Market में Option खरीदने पर हमेशा नुकसान क्यों होता है?

आप ने ऐसा देखा होगा जब आप किसी ऑप्शन को खरीदते है तो अंत समय में आपको नुकसान होता है ऑप्शन खरीदने वाला अधिकतर नुकसान होता है और Option Seller को फायदा इसके पीछे सबसे बड़ा कारण है समय, जी हां दोस्तों जब आप किसी ऑप्शन को खरीदते है तो उसमे कुल वैल्यू में टाइम नहीं रहता है, वह ऑप्शन Expiry के समय उसकी किमत जीरो हो जाती है जितनी भी Out of the Money Option होती है वे सभी जब आप कॉल या पुट को खरीदते है शेयर की किमत भले ही बढ़े या कम ना हो लेकिन समय हमेशा बीतता रहता है जो Option Buyer के लिए Advantage की बात होती है इस कारण से बेचने वाले को अधिकतर फायदा और बेचने वाले को नुकसान होता है!

आम तौर पर ऐसा माना जाता है जो ऑप्शन बेचने वाला बुद्धिमान होता और खरीदने वाला हमेशा कमजोर जो ऑप्शन को बेचते है उसको यह बात पता होती की जब उसको नुकशान होगा तो कितना हो सकता है और फायदा कितना सकता है, जो ऑप्शन को खरीदता है वह हमेशा यही सोचता है की उसको फायदा होगा तो कितना हो सकता है!

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धनतेरस: अब आज की कीमत पर भविष्य में खरीदें और बेचें सोना

सोना खरीदने और बेचने में ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट के जरिए अब सोना खरीदारों को मौजूदा तारीख में सोना खरीदने अथवा मौजूदा तारीख में सोने के भाव पर भविष्य में सोना बेचने का अधिकार रहेगा.

ये है देश में सोना खरीदने और बेचने का सबसे बड़ा रिफॉर्म

राहुल मिश्र

  • नई दिल्ली,
  • 17 अक्टूबर 2017,
  • (अपडेटेड 17 अक्टूबर 2017, 12:13 PM IST)

केन्द्र सरकार ने देश में सोना खरीदने और बेचने के नियम में बड़ा सुधार करते हुए धनतेरस के मौके पर सोने में ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट की शुरुआत की है. सोना खरीदने और बेचने में ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट को वित्त मंत्री अरुण जेटली ने मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज पर लॉन्च किया.

सोना खरीदने और बेचने में ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट के जरिए अब सोना खरीदारों को मौजूदा तारीख में सोना खरीदने अथवा मौजूदा तारीख में सोने के भाव पर भविष्य में सोना बेचने का अधिकार रहेगा.

गौरतलब है कि सोना कारोबारियों को देश में सोना खरीदने और बेचने के लिए इस ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट का इंतजार 2003 से है जब तत्कालीन अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने देश में कमोडिटी मार्केट को बाजार के हवाले कर दिया था.

कमोडिटी मार्केट के जानकारों का मानना है कि केन्द्र सरकार सोने के अलावा भी कई अन्य कमोडिटीज में भी ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट की शुरुआत कर सकती है.

क्या है ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट

ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट दो पार्टियों के बीच वह समझौता है जिसके तहत एक निश्चित सिक्योरिटी पर किसी कमोडिटी की खरीद और बिक्री की मौजूदा दरों पर भविष्य में बेचा और खरीदा जा सके. इस कॉन्ट्रैक्ट के लिए दोनों पार्टियों को रेट निर्धारित करने के साथ-साथ भविष्य की वह तारीख भी निर्धारित करनी रहती है जिसपर यह खरीद और फरोख्त पूरी होगा. अथवा इस निर्धारित तारीख के बाद दोनों पार्टिटों के बीच यह कॉन्ट्रैक्ट रद्द हो जाएगा.

खरीदारों को मिलेगा पुट और कॉल ऑप्शन

ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट के तहत खरीदारों के पास दो तरह के कॉन्ट्रैक्ट रहते हैं. इन्हें पुट और कॉल ऑप्शन कहते हैं. पुट ऑप्शन यानी बेचने का अधिकार और कॉल ऑप्शन यानी खरीदने का अधिकार.

ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट के जरिए खरीदारों को भविष्य के किसी खतरे को कवर करने का मौका मिलता है. इसके साथ ही इस तरह किसी कमोडिटी में निवेश कर खरीदार अपनी आमदनी बढ़ा सकता है. गौरतलब है कि सोना कारोबारियों को अभीतक मौजूदा व्यवस्था में सोने के अंतरराष्ट्रीय मार्केट में उतार-चढ़ाव से हमेशा नुकसान का सामना करना पड़ता था. या तो उन्हें महंगी दरों पर खरीदे हुए सोने को सस्ती दरों पर बेचना पड़ता था क्योंकि खरीदे और बेचे जाने वाले दिनों में सोने कीमत अंतरराष्ट्रीय बाजार में गिर जाती है.

गौरतलब है कि कमोडिटी मार्केट में सोने की खरीद और बिक्री के इस ऑप्शन के बाद छोटे निवेशकों के लिए भी कमोडिटी बाजार का दरवाजा खुल जाएगा. इसके चलते बतौर निवेश संसाधन वह सोने की खरीद औऱ बिक्री कर अपने भविष्य के खतरे को कवर करने अथवा अपनी आय बढ़ाने की कोशिश कर सकता है.

अमेरिका और ब्राजील में ऐसे ही होती है सोने में ट्रेडिंग

दुनिया के अन्य कमोडिटी बाजारों में मुख्यरूप से अमेरिका और ब्राजील में इस ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट के तहत सोने की खरीद और बिक्री की जाती है. अमेरिका ने 1982 में तो ब्राजील ने 1986 ने अपने ट्रेडिंग एक्सचेंज में ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट की शुरुआत की थी. मौजूदा समय में इन देशों के कमोडिटी मार्केट में सोने के अलावा अन्य कमोडिटीज जैसे कॉफी और मवेशियों में ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट के तहत ट्रेडिंग की जाती है.

शेयर मार्केट में थीटा की गणना कैसे की जाती है?

एक ऑप्शन ट्रेडर को, सफल और उपयोगी ट्रेडों को निष्पादित करने के लिए, यह ध्यान रखना चाहिए कि विश्लेषण ऑप्शंस बाजार का थंब रूल (नियम) है। कोई भी रणनीति बेकार नहीं जाती अगर आप उन्हें सही स्टॉक और उपयुक्त निवेश लक्ष्य के लिए सही तरीके से चुनते है। आइए एक अवधारणा सीखें जो ऑप्शंस का अध्ययन करने और उन्हें मापने के लिए विभिन्न पैरामीटर प्रदान करती है। ऑप्शन ग्रीक अर्थात् डेल्टा,गामा, थीटा,वेगा और रो (rho) स्टॉक की कीमतों,बाजार की अस्थिरता, और समय के हिसाब से ऑप्शन की कीमत की सापेक्ष संवेदनशीलता को मापने का एक तरीका है। प्रत्येक ग्रीक वर्णमाला के उपयोग को समझने के लिए हमारा "ऑप्शन ग्रीक्स” का ब्लॉग जरूर पढ़ें। इस ब्लॉग में, हम विशेष रूप से थीटा के बारे में चर्चा करेंगे, और देखेंगे की थीटा की गणना कैसे की जाती है।

थीटा (θ)

यह ऑप्शन ट्रेडिंग में बहुत मददगार होता है यदि आप किसी विशेष ऑप्शन की स्थिति को बंद करने के लिए समय विंडो (Time Window) जानते हैं, जिसे आमतौर पर "समाप्ति का समय" (Time to Expiration) कहा जाता है। थीटा की विशेष भूमिका समय क्षय (Time Decay) पर ध्यान केंद्रित करना है। समय क्षय (time decay) आपके ऑप्शन पोजीशन को कैसे प्रभावित कर रहा है यह जानने के लिए आम तौर पर थीटा का उपयोग किया जाता है । थीटा आपको यह मापने में मदद करता है कि समय के साथ एक ऑप्शन कितना मूल्य खो देता है। यदि आप ऑप्शंस में रुचि रखते हैं, तो एक्सपायरी का समय एक महत्वपूर्ण कारक है जिस पर विचार किया जाना चाहिए क्योंकि आप अपनी रणनीतियों का निर्माण कर रहे हैं।

थीटा की गणना (θ)

जैसे जैसे ऑप्शन समाप्ति तक पहुंचता है थीटा समय के साथ ऑप्शन के मूल्य (प्रीमियम) में गिरावट को मापता है।

थीटा = एक विकल्प प्रीमियम में परिवर्तन / समाप्ति के समय में परिवर्तन।

आमतौर पर थीटा लंबे ऑप्शंस के लिए नकारात्मक (negative) होता है, चाहे वह कॉल हो या पुट।

