USD/INR - अमरीकी डॉलर भारतीय रुपया
USD INR (अमरीकी डॉलर बनाम भारतीय रुपया) के बारे में जानकारी यहां उपलब्ध है। आपको ऐतिहासिक डेटा, चार्ट्स, कनवर्टर, तकनीकी विश्लेषण, समाचार आदि सहित इस पृष्ठ के अनुभागों में से किसी एक पर जाकर अधिक जानकारी मिल जाएगी।
USD/INR - अमरीकी डॉलर भारतीय रुपया समाचार
मालविका गुरुंग द्वारा Investing.com - दलाल स्ट्रीट में गुरुवार को एक सुस्त व्यापारिक सत्र देखा जा रहा है, क्योंकि यूएस फेड द्वारा बुधवार को अपनी मौद्रिक नीति की घोषणा में एक लंबी.
अंबर वारिक द्वारा Investing.com-- भारतीय थोक मुद्रास्फीति नवंबर में 19 महीने के निचले स्तर पर गिर गई, बुधवार को डेटा दिखाया गया, क्योंकि ईंधन की दरों में और गिरावट और खाद्य कीमतों.
मालविका गुरुंग द्वारा Investing.com -- निवेश डॉट कॉम के 7.3% के पूर्वानुमान की तुलना में US CPI मुद्रास्फीति प्रिंट 7.1% पर मुद्रा का मूल्य कैसे कम होता है मुद्रा का मूल्य कैसे कम होता है नरम-प्रत्याशित होने के बाद, दलाल स्ट्रीट ने बुधवार को एक.
USD/INR - अमरीकी डॉलर भारतीय रुपया विश्लेषण
# USDINR दिन के लिए ट्रेडिंग रेंज 82.33-83.07 है।# अमेरिकी फेडरल रिजर्व के पूर्वानुमानों के बाद रुपये में गिरावट आई, जिसमें अगले वर्ष कोई दर कटौती नहीं होने का संकेत दिया गया।#.
# USDINR दिन के लिए ट्रेडिंग रेंज 82.29-82.91 है।# अमेरिकी मुद्रास्फीति के आंकड़ों के समर्थन के बाद रुपये में तेजी आई, इस दृष्टिकोण का समर्थन किया गया कि फेडरल रिजर्व कम कठोर स्वर.
# USDINR दिन के लिए ट्रेडिंग रेंज 82.53-83.15 है।# अमेरिकी मुद्रास्फीति की रिपोर्ट के आगे एशियाई मुद्राओं में गिरावट को दर्शाते हुए रुपया फिसल गया, जबकि आयातक के नेतृत्व वाली.
तकनीकी सारांश
कैंडलस्टिक पैटर्न
आर्थिक कैलेंडर
केंद्रीय बैंक
करेंसी एक्स्प्लोरर
USD/INR आलोचनाए
as long as today booked double profit in usdinr ce side. also another usdinr ce side carrying forward for tomorrow hero zero call let see buying at 82.54 target 82.60/82.70/82.80.
जोखिम प्रकटीकरण: वित्तीय उपकरण एवं/या क्रिप्टो करेंसी में ट्रेडिंग में आपके निवेश की राशि के कुछ, या सभी को खोने का जोखिम शामिल है, और सभी निवेशकों के लिए उपयुक्त नहीं हो सकता है। क्रिप्टो करेंसी की कीमत काफी अस्थिर होती है एवं वित्तीय, नियामक या राजनैतिक घटनाओं जैसे बाहरी कारकों से प्रभावित हो सकती है। मार्जिन पर ट्रेडिंग से वित्तीय जोखिम में वृद्धि होती है।
वित्तीय उपकरण या क्रिप्टो करेंसी में ट्रेड करने का निर्णय लेने से पहले आपको वित्तीय बाज़ारों में ट्रेडिंग से जुड़े जोखिमों एवं खर्चों की पूरी जानकारी होनी चाहिए, आपको अपने निवेश लक्ष्यों, अनुभव के स्तर एवं जोखिम के परिमाण पर सावधानी से विचार करना चाहिए, एवं जहां आवश्यकता हो वहाँ पेशेवर सलाह लेनी चाहिए।
