सूडान से रुपये में कारोबार पर जोर

रुपये के अंतरराष्ट्रीयकरण की कवायद के तहत भारत ने सूडान के साथ रुपये में कारोबार करने पर जोर दिया है। एक अधिकारी ने बिजनेस स्टैंडर्ड से कहा, ‘हमने विदेश मंत्रालय के माध्यम से सूडान से इस सिलसिले में संपर्क किया है और अपना प्रस्ताव रखा है। इसके बारे में सूडान को अभी फैसला करना है।’

अगर यह हो पाता है तो भारत इस अफ्रीकी देश से कच्चा तेल लाने व रुपये में उसका भुगतान करने में सक्षम होगा। अधिकारी ने कहा कि इससे निर्यात को बढ़ावा मिल मिल व्यापार का भुगतान नहीं करता है? सकता है और विदेशी मुद्रा भंडार बचाया जा सकता है, जो अभी दबाव में है।

सूडान में भारत के राजदूत बीएस मुबारक और दोनों देशों के बैंकों के प्रमुख सदस्यों ने द्विपक्षीय व्यापार और निवेश को लेकर पिछले महीने चर्चा की थी। भारत और सूडान के बैंकों ने इसके तरीके पर चर्चा करने के बाद फैसला किया कि बैंकिंग संबंध बढ़ाने की संभावना तलाशने के साथ दोनों देशों के बीच विशेष रुपये वोस्त्रो खादा खोलने की संभावना तलाशी जाएगी।

सूडान भारत का 75वां बड़ा कारोबारी साझेदार है। दोनों देशों के बीच कुल कारोबार 1.21 अरब डॉलर का है, जबकि 2021-22 के दौरान भारत का कुल कारोबार 1 लाख करोड़ रुपये का था। भारत ने 1.07 अरब डॉलर के वस्तुओं का निर्यात पिछले वित्त वर्ष के दौरान किया है, जबकि आयात सिर्फ 12.9 करोड़ डॉलर का रहा है।

भारत प्राथमिक रूप से खाद्य वस्तुओं, पेट्रोलियम, विनिर्मित वस्तुओं, मशीनरी और उपकरण, रसायन, दवाओं और टेक्सटाइल का निर्यात सूडान को करता है। वहीं सूडान से तिल, कपास, तरबूज के बीज, खाल और मूंगफली का आयात किया जाता है। भारत इस समय अफ्रीकी देश से तेल का आयात नहीं करता है।

जुलाई में रिजर्व बैंक ने अंतरराष्ट्रीय लेनदेन रुपये में करने की व्यवस्था दी थी, जिससे वैश्विक कारोबार को बढ़ावा मिल सके, जिसमें भारत से निर्यात पर जोर है। सबसे अहम है कि इस कदम से रुपये को अंतरराष्ट्रीय मुद्रा के रूप में पहचान मिलेगी। येस बैंक जैसे कुछ बैंक रूस जैसे देशों के साथ रुपये में कामकाज की व्यवस्था बनाने में लगे हैं।

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अपना लोन वसूलने के लिए बैंक रिकवरी एजेंटों की सेवाएं (Recovery Agent) ले सकते हैं. लेकिन, ये अपनी हद पार नहीं कर सकते ह . अधिक पढ़ें

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  • Last Updated : September 07, 2019, 10:11 IST

नई दिल्ली: कोई आम आदमी अपने होम लोन (Home Loan) या फिर पर्सनल लोन (Personal Loan) की EMI नहीं चुका पाता और डिफॉल्ट कर जाता है तो ऐसा नहीं है कि लोन देने वाली कंपनी या फिर बैंक आपको परेशान करने लगे. ऐसे कई नियम हैं, जो उसकी ऐसी हरकत पर लगाम लगाते हैं. एक्सपर्ट्स बताते हैं कि कर्ज नहीं चुकाने पर बैंक धमका या फिर जोर जबर्दस्ती नहीं कर सकता है. अपना लोन वसूलने के लिए रिकवरी एजेंटों की सेवाएं (Recovery Agent) ले सकते हैं. लेकिन, ये अपनी हद पार नहीं कर सकते हैं.

इस तरह के थर्ड पार्टी एजेंट ग्राहक से मिल सकते हैं. उन्हें ग्राहकों को धमकाने या जोर जबर्दस्ती करने का अधिकार नहीं है. वे ग्राहक के घर सुबह 7 बजे से शाम 7 बजे के बीच जा सकते हैं. हालांकि, वे ग्राहकों से बदसलूकी नहीं कर सकते हैं. अगर इस तरह का दुर्व्यवहार होता है तो ग्राहक इसकी शिकायत बैंक में कर सकते हैं. बैंक से सुनवाई न होने पर बैंकिंग ओंबड्समैन का दरवाजा खटखटाया जा सकता है.