जैसे जैसे समय बीतता जाता हे वैसे वैसे ऑप्शन के समय मूल्य में कमी आने लगती है और न केवल समय मूल्य में कमी आती है, बल्कि जैसे आप समाप्ति के करीब पहुंचते हैंयह अधिक तीव्र गति से ऐसा करता है।

आम तौर पर थीटा को ऑप्शन खरीदार का दुश्मन माना जाता है जबकि ऑप्शन विक्रेता के लिए एक दोस्त माना जाता है। ऐसा इसलिए है, क्योंकि जैसे-जैसे समय बीतता है, विक्रेता के लिए शॉर्ट पोजीशन को बंद करने के ऑप्शंस को वापस खरीदना सस्ता हो जाता है।

ऑप्शन खरीदार के संबंध में थीटा गणना

एक ऑप्शन खरीदार प्रीमियम का भुगतान करने का हकदार है, यह जानते हुए कि वह एक सीमित जोखिम और असीमित लाभ क्षमता रखता है। इनाम उस सीमा तक असीमित है जहां तक ​​बाजार बढ़ता है। ऑप्शन खरीदार के पास असीमित पुरस्कार अर्जित करने की क्षमता है।

उदाहरण: मान लीजिये निफ्टी का स्पॉट मूल्य 15000 है, और आप निफ्टी 15200 ओटीएम कॉल ऑप्शन खरीदते हैं।

इस कॉल ऑप्शन के इन द मनी (ITM) में समाप्त होने की क्या संभावना है?

सरल शब्दों में, निफ्टी को देखते हुए आज 15000 पर है, निफ्टी के अगले 30 दिनों में 200 अंक बढ़ने की और इसलिए 15200 CE के आईटीएम समाप्ति की क्या संभावना हैं? अगले 30 दिनों में निफ्टी के 200 अंक बढ़ने की संभावना काफी अधिक है, इसलिए एक्सपायरी पर ऑप्शन के आईटीएम (ITM) में समाप्त होने की संभावना बहुत अधिक है।

क्या होगा अगर समाप्ति के लिए केवल 15 दिन हैं?

अगले 15 दिनों में निफ्टी के 200 अंक बढ़ने की उम्मीद वाजिब है, इसलिए एक्सपायरी पर आईटीएम में समाप्त होने वाले ऑप्शन की संभावना अधिक है (ध्यान दें कि यह बहुत अधिक नहीं है, लेकिन केवल उच्च है)।

क्या होगा अगर समाप्ति के लिए केवल 5 दिन हैं?

खैर,5 दिन,200 अंक,वास्तव में निश्चित नहीं है इसलिए 15200 CE के इन द मनी में समाप्त होने की संभावना कम है

क्या होगा अगर समाप्ति के लिए केवल 1 दिन बचा है ?

निफ्टी के 1 दिन में 200 अंक बढ़ने की संभावना काफी कम है, इसलिए हम निश्चित रूप से बता सकते है कि ऑप्शन इन द मनी समाप्त नहीं होगा,इसलिए मौका बहुत कम है।

समाप्ति का समय पुट ऑप्शन खरीदने के नियम जितना अधिक होगा, ऑप्शन के इन द मनी (ITM) समाप्त होने की संभावना उतनी ही अधिक होगी

ऑप्शन विक्रेता के संबंध में थीटा गणना

ऑप्शन विक्रेता एक ऑप्शन को बेचता है और इसके लिए प्रीमियम प्राप्त करता है। जब वह एक ऑप्शन बेचता है तो वह बहुत अच्छी तरह से जानता है कि वह असीमित जोखिम और सीमित इनाम (reward) क्षमता रखता है। इनाम उसके द्वारा प्राप्त प्रीमियम की सीमा तक सीमित है। वह अपना इनाम (प्रीमियम) पूरी तरह से तभी रखता है जब ऑप्शन बेकार हो जाता है।

यदि वह जून महीने की शुरुआत में एक ऑप्शन बेच रहा है, तो वह स्पष्ट रूप से जानता है कि समय के आधार पर, आईटीएम विकल्प में संक्रमण के लिए वह जिस विकल्प को बेच रहा है, उसका एक मौका है, जिसका अर्थ है कि उसे अपना इनाम (प्राप्त हुआ प्रीमियम ) बरकरार रखने के लिए नहीं मिलेगा।

आइए इसे व्यावहारिक रूप से देखें:

ऑप्शंस का आंतरिक मूल्य (Intrinsic Value)

प्रीमियम = समय मूल्य + आंतरिक मूल्य (Intrinsic Value)

ऑप्शंस का आंतरिक मूल्य (Intrinsic Value)