फ्यूज़न मीडिया आपको याद दिलाना चाहता है कि इस वेबसाइट में मौजूद डेटा पूर्ण रूप से रियल टाइम एवं सटीक नहीं है। वेबसाइट पर मौजूद डेटा और मूल्य पूर्ण रूप से किसी बाज़ार या एक्सचेंज द्वारा नहीं दिए गए हैं, बल्कि बाज़ार निर्माताओं द्वारा भी दिए गए हो सकते हैं, एवं अतः कीमतों का सटीक ना होना एवं किसी भी बाज़ार में असल कीमत से भिन्न होने का अर्थ है कि कीमतें परिचायक हैं एवं ट्रेडिंग उद्देश्यों के लिए उपयुक्त नहीं है। फ्यूज़न मीडिया एवं इस वेबसाइट में दिए गए डेटा का कोई भी प्रदाता आपकी ट्रेडिंग के फलस्वरूप हुए नुकसान या हानि, अथवा इस वेबसाइट में दी गयी जानकारी पर आपके विश्वास के लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं होगा।
फ्यूज़न मीडिया एवं/या डेटा प्रदाता की स्पष्ट पूर्व लिखित अनुमति के बिना इस वेबसाइट में मौजूद डेटा का प्रयोग, संचय, पुनरुत्पादन, प्रदर्शन, संशोधन, प्रेषण या वितरण करना निषिद्ध है। सभी बौद्धिक संपत्ति अधिकार प्रदाताओं एवं/या इस वेबसाइट में मौजूद डेटा प्रदान करने वाले एक्सचेंज द्वारा आरक्षित हैं।
फ्यूज़न मीडिया को विज्ञापनों या विज्ञापनदाताओं के साथ हुई आपकी बातचीत के आधार पर वेबसाइट पर आने वाले विज्ञापनों के लिए मुआवज़ा दिया जा सकता है। इस समझौते का अंग्रेजी संस्करण मुख्य संस्करण है, जो अंग्रेजी संस्करण और हिंदी संस्करण के बीच विसंगति होने पर प्रभावी होता है।
हिन्दी वार्ता
MS Excel in Hindi, Make money online, Finance in Hindi
कैसे तय होती है रुपये की कीमत, समझें रुपया और डॉलर का पूरा गणित
बड़ा प्रचलित व्यंग है “भारतीय रुपया सिर्फ एक ही समय उपर जाता है और वो है टॉस का समय”
आज कल रुपये के गिरते भाव के कारण काफ़ी हो हल्ला मचा हुआ है! भारतीया मुद्रा यानी रुपया का मूल्य डॉलर के मुक़ाबले काफ़ी कम हो चुका है! पर क्या आप जानते हैं कि क्या है वो वजह जिसकी वजह से रुपया का मूल्य प्रभावित होता है और कैसे आप देशहित में रुपये को मजबूत करने में अपना योगदान दे सकते हैं! चलिए हम आपको बताते हैं ये सारा गणित. वो भी बिलकुल आसान भाषा में!
बड़ा ही सीधी सी थियरी है. भारत के पास जितना कम डॉलर होगा, डॉलर का मूल्य उतना बढ़ेगा! भारत या कोई भी देश अपने ज़रूरत की वस्तुए या तो खुद बनाते हैं या उन्हें विदेशों से आयात करते हैं और विदेशो से कुछ भी आयात करने के लिए आपको उन्हें डॉलर में चुकाना पड़ता है! उदाहरण के तौर पर यदि किसी देश से आप तेल का आयात करना चाहते हैं तो उसका भुगतान आप रुपये में नही कर सकते. उसके लिए आपको अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्य किसी मुद्रा का प्रयोग करना होगा. तो इसका मतलब ये है कि भारत को भुगतान डॉलर या यूरो में करना होगा!
काश कि ये देश रुपया स्वीकार कर लेते और हम जितने चाहे रुपये प्रिंट कर मुद्रा का मूल्य कैसे कम होता है के उन्हें दे देते पर वास्तव में ऐसा नही है (वजह जानने के लिए अगली पोस्ट की प्रतीक्षा करें)
अब सवाल ये उठता है कि अंतरराष्ट्रीय खरीददारी करने के लिए हम डॉलर कहाँ से लायें! अपने देश में डॉलर या विदेशी मुद्रा विभिन्न माध्यमों से आती है!
1. निर्यात- देश में बनी वस्तुओ का निर्यात जब हम विदेशो में करते हैं तो उनसे हमें भुगतान के रूप में विदेशी मुद्रा प्राप्त होती है!