आइए जानते हैं उन अधिकारों के बारे में.
(1) एक्सपर्ट्स बताते हैं कि अपने कर्ज की वसूली के लिए कर्ज देने वालों बैंक, वित्तीय संस्थान को सही प्रक्रिया अपनाना जरूरी है. सिक्योर्ड लोन के मामले में उन्हें गिरवी रखे गए एसेट को कानूनन जब्त करने का हक है. हालांकि, नोटिस दिए बगैर बैंक ऐसा नहीं कर सकते हैं. सिक्योरिटाइजेशन एंड रीकंस्ट्रक्शन ऑफ फाइनेंशियल एसेट्स एंड एनफोर्समेंट ऑफ सिक्योरिटी इंटरेस्ट (सरफेसी) एक्ट कर्जदारों को गिरवी एसेट को जब्‍त करने का अधिकार देता है.

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(2) नोटिस का अधिकार- डिफॉल्ट करने से आपके अधिकार छीने नहीं जा सकते और न ही इससे आप अपराधी बनते हैं. बैंकों को एक निर्धारित प्रोसेस का पालन कर अपनी बकाया रकम की वसूली के लिए आपकी संपत्ति पर कब्जा करने से पहले आपको लोन चुकाने का समय देना होता है. अक्सर बैंक इस तरह की कार्रवाई सिक्योरिटाइजेशन एंड रिस्कंस्ट्रक्शन ऑफ फाइनेंशियल एसेट्स एंड एनफोर्समेंट ऑफ सिक्योरिटी इंटरेस्ट्स (सरफेसी एक्ट) के तहत करते हैं.

(3) लोन लेन वाले को तब नॉन- परफॉर्मिंग एसेट NPA यानी डूबे हुए कर्ज में डाला जाता है जब 90 दिनों तक वह बैंक को किस्त का भुगतान नहीं करता है. इस तरह के मामले में कर्ज देने वाले को डिफॉल्टर को 60 दिन का नोटिस जारी करना पड़ता है.

(4) अगर नोटिस पीरियड में बॉरोअर भुगतान नहीं कर पाता है तो बैंक एसेट की बिक्री के लिए आगे बढ़ सकते हैं. हालांकि, एसेट की बिक्री के लिए बैंक को 30 दिन और का पब्लिक नोटिस जारी करना पड़ता है. इसमें बिक्री के ब्योरे की जानकारी देनी पड़ती है.

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(5) एसेट का सही दाम पाने का हक एसेट की बिक्री से पहले बैंक/वित्तीय संस्थान को एसेट का उचित मूल्य बताते हुए नोटिस जारी करना पड़ता है. इसमें रिजर्व प्राइस, तारीख और नीलामी के समय का भी जिक्र करने की जरूरत होती है.बकाया पैसे को पाने का अधिकार अगर एसेट को कब्जे में ले भी लिया जाता है तो भी नीलामी की प्रक्रिया पर नजर रखनी चाहिए. लोन की वसूली के बाद बची अतिरिक्त रकम को पाने का लेनदार को हक है. बैंक को इसे लौटाना पड़ेगा.

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कैसे ड्रॉप शिपिंग से व्यवसाय को विदेशों में फैला सकते है

Nitika Ahluwalia

आप कोई उत्पाद खरीदे बिना रिटेल व्यापार शुरू कर सकते हैं।इसका मतलब है कि आप उस उत्पाद को बेच सकते हैं जो आपके पास नहीं है। यहां बताया गया है कि ऐसे व्यवसाय की तलाश कैसे करें जो कम निवेश में अच्छा रिटर्न दे सके? या फिर बिना मिल व्यापार का भुगतान नहीं करता है? ज्यादा खर्च किए रिटेल सेक्टर में प्रवेश करने का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं? हमारे पास एक विकल्प है जिसके द्वारा आप ऐसा कर सकते हैं। आप कोई भी उत्पाद खरीदे बिना रिटेल बिजनेस शुरू कर सकते हैं। इसका मतलब है कि आप वह उत्पाद बेच सकते हैं जो आपके पास नहीं है।
वास्तव में नहीं, लेकिन आप अपने उत्पाद को अपने वेबपेज या एप्लिकेशन पर लिस्ट कर सकते हैं। जब आप ऑर्डर करते हैं तो ग्राहक आपको उत्पाद के लिए भुगतान करता है और मैन्युफैक्चरर उन्हें ग्राहकों तक पहुंचाएगे। इस अवधारणा को ड्रॉप शिपिंग कहा जाता है।

ड्रॉप-शिपिंग क्या है?