आंतरिक मूल्य (Intrinsic Value) वह धन है जो आपको प्राप्त होता है यदि आप आज अपने ऑप्शन का प्रयोग करते हैं। इंट्रीसिक मूल्य हमेशा पॉजिटिव या शून्य होता है और कभी भी शून्य से नीचे नहीं हो सकता।

कॉल ऑप्शंस के लिए आंतरिक (intrinsic) मूल्य = स्पॉट मूल्य - स्ट्राइक मूल्य

पुट ऑप्शन के लिए आंतरिक (intrinsic) मूल्य = स्ट्राइक मूल्य - स्पॉट मूल्य पुट ऑप्शन खरीदने के नियम

आइए हम निम्नलिखित ऑप्शंस के लिए आंतरिक मूल्य की गणना करें, यह मानते हुए कि निफ्टी 15000 पर है :-

निफ्टी फ्यूचर्स एंड ऑप्शंस से कैसे कमाएं मुनाफा?

हाल में हमने आपको फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट्स के बारे में बताया था. अब हम आपको निफ्टी फ्यूचर्स एंड ऑप्शंस के बारे में बता रहे हैं.

फ्यूचर्स एंड ऑप्शंस

अगर कारोबार के बारे में आपका ठोस नजरिया है और आप जोखिम ले सकते हैं तो थोड़ी कीमत चुका कर आप निफ्टी ऑप्शंस और फ्यूचर्स पर दांव खेल सकते हैं.

कॉल ऑप्शन इस खरीदने वाले को तय अवधि के दौरान पहले से तय कीमत पर निफ्टी खरीदने का अधिकार देता है. बायर को चाहे तो अपने अधिकार का इस्तेमाल कर सकता है. वह चाहे तो अपने अधिकार का इस्तेमाल नहीं भी कर सकता है. इसी तरह पुट ऑप्शन इसे खरीदने वाले को इंडेक्स बेचने का अधिकार देता है. इंडेक्स फ्यूचर्स के सौदों का निपटारा कैश में होता है.

प्रश्न: निफ्टी फ्यूचर्स एंड ऑप्शन सौदा कैसे काम करता है?
उत्तर: इसे उदाहरण के साथ समझते हैं. मान लीजिए ट्रेडर ए को लगता है कि निफ्टी 10,7000 के स्तर तक चढ़ेगा. इसके लिए वह कुछ मार्जिन चुकाता है, जो कॉन्ट्रैक्स की कुल लागत का छोटा हिस्सा होता है. वह जिससे सौदा करता है, वह ट्रेडर बी है, जो इस स्तर पर निफ्टी बेचता है.

यदि निफ्टी 10,8000 के स्तर तक चढ़ जाता है, तो ए के पास अधिकार होगा कि वह अपने बी से 10,700 के भाव पर ही निफ्टी खरीद सके और उसके मौजूदा भाव यानी 10,800 के स्तर पर बेच सके. इस तरह उसे 7,500 रुपये (75x100) का पुट ऑप्शन खरीदने के नियम फायदा होगा.

इसी तरह यदि निफ्टी फ्यूचर्स 10,600 तक लुढ़क जाता हैं, तो बी निफ्टी फ्यूचर्स को ए को 10,700 के स्तर पर ही बेचेगा. ऐसे में ए को 100 रुपये प्रति शेयर का नुकसान होगा.

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ए को 10,700 के स्तर पर कॉल ऑप्शन खरीदने के लिए 200 रुपये का प्रीमियम (शुक्रवार का क्लोजिंग प्राइस) प्रति शेयर चुकाना होगा. यदि निफ्टी 100 अंक की छलांग लगाकर एक्सपाइरी से पहले 10,800 तक पहुंच जाता है तो ऑप्शन की वैल्यू में 100 रुपये इजाफा होगा.

ऐसे सौदों में विक्रेता का पैसा ज्यादा फंसा हुआ माना जाता है. हालांकि, कॉल खरीदार को भी घाटा हो सकता है, यदि निफ्टी उसकी उम्मीद से अधिक लुढ़क जाए. यदि स्टॉक एक्सचेंज की कोई खास शर्त या नियम न हो, तो इन सौदों का सेटलमेंट नकद में होता है.

प्रश्न: फ्यूचर्स और ऑप्शंस में किसे खरीदने में ज्यादा फायदा है?
उत्तर: दोनों ही प्रकार के सौदों के अपने लाभ और हानि हैं. एक ऑप्शन विक्रेता को अधिक जोखिम और मार्जिन रखना पड़ता है, जो खरीदार द्वारा उसे मिलने वाले प्रीमियम से अधिक होता है. हालांकि, फ्यूचर सौदा खरीदने या बेचने के लिए खरीदार और विक्रेता को समान मार्जिन रखना होता है.