2. विदेशी निवेश- विदेशो की कंपनियाँ जब देश में अपना कारोबार लगती हैं या यदि विदेशी निवेशक हमारे देश में उद्योग या शेयर बाजार में निवेश करते हैं तब भी हमें विदेशी मुद्रा प्राप्त होती है
3. विदेशो में रहने वेल भारतीय जब विदेशों से कमाया हुआ डॉलर देश में भेजते हैं तब भी हमारा विदेशी मुद्रा भंडार बढ़ता है!
अब हमें अपने खर्चों एवं ज़रूरी वस्तुओं के आयात के लिए डॉलर का भंडार सुरक्षित रखना पड़ता है. जिसे “विदेशी मुद्रा भंडार” भी कहते हैं. यदि किसी कारणवश ये भंडार ख़त्म हो जाता है तो हमारे लिए बहुत बड़ी समस्या खड़ी हो जाएगी क्युकि तेल के बिना हमारी सारी अर्थव्यवस्था ठप्प पड जाएगी!
हमारे आयात का बिल और निर्यात के बिल में एक संतुलन आवश्यक है. यदि ये संतुलन खराब होता है तब हमारे यहाँ विदेशी मुद्रा की मुद्रा का मूल्य कैसे कम होता है कमी हो जाती है जिसे “करेंट अकाउंट डेफिसिट” भी कहते हैं! अभी भारत करेंट अकाउंट डेफिसिट की समस्या से गुजर रहा है जिसकी वजह से हमारी मुद्रा का लगातार का अवमूल्यन हो रहा है. जिससे रुपये का मूल्य लगातार गिरता चला जा रहा है!
रुपये को मजबूत करने के लिए क्या किया जा सकता है
1. निर्यात बढ़ाया जाए जिससे की विदेशी मुद्रा की प्राप्ति हो. उत्पादन बढ़ाए जाएँ जिससे की अधिक से अधिक निर्यात हो सके
2. स्वदेशी अपनाओ- विदेशो में बनने वाली ८० पैसे की ड्रिंक यहाँ १५ से २० रुपये में बेचा जाता है! यदि हम स्वदेशी वस्तुओं या प्रयोग करना शुरू कर दें तो इन विदेशी वस्तुओं को आयात करने का खर्च बच जाएगा.
3. तेल का विकल्प- हम बड़ी मात्रा में तेल का आयात करने पर मजबूर हैं क्युकि देश में तेल का उत्पादन माँग के अनुसार नही है. यदि हम तेल पे आश्रित अपनी अर्थव्यवस्था को बदलने की कोशिश करें तो विदेशी भंडार एक बहुत बड़ा हिस्सा हम बचा सकते हैं और इसके लिए हमें तेल के विकल्पों पर विचार करना चाहिए१
4. भारतीयो का स्वर्ण प्रेम- सोना से लगाव काफ़ी पुराना है. विवाह या पर्व त्योहारो पर सोने की माँग में अत्प्रश्चित वृद्धि देखी जाती है जिससे हमारा आयात बिल बढ़ता है!
मोटे तौर पे रुपये को मजबूती देने के लिए हूमें विदेशो से निवेश बढ़ाना होगा. विदेशी निवेशको के लिए अनुकूल माहौल का निर्माण करना होगा! इसके अलावे स्वदेशी अपनाना होगा. जिन चीज़ो को हम देश में बना सकते हैं उनका आयात बंद करना होगा! हर भारतीय को ईमानदारी के साथ भारत का विकास में योगदान देना होगा. उत्पादन जितना बढ़ेगा, निर्यात उतना अधिक होगा, जिससे हमारी अर्थव्यवस्था मजबूत होगी!
आशा करता हूँ की अब आपको रुपये और विदेशी मुद्रा का गणित समझ आया होगा. यदि आपका कोई प्रश्न है तो कृपया कॉमेंट के माध्यम से हमसे पूछें!
Explainer : क्यों कोई देश जानबूझकर कमजोर बनाता है अपनी करेंसी, कहां और कैसे होता है इसका फायदा?