वर्तमान में व्यापार युग ड्रॉप शिपिंग के रूप में एक नई अवधारणा देख रहा है। ड्रॉप शिपिंग एक बड़े रिटेल स्टोर द्वारा ग्राहक को मटेरियल या उत्पाद भेजता है। इसका उपयोग कई कार्यों को करने के लिए किया जा सकता है जो सरल और त्वरित (क्विक) हैं। ड्रॉप शिप सर्विस का उपयोग करने के लाभ। कंपनी किसी ग्राहक को केवल एक घंटे में सामान भेज सकती है, और वे उन्हें दो दिनों में गोदाम से उठा सकती हैं। ड्रॉप शिपिंग आपको अपने निवेश को कम करने मिल व्यापार का भुगतान नहीं करता है? की अनुमति देता है। ड्रॉप शिपिंग की मदद से आपको वास्तव में उत्पाद खरीदने और उसमें ज्यादा निवेश करने की ज़रूरत नहीं है। ड्रॉप शिपिंग आपको आपके द्वारा बेचे जाने के मिल व्यापार का भुगतान नहीं करता है? बाद उत्पादों को खरीदने की अनुमति देता है।

इतिहास और भविष्य
ड्रॉप शिपिंग की पिछले कुछ वर्षों में लोकप्रियता बढ़ी है। यह ऑनलाइन स्टोर के लिए अपने पारंपरिक ग्राहक आधार से बाहर के ग्राहकों तक पहुंचने और उनसे जुड़ने के सबसे प्रमुख तरीकों में से एक है। ड्रॉप शिपिंग का मुख्य लाभ यह है कि यह किसी भी व्यवसाय को बड़े ऑडियंस तक पहुंचने की अनुमति देता है, संभावित रूप से नए ग्राहकों तक पहुंचता है या मौजूदा ग्राहकों को नए प्रशंसकों में परिवर्तित करता है। कई ई-कॉमर्स स्टोर ने छूट की पेशकश करते समय शिपिंग लागतों को फ्री कर दिया है क्योंकि यह ग्राहकों तक पहुंचने का अधिक कुशल तरीका बन गया है। जब ग्राहक ऑनलाइन स्टोर से खरीदारी करते हैं तो उन्हें सुविधा और मूल्य का आनंद मिलता है, क्योंकि उन्हें घर पर बैठे- बैठे सब कुछ आराम से मिल जाता है और उन्हे चिंता करने की जरूरत नहीं होती है। ड्रॉप शिपिंग भारत में ग्राहकों के बीच विशेष रूप से पिछले एक साल में लोकप्रियता हासिल कर रहा है। ऐसा क्यों है? यह शिपिंग के लिए सीमित बजट वाले ग्राहकों के व्यवसाय और व्यक्तिगत जीवन की उच्च मांगों के कारण है। इंटरनेट और मोबाइल कम्युनिकेशन ग्राहकों के बीच कम्युनिकेशन का एक महत्वपूर्ण साधन बनने के साथ, यह स्वाभाविक है कि ड्रॉप शिपिंग ने भी उन्हें पकड़ लिया है।

यदि आप भारत में एक छोटे से ऑनलाइन व्यवसाय को खुद चला रहे है, तो ड्रॉप शिपिंग आपके व्यवसाय से बेस्ट आउटपुट प्राप्त करने में आपकी सहायता कर सकता है। ड्रॉप शिपिंग एक प्रकार का शिपिंग है जिसमें बॉक्स या किसी अन्य पर्याप्त संरचना की आवश्यकता नहीं होती है। आप अपने सप्लायर को ऑर्डर दे सकते हैं, जो उत्पाद को सीधे आपके ग्राहकों तक पहुंचाएगा। ये कंपनियां मुफ्त रिटर्न भी देती हैं, इसलिए आप नए उत्पादों को पूरी कीमत खरीदने से पहले आजमा सकते हैं।

फायदा और नुकसान

अधिकांश सेवाओं की तरह, ड्रॉप शिपिंग के भी कुछ फायदे और नुकसान हैं।

फायदे

1.कम निवेश: आपको बड़ी राशि का निवेश करने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि आप अपनी खुद की इन्वेंट्री सेट नहीं कर रहे हैं।
2.एक्सपेरिमेंटल प्रोडक्ट : ग्राहक उत्पाद की श्रेणी और उसमें से चुन सकते हैं। आपको अपने में उत्पाद जोड़ने की आवश्यकता नहीं है।
3. सुविधाजनक: उत्पादों को ढूंढने, पैक करने और शिपिंग करने की कोई हलचल नहीं।
4. कोई स्थान सीमा नहीं: आप दुनिया में कहीं से भी ग्राहक प्राप्त कर सकते हैं।
5. मार्केटिंग: आपको बस अपने उत्पादों की मार्केटिंग करने की ज़रूरत है, मैन्युफैक्चरर या सप्लायर उत्पाद और डिलीवरी का ध्यान रखेंगे।

