभ्यंतर कारकों पर विचार करके किया जा सकता है, जिसमें अधिगमकर्ता के पूर्व संज्ञानात्मक अनुभव शामिल हैं जो नई जानकारी की व्याख्या और समझने के तरीकों को प्रभावित करते हैं। इसलिए, ज्ञान प्राप्त करने में निर्माण और पुननिर्माण की एक निरंतर प्रक्रिया शामिल है। इस प्रकार की कक्षा में व्यक्तियों को भी अधिगमकर्ता का एक समुदाय माना जा सकता है। शिक्षक अक्सर अधिगम का अवश्यंभावी सपोर्ट सिस्टम है। इसलिए, सामाजिक संरचनावादी वातावरण प्लेटफार्म की शैक्षिक संभावनाएं में शिक्षण को ज्ञान निर्माण को प्रोत्साहित करना चाहिए और निर्णय और संगठन सहित कौशल विकास को बढ़ावा देना चाहिए।

Embibe के प्रोडक्ट/फीचर:लाइव डाउट रिजॉल्यूशन, पेरैंट एप्प, टीचर एप्प विथ JioMeet

Embibe “लाइव डाउट रिजॉल्यूशन” के प्लेटफार्म की शैक्षिक संभावनाएं प्लेटफार्म की शैक्षिक संभावनाएं अपने फीचर के साथ सामाजिक संरचनावाद पर जोर देता है, जो छात्रों को 24X7 शैक्षणिक चैट सपोर्ट देता है और छात्रों को प्रश्नों में आने वाली समस्याओं का समाधान करने में मदद करता है। Embibe एप्प के अलावा, हमारे पास एक पेरैंट एप्प और एक टीचर एप्प भी है, जो शिक्षा पारिस्थितिकी प्लेटफार्म की शैक्षिक संभावनाएं तंत्र में तीन हितधारकों के बीच एक मजबूत त्रिकोण बनाता है। शिक्षक और अभिभावक इन एप्प पर छात्रों को निकटता से मॉनिटर कर सकते हैं और उन्हें रिवॉर्ड दे सकते हैं। जिओ मीट के माध्यम से, हम अभिभावक और शिक्षकों के बीच सकारात्मक संबंध बनाते हैं जिसके परिणामस्वरूप बच्चों के शैक्षणिक ज्ञान और कौशल, सामाजिक दक्षताओं और भावनात्मक कल्याण में सुधार हुआ है। जब अभिभावक और शिक्षक भागीदार के रूप में काम करते हैं, तो बच्चे कक्षा में और अंततः जीवन में बेहतर करते हैं।

केंद्र सरकार: एक बार फिर कर्मचारियों के DA और DR में 3 से 5 फीसदी बढ़ोतरी की संभावना हुई तेज़। जानें क्या है पूरी खबर?

वायरल हो रहे ख़बर में DA और DR के 3 से 5 प्रतिशत बढ़ोतरी की बात कही गई है लेकिन अभी इसकी कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है। हां बीते कुछ प्लेटफार्म की शैक्षिक संभावनाएं महीनों की बढ़ती महंगाई और AICPI के आंकड़ों को देखते हुए सरकार जनवरी-2023 में DA, DR में वृद्धि ज़रूर कर सकती है।

AICPI आंकड़ों के अनुसार जनवरी 2023 में कर्मचारियों और पेंशनरों के DA, DR में 3 से 5 फीसदी की वृद्धि होने की संभावना है। जिससे देश भर के 48 लाख केंद्र सरकार के कर्मचारियों और 68 लाख पेंशनभोगियों को लाभ मिलेगा।

साल में दो बार DA और DR में होता है संसोधन

आपको बता दें कि सरकार कर्मचारियों का महंगाई भत्ता एवं महंगाई राहत का साल में दो बार जनवरी एवं जुलाई में संसोधन करती है। यह कर्मचारियों के ज्वाइन डेट के आधार पर किया जाता है।

जिन कर्मचारियों की नियुक्ति माह जनवरी, फरवरी, मार्च, अप्रैल, मई, एवं जून तक होती है उनका महंगाई भत्ता एवं महंगाई राहत जनवरी में संसोधित किया जाता है। वहीं इसके अलावा माह में नियुक्त हुए कर्मचारियों का महंगाई भत्ता एवं महंगाई रहत जुलाई में संसोधित किया जाता है।

केंद्र सरकार: एक बार फिर कर्मचारियों के DA और DR में 3 से 5 फीसदी बढ़ोतरी की संभावना हुई तेज़। जानें क्या है पूरी खबर?