ग्लोबल मार्केट में अभी अमेरिकी डॉलर अन्य करेंसी के मुकाबले दमदार स्थिति में है. इसका फायदा भी अमेरिका को मिल रहा है, . अधिक पढ़ें
- News18Hindi
- Last Updated : October 24, 2022, 15:30 IST
हाइलाइट्स
अपनी करेंसी को जानबूझकर कमजोर करने का कारनामा हाल में ही चीन दो बार कर चुका है.
एक बार 2015 में चीन ने डॉलर के मुकबाले अपने युआन की कीमत घटाकर 6.22 कर दी थी.
साल 2019 में फिर चीन ने डॉलर के मुकाबले युआन की कीमत घटाकर 6.99 तय कर दी.
नई दिल्ली. अमूमन किसी देश की करेंसी के कमजोर होने को उसकी बिखरती अर्थव्यवस्था का सबूत माना जाता है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि कुछ देश जानबूझकर अपनी मुद्रा को कमजोर बनाते हैं. एक बारगी तो इस बात पर यकीन करना मुश्किल होता है कि जहां दुनियाभर के देश अपनी मुद्रा को मजबूत बनाने की जुगत में लगे रहते हैं, वहीं कोई देश क्यों अपनी करेंसी को कमजोर बनाएगा, लेकिन यही सवाल जब बाजार और कमोडिटी एक्सपर्ट से पूछा तो जवाब चौंकाने वाले थे.
आईआईएफएल सिक्योरिटीज के कमोडिटी रिसर्च हेड अनुज गुप्ता का कहना है कि ज्यादातर ऐसे देश अपनी करेंसी को जानबूझकर कमजोर बनाते हैं, जिन्हें निर्यात के मोर्चे पर लाभ लेना होता है. यानी अगर किसी देश की करेंसी कमजोर होती है, तो उसी अनुपात में उसका निर्यात सस्ता हो जाता है और उद्योगों के पास ज्यादा उत्पादन के मौके बनते हैं. दरअसल, ऐसा इसलिए होता है क्योंकि ज्यादातर ग्लोबल लेनदेन डॉलर में होता मुद्रा का मूल्य कैसे कम होता है है और जब किसी देश की मुद्रा कमजोर होती है तो उसका उत्पादन भी डॉलर के मुकाबले सस्ता हो जाता है और ग्लोबल मार्केट में उसकी मांग बढ़ जाती है.
चीन ने साल आठ साल में दो बार घटाया युआन का मूल्य
अपनी करेंसी को जानबूझकर कमजोर करने का कारनामा चीन दो बार कर चुका है. एक बार साल 2015 में चीन ने डॉलर के मुकबाले अपने युआन की कीमत घटाकर 6.22 कर दी थी. डॉलर के मुकाबले युआन को करीब 2 फीसदी कमजोर बनाकर चीन ने अपने निर्यात के रास्ते चौड़े कर दिए. इससे पहले चीन के निर्यात में 8.2 फीसदी की बड़ी गिरावट दिखी थी, जिसे संभालने के लिए युआन को कमजोर बनाया और अपना निर्यात सस्ता कर उसकी मांग बढ़ा ली.
इसके बाद साल 2019 में फिर चीन ने अमेरिकी डॉलर के मुकाबले अपनी मुद्रा युआन की कीमत घटाकर 6.99 तय कर दी. यह विवाद उस समय गहराया जब अमेरिका ने चीन के करीब 300 अरब डॉलर के निर्यात पर अपने यहां 10 फीसदी अतिरिक्त आयात शुल्क लगा दिया. इससे चीन की मुद्रा में गिरावट आई साथ ही चीन के निर्यात पर भी असर पड़ा. इसके बाद चीन के केंद्रीय बैंक पीपुल्स बैंक ऑफ चाइना ने युआन का एक्सचेंज रेट और घटा दिया, ताकि निर्यात सस्ता कर उद्योगों को और अवसर दिलाया जा सके. चीन को इसका फायदा इसलिए भी मिला, क्योंकि ग्लोबल निर्यात में जहां अमेरिका की हिस्सेदारी 8.1 फीसदी और जर्मनी की 7.8 फीसदी है, वहीं चीन करीब दोगुना 15 फीसदी के आसपास बना हुआ है.