नुकसान

1.उपलब्धता की समस्या- वेयरहाउस में जो उपलब्ध है उस पर आपका कंट्रोल नहीं होता है। कभी-कभी आपको इस बात पर नजर रखने की जरूरत होती है कि ग्राहक के क्षेत्र में क्या उपलब्ध कराया जा सकता है और क्या नहीं।
2.क्वालिटी की समस्या- कभी-कभी मैन्युफैक्चर्ड उत्पाद सही नही होते हैं, जो आपकी प्रतिष्ठा को प्रभावित करता है।
3.कम मार्जिन- कम मार्जिन भी ड्रॉप शिपिंग की सबसे आम खामी है।
4. सप्लायर एर्रर- कभी-कभी मिल व्यापार का भुगतान नहीं करता है? आपूर्तिकर्ता गलत या टेम्पर्ड उत्पाद भेजते हैं जिसके लिए विक्रेताओं की निंदा की जाती है।
5.सीमित अनुकूलन विकल्प- जब आपके पास उत्पाद नहीं होंगे तो उत्पादों को अनुकूलित या वैयक्तिकृत (पर्सनलाइज्ड) करना संभव नहीं होगा।

निष्कर्ष

यदि आपकी कोई दुकान या व्यवसाय है और आप दुनिया भर में अधिक ग्राहकों तक पहुंचना चाहते हैं, तो ड्रॉप शिपिंग आपके लिए है! ड्रॉप शिपिंग आपको बहुत कम निवेश से व्यवसाय शुरू करने की अनुमति देता है। यदि आपके पास कोई एंजेल निवेशक नहीं है या आप किसी को भी शामिल नहीं करना चाहते हैं, तो ड्रॉप शिपिंग व्यवसाय के लिए जाएं। इसे लैपटॉप और रिसर्च से ज्यादा कुछ नहीं चाहिए। आप अपना व्यवसाय घर से भी शुरू कर सकते हैं। यह आपको अधिक निवेश किए बिना ज्यादा ग्राहक प्राप्त करने में मदद करेगा। हमें उम्मीद है कि आपको ड्रॉप शिपिंग के बारे में आइडिया हो गया होगा। अब सवाल यह है कि आप अपना व्यवसाय कब और किस क्षेत्र में शुरू करने जा रहे हैं।

लोन नहीं चुकाने पर भी बदसलूकी नहीं कर सकते बैंक, जानें अपने अधिकार

उचित प्रक्रिया अपनाना जरूरी

अपनी गाढ़ी कमाई से बनाए गए एसेट को गंवाना बहुत दुख पहुंचाता है. हालांकि, मंदी के दौर में इसके लिए तैयार रहना चाहिए. बिजनेस फेल होने या नौकरी जाने से किसी को भी इस स्थिति का सामना करना पड़ सकता है. याद रखें कि लेनदार कर्ज के भुगतान में डिफॉल्ट करता है तो भी वह एसेट पर सभी अधिकार नहीं खो देता है. उसे मानवीय व्यवहार पाने का पूरा हक है. अपने कर्ज की वसूली के लिए कर्ज देने वालों (बैंक, वित्तीय संस्थान आदि) को उचित प्रक्रिया अपनाना जरूरी है. सिक्योर्ड लोन के मामले में उन्हें गिरवी रखे गए एसेट को कानूनन जब्त करने का हक है. हालांकि, नोटिस दिए बगैर बैंक ऐसा नहीं कर सकते हैं. सिक्योरिटाइजेशन एंड रीकंस्ट्रक्शन ऑफ फाइनेंशियल एसेट्स एंड एनफोर्समेंट ऑफ सिक्योरिटी इंटरेस्ट (सरफेसी) एक्ट कर्जदारों को गिरवी एसेट को जब्‍त करने का अधिकार देता है. आइए, जानते हैं कि ऐसे मामले में लोगों को क्या अधिकार मिले हुए हैं.

​नोटिस देना जरूरी

​नोटिस देना जरूरी

लेनदार के खाते को तब नॉन-परफॉर्मिंग एसेट (एनपीए) में डाला जाता है जब 90 दिनों तक वह बैंक को किस्त का भुगतान नहीं करता है. इस तरह के मामले में कर्ज देने वाले को डिफॉल्टर को 60 दिन का नोटिस जारी करना पड़ता है. बैंकिंग कंसल्टेंट और पूर्व क्रेडिट काउंसलर वी.एन. कुलकर्णी कहते हैं, "अगर नोटिस पीरियड में बॉरोअर भुगतान नहीं कर पाता है तो बैंक एसेट की बिक्री के लिए आगे बढ़ सकते हैं. हालांकि, एसेट की बिक्री के लिए बैंक को 30 दिन और का पब्लिक नोटिस जारी करना पड़ता है. इसमें बिक्री के ब्योरे की जानकारी देनी पड