अमूमन यह पूरे सौदे की वैल्यू के 10 फीसदी तक होता है. एक ऑप्शन को लंबे समय तक अपने पास रखना वैल्यू कम कर देता है.फ्यूचर्स के साथ ऐसा नहीं होता क्योंकि उन्हें आगे बढ़ाया जा सकता है.

हालांकि, फ्यूचर्स में फायदा और नुकसान असीमित हो सकता है. ऑप्शन के मामले में (खरीदार के लिए) घाटे सिर्फ चुकाए गए प्रीमियम तक ही सीमित होता है, जबकि मुनाफा काफी अधिक हो सकता है.

प्रश्न: इन सौदों का कारोबार कहां और कैसे होता है?
उत्तर: इन सौदों के के लिए आप ब्रोकर के साथ ट्रेडिंग खाता खुलवा सकते हैं. कैश सेटलमेंट के चलते इन सौदों के लिए डीमैट जरूरी नहीं होगा. इन सौदों का कारोबार बीएसई और एनएसई पर होता है.एनएसई पर इन सौदों की लिक्विडिटी अधिक होती है.

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SEBI ने कई बार पुट ऑप्शन वाली सिक्योरिटीज के वैल्यूएशन के नियम जारी किए

रिपोर्ट में कई नीतिगत सिफारिशें की हैं, जिसमें स्वेट इक्विटी और SBEB विनियम दोनों शामिल हैं.

रिपोर्ट में कई नीतिगत सिफारिशें की हैं, जिसमें स्वेट इक्विटी और SBEB विनियम दोनों शामिल हैं.

सेबी (SEBI) ने शुक्रवार को म्यूचुअल फंड के पास कई बार वापस बिक्री के अधिकार (Put Options) वाली सिक्योरिटीज के वैल्यूएशन . अधिक पढ़ें

  • भाषा
  • Last Updated : July 11, 2021, 04:00 IST

नई दिल्ली. देश के मार्केट रेगुलेटर सिक्योरिटीज एंड एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया यानी सेबी (SEBI) ने शुक्रवार को म्यूचुअल फंड के पास एक से अधिक बार वापस बिक्री के अधिकार (Put Options) वाली सिक्योरिटीज के वैल्यूएशन के संदर्भ में नया दिशानिर्देश जारी किया. सेबी ने एक सर्कुलर में कहा कि यह नया फ्रेमवर्क एक अक्टूबर, 2021 से प्रभाव में आ जाएगा.

सेबी ने म्यूचुअल फंड परामर्श समिति की सिफारिशों के आधार पर कई बार के वापस बिक्री के अधिकार वाली और जहां सिक्योरिटीज के वैल्यूएशन में बिक्री के अधिकार या पुट ऑप्शन को समायोजित किया गया है, वैसी सिक्योरिटीज के वैल्यूएशन के संदर्भ में कुछ निर्णय किए हैं.

नई व्यवस्था के तहत, अगर म्यूचुअल फंड बिक्री के अधिकार का उपयोग नहीं करता है, जबकि ऐसा करना योजना के पक्ष में होता, ऐसी स्थिति में फंड हाउस को मूल्यांकन एजेंसियों, एएमसी के बोर्ड और ट्रस्टीज इस विकल्प का उपयोग नहीं करने का कारण बताना होगा.

सेबी के अनुसार स्पष्टीकरण नोटिस अवधि समाप्त होने की अंतिम तारीख या उससे पहले देना होगा. ऐसे में मूल्यांकन एजेंसी प्रतिभूति के मूल्यांकन के उद्देश्य से शेष बिक्री विकल्प पर गौर नहीं करेगी. नियामक के अनुसार अगर मूल्यांकन के तहत बिक्री अधिकार की अपेक्षा कर मूल्यांकन कीमत, अनुबंध प्रतिफल (contractual yield) या कूपन रेट से 0.3 फीसदी अधिक है, तब बिक्री अधिकार यानी पुट ऑप्शन को योजना के पक्ष में माना जाएगा.

ट्रस्ट एएमसी के सीईओ संदीप बागला के अनुसार इस कदम से यह सुनिश्चित होगा कि फंड मैनेजर इस बारे में विचार का समुचित तरीके से उपयोग करेंगे और कोष प्रबंधन का काम उपयुक्त तरीके से किया जाएगा.

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