अर्थव्यवस्था को कैसे मिलता है कमजोर मुद्रा का लाभ
कमोडिटी एनालिस्ट और फॉरेक्स मार्केट के जानकार जतिन त्रिवेदी का कहना है कि किसी देश के अपनी मुद्रा को कमजोर बनाने का सबसे बड़ा कारण अर्थव्यवस्था को रफ्तार देना भी रहता है. हालांकि, यह कदम तभी उठाना चाहिए जब उस देश को अपना निर्यात बढ़ने का भरोसा हो और उसके निर्यात की अर्थव्यवस्था में बड़ी हिस्सेदारी हो. यही कारण है कि चीन दो बार अपनी मुद्रा का अवमूल्यन करने के बावजूद बाजी मार गया. दरअसल, जब निर्यात बढ़ता है तो उद्योगों को भी अपना उत्पादन बढ़ाने का मौका मिलता है, जिससे नई नौकरियों और कारोबार विस्तार का माहौल बनता है. यानी कुलमिलाकर यह कदम अर्थव्यवस्था को चलायमान बनाने में मददगार होता है.
दूसरी ओर, अपनी मुद्रा की कीमत घटाने पर किसी देश को खामियाजा भी भुगतना पड़ता है. इससे आयात महंगा हो जाता है और देश में भी महंगाई का जोखिम बढ़ जाता है. साथ ही किसी देश की मुद्रा में कमजोरी आने से उसका विदेशी मुद्रा भंडार भी कम होने लगता है. भारत को ही देख लें तो साल 2022 में जहां डॉलर के मुकाबले रुपये में करीब 10 फीसदी कमजोरी आई है, वहीं विदेशी मुद्रा भंडार में भी करीब 100 अरब डॉलर की गिरावट आ चुकी है. महंगाई भी आरबीआई के 6 फीसदी के दायरे से बाहर ही चल रही, जो बीते दो महीने से 7 फीसदी के ऊपर चली गई है.
व्यापार घाटा थामने में मदद
किसी देश की करेंसी जब मजबूत होती है तो उसका निर्यात महंगा और आयात सस्ता हो जाता है. यानी आयात ज्यादा होने और निर्यात में कमी आने से उसका व्यापार घाटा भी बढ़ने लगता है. ऐसे में उस देश के चालू खाते के घाटे पर भी असर पड़ता है. कई बार देश अपनी मुद्रा का अवमूल्यन कर निर्यात बढ़ा लेते हैं, जिससे व्यापार घाटे की यह खाई भी संकरी हो जाती है और चालू खाते के घाटे का बोझ भी हल्का हो जाता है.
ब्रेकिंग न्यूज़ हिंदी में सबसे पहले पढ़ें News18 हिंदी| आज की ताजा खबर, लाइव न्यूज अपडेट, पढ़ें सबसे विश्वसनीय हिंदी न्यूज़ वेबसाइट News18 हिंदी|
डॉलर के मुकाबले रुपये में अबतक की सबसे बड़ी गिरावट, रुपया गिरने का मतलब क्या है, आम आदमी को इससे कितना नफा-नुकसान
भारतीय मुद्रा (रुपया) में हो रही गिरावट के बाद गुरुवार को एक अमरीकी डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपया 19 पैसे की गिरावट के साथ 79.04 प्रति डॉलर के रिकॉर्ड निचले स्तर पर पहुंच गया.
भारतीय मुद्रा
अपूर्वा राय
- नई दिल्ली,
- 30 जून 2022,
- (Updated 30 जून 2022, 3:06 PM IST)
एक अमेरिकी डॉलर 79.04 रुपये का हो गया है,
अगर डॉलर की कीमत बढ़ती है, तो हमें आयात के लिए ज्यादा खर्च करना पड़ेगा
आपके और हमारे लिए रुपया गिरने का क्या अर्थ है?
भारतीय रुपये (Indian Rupee) में गिरावट का सिलसिला लगातार जारी है. अमेरिकी डॉलर (Dollar) की तुलना में रुपया अपने रिकॉड निचले स्तर पर है. मतलब एक अमेरिकी डॉलर की कीमत 79.04 रुपये पहुंच गया है. यह स्तर अब तक का सर्वाधिक निचला स्तर है. देश की आजादी के बाद से ही रुपये की वैल्यू लगातार कमजोर ही हो रही है. भले ही रुपये में आने वाली ये गिरावट आपको समझ में न आती हो या आप इसे गंभीरता से ना लेते हों, लेकिन हमारे और आपके जीवन पर इनका बड़ा असर पड़ता है.