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AICPI आंकड़ों के अनुसार जनवरी 2023 में कर्मचारियों और पेंशनरों के DA, DR में 3 से 5 फीसदी की वृद्धि होने की संभावना है। जिससे देश भर के 48 लाख केंद्र सरकार के कर्मचारियों और 68 लाख पेंशनभोगियों को लाभ मिलेगा।

साल में दो बार DA और DR में होता है संसोधन

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जिन कर्मचारियों की नियुक्ति माह जनवरी, फरवरी, मार्च, अप्रैल, मई, एवं जून तक होती है उनका महंगाई भत्ता एवं महंगाई राहत जनवरी में संसोधित किया जाता है। वहीं इसके अलावा माह में नियुक्त हुए कर्मचारियों का प्लेटफार्म की शैक्षिक संभावनाएं महंगाई भत्ता एवं महंगाई रहत जुलाई में संसोधित किया जाता है।

पीएमइंडिया

डॉ. मनमोहन सिंह

भारत के चौदहवें प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन प्लेटफार्म की शैक्षिक संभावनाएं सिंह विचारक और विद्वान के रूप में प्रसिद्ध है। वह अपनी नम्रता, कर्मठता और कार्य के प्रति प्रतिबद्धता के लिए जाने जाते हैं।
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का जन्म 26 सितम्बर 1932 को अविभाजित भारत के पंजाब प्रान्त के एक गाँव में हुआ था। डॉ. सिंह ने वर्ष 1948 में पंजाब विश्वविद्यालय से मेट्रिक की शिक्षा पूरी की। उसके बाद उन्होंने अपनी आगे की शिक्षा ब्रिटेन के कैंब्रिज विश्वविद्यालय से प्राप्त की। 1957 में उन्होंने अर्थशास्त्र में प्रथम श्रेणी से ऑनर्स की डिग्री अर्जित की। इसके बाद 1962 में उन्होंने ऑक्सफ़ोर्ड विश्वविद्यालय के नूफिल्ड कॉलेज से अर्थशास्त्र में डी.फिल किया। उन्होंने अपनी पुस्तक “भारत में निर्यात और आत्मनिर्भरता और विकास की संभावनाएं” में भारत में निर्यात आधारित व्यापार नीति की आलोचना की थी।
पंजाब विश्वविद्यालय और दिल्ली स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स में डॉ. सिंह ने शिक्षक के रूप में कार्य किया जो उनकी अकादमिक श्रेष्ठता दिखाता है। इसी बीच में कुछ वर्षों के लिए उन्होंने यूएनसीटीएडी सचिवालय के लिए भी कार्य किया। इसी के आधार पर उन्हें 1987 और 1990 में जिनेवा में दक्षिण आयोग के महासचिव के रूप में नियुक्ति किया गया।
1971 में डॉ. सिंह वाणिज्य मंत्रालय में आर्थिक सलाहकार के रूप में शामिल हुए। 1972 में उनकी नियुक्ति वित्त मंत्रालय में मुख्य आर्थिक सलाहकार के रूप में हुई। डॉ. सिंह ने वित्त मंत्रालय के सचिव; योजना आयोग के उपाध्यक्ष; भारतीय रिजर्व बैंक के अध्यक्ष; प्रधानमंत्री के सलाहकार; विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के अध्यक्ष के रूप में कार्य किया।
डॉ सिंह ने 1991 से 1996 तक भारत के वित्त मंत्री के रूप में कार्य किया जो स्वतंत्र भारत के आर्थिक इतिहास में एक निर्णायक समय था। आर्थिक सुधारों के लिए व्यापक नीति के निर्धारण में उनकी भूमिका को सभी ने सराहा है। भारत में इन वर्षों को डॉ. सिंह के व्यक्तित्व के अभिन्न अंग के रूप में जाना जाता है।
डॉ. सिंह को मिले कई पुरस्कारों और सम्मानों में से सबसे प्रमुख सम्मान है – भारत का दूसरा सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म विभूषण(1987); भारतीय विज्ञान कांग्रेस का जवाहरलाल नेहरू जन्म शताब्दी पुरस्कार (1995); वर्ष के वित्त मंत्री के लिए एशिया मनी अवार्ड (1993 और 1994); वर्ष के वित्त मंत्री के लिए यूरो मनी अवार्ड (1993), कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय (1956) का एडम स्मिथ पुरस्कार; कैम्ब्रिज के सेंट जॉन्स कॉलेज में विशिष्ट प्रदर्शन के लिए राइट पुरस्कार (1955)। डॉ. सिंह को जापानी निहोन किजई शिम्बुन एवं अन्य संघो द्वारा सम्मानित किया जा चुका है। डॉ. सिंह को कैंब्रिज एवं ऑक्सफ़ोर्ड तथा अन्य कई विश्वविद्यालयों द्वारा मानद उपाधियाँ प्रदान की गई हैं।
डॉ. सिंह ने कई अंतरराष्ट्रीय संगठनों और सम्मेलनों में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। उन्होंने 1993 में साइप्रस में राष्ट्रमंडल प्रमुखों की बैठक में और वियना में मानवाधिकार पर हुए विश्व सम्मेलन में भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व किया है।
अपने राजनीतिक जीवन में डॉ. सिंह 1991 से भारतीय संसद के उच्च सदन (राज्य सभा) के सदस्य रहे जहाँ वे प्लेटफार्म की शैक्षिक संभावनाएं 1998 से 2004 तक विपक्ष के नेता थे। डॉ. मनमोहन सिंह ने 2004 के आम चुनाव के बाद 22 मई 2004 को प्रधानमंत्री के रूप के शपथ ली और 22 मई 2009 को दूसरी बार प्रधानमंत्री बने।
डॉ. सिंह और उनकी पत्नी श्रीमती गुरशरण कौर की तीन बेटियां हैं।

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