आपके और हमारे लिए रुपया गिरने का क्या अर्थ है? रुपये की गिरती कीमत हम पर किस तरह से असर डालती है. आइए जानते हैं.
क्या होता है एक्सचेंज रेट
दो करेंसी के बीच में जो कनवर्जन रेट होता है उसे एक्सचेंज रेट या विनिमय दर कहते हैं. यानी एक देश की करेंसी की दूसरे देश की करेंसी की तुलना में वैल्यू ही विनिमय दर कहलाती है. एक्सचेंज रेट तीन तरह के होते हैं. फिक्स एक्सचेंज रेट में सरकार तय करती है कि मुद्रा का मूल्य कैसे कम होता है करेंसी का कनवर्जन रेट क्या होगा. मार्केट में सप्लाई और डिमांड के आधार पर करेंसी की विनिमय दर बदलती रहती है. अधिकांश एक्सचेंज रेट फ्री-फ्लोटिंग होती हैं. ज्यादातर देशों में पहले फिक्स एक्सचेंज रेट था.
रुपया गिरने का क्या अर्थ है?
आसान भाषा में समझें तो रुपया गिरने का मतलब है डॉलर के मुकाबले रुपये का कमजोर होना. यानी अगर रुपये की कीमत गिरती है, तो हमें आयात के लिए ज्यादा खर्च करना पड़ेगा और निर्यात सस्ता हो जाएगा. इससे मुद्राभंडार घट जाएगा.
भारत अपने कुल तेल का करीब 80 फीसदी तेल आयात करता है. जिसके लिए डॉलर में भुगतान होता है. मान लीजिए सरकार को कोई सामान आयात करने के लिए 10 लाख डॉलर चुकाने हैं, आज की तारीख में रुपया 79 रुपये से भी अधिक गिर गया है. पहले जहां सरकार को उस सामान के आयात के लिए 7 करोड़ 5 लाख रुपये चुकाने पड़ रहे थे अब रुपये की कीमत गिरने से 7 करोड़ 9 लाख रुपये चुकाने पड़ेंगे.
रुपये की गिरती कीमत आम आदमी पर कैसे असर डालती है?
रुपये की वैल्यू गिरने से भारत को तेल आयात करना और मंहगा पड़ेगा इसलिए पेट्रोल और डीजल की कीमतें और ऊपर चली जाएंगी. इसका सीधा असर परिवहन की लागत पर पड़ेगा और इस तरह आम आदमी की जेब भी ढीली हो जाएगी.
रुपए के कमजोर होने से भारतीय छात्रों के लिए विदेशों में पढ़ना महंगा हो जाएगा.
अगर आप इलेक्ट्रिक वाहन खरीदने जा रहे हैं, तो आपको ज्यादा कीमत चुकानी होगी, क्योंकि इनके उत्पादन में कई आयातित चीजों का इस्तेमाल होता है.
दैनिक जीवन की ऐसी कई चीजें जो हम इस्तेमाल करते हैं उसके लिए ट्रांसपोर्ट का खर्च आता है. तेल की महंगी होती कीमतों का असर माल भाड़े पर पड़ता है, जिससे इन सब चीजों की कीमत भी बढ़ जाती है.
रुपये की कमजोरी से खाद्य तेलों और दालों की कीमतें बढ़ सकती हैं.
सरकार गिरते रुपये को उठाने के लिए ब्याज दरों में वृद्धि करती है. क्योंकि रुपये की गिरावट को रोकने का वही एक तरीका होता है. इससे लोन लेना महंगा हो सकता है.
विदेशी मुद्रा भंडार 14 महीनों के सबसे कम स्तर पर
पिछले कुछ महीनों से विदेशी मुद्रा मुद्रा का मूल्य कैसे कम होता है भंडार में लगातार गिरावट आ रही है। अगस्त 2021 के अंत में रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया के पास 640.70 अरब डालर विदेशी मुद्रा भंडार था जो कि जून 2022 के अंत में घटकर कर 588.31 अरब डॉलर हो गया है।
देश के पास विदेशी मुद्रा भंडार लगातार कम हो रहा है। रुपये की कीमत में गिरावट आ रही है। साथ ही देश का व्यापार घाटा लगातार बढ़ता जा रहा है। यह सभी बातें आपस में कैसे जुडी हुई हैं? इनमें परिवर्तन होने पर हमारी अर्थव्यवस्था पर क्या प्रभाव पड़ता है? चलिए इस पूरे मुद्दे को समझते हैं।
विदेशी मुद्रा भंडार
दरअसल विदेशी मुद्रा भंडार में केंद्रीय बैंक, रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) द्वारा रखी गई धनराशि या अन्य परिसंपत्तियां होती हैं। इनमें विदेशी मुद्रा परिसंपत्तियाँ(FCA), स्वर्ण भंडार, विशेष आहरण अधिकार (SDR) और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के साथ रिज़र्व ट्रेंच शामिल होती हैं। जरूरत पड़ने पर विदेशी मुद्रा भंडार से विदेशी ऋण का भुगतान आसानी से किया जा सकता है।
पिछले कुछ महीनों से विदेशी मुद्रा भंडार लगातार कम हो रहा है। विदेशी मुद्रा भंडार में यह गिरावट पिछले 10 महीनों से आ रही है। अगस्त 2021 के अंत में हमारे केंद्रीय बैंक के पास 640.70 अरब डालर विदेशी मुद्रा भंडार था, जोकि जून 2022 के अंत में गिर कर 588.31 अरब डॉलर हो गया है। विदेशी मुद्रा भंडार पिछले 14 महीनों के निम्न स्तर पर है। जैसा कि निचे चित्र दिखया गया है।
देश के पास ज्यादातर विदेशी मुद्रा भंडार, विदेशी मुद्रा परिसंपत्ति(FCA) के रूप में ही होता है। यह परिसंपत्तियां एक या एक से अधिक मुद्रा के रूप में भी हो सकती है। लेकिन इन विदेशी मुद्रा परिसंपत्तियों का मूल्यांकन डॉलर में ही किया जाता है। अगस्त 2021 के अंत में देश के पास 578.41 अरब डॉलर की विदेशी मुद्रा परिसंपत्तियां थी जोकि मौजूदा समय में घटकर 524.74 अरब डॉलर हो गयी है।
विदेशी मुद्रा भंडार के घटने का असर रुपये की कीमत पर पड़ता है। विदेशी मुद्रा भंडार कम होने पर डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत में भी कमी आएगी जैसा कि मौजूदा समय में देखा जा रह है। कल सोमवार को रुपये की कीमत गिर कर 79.43 रुपये प्रति डॉलर के निम्न स्तर पर आ गयी है। रुपये के गिरने पर भारत द्वारा किये जाने वाले वस्तुओं के आयात मूल्य में वृद्धि हो जाएगी और निर्यात मूल्य में कमी आएगी क्योंकि रुपये की कीमत डॉलर के मुकाबले कम हो रही है। जिसके कारण व्यापार घाटा बढ़ेगा जैसा कि मौजूदा समय में देखा गया है। जून के महीने में व्यापार घाटा बढ़कर अब तक के रिकार्ड स्तर 25.6 अरब डॉलर हो गया है।
हालांकि रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया ने सोमवार को रुपये की कीमत को स्थिर रखने के लिए कुछ देशों जैसे रूस और श्रीलंका के साथ व्यापार रुपये में करने की अनुमति दे दी है, जिससे काफी हद तक रुपये की कीमत पर असर पड़ेगा। क्योंकि भारत सबसे ज्यादा कच्चे तेल का आयात करता है। रूस तेल का सबसे बड़ा निर्यातक देश है।
भारत तेल की कुल आपूर्ति का बड़ा हिस्सा रूस से आयात करता है। ऐसा संभव हो सकता है कि रूस के साथ रुपये में व्यापार करने पर रुपये की कीमत में और गिरावट न आए और विदेशी मुद्रा भंडार पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़े। लेकिन भारत को अब भी यूरोप और एशिया के कई देशों के साथ डॉलर में ही व्यापार करना होगा।
विदेशी मुद्रा भंडार के बढ़ने पर रुपये की कीमत में मजबूती आती है। जिसके परिणामस्वरूप देश की आर्थिक स्थिति मजबूत होती है और रुपये की कीमत में स्थिरता बनी रहती है। साथ ही विदेश में निवेश करने वाले लोगों को भी बहुत ज्यादा फायदा पहुँचता है।
अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।
अधिकतम अंक: 5
न्यूनतम अंक: 1
मतदाताओं की संख्या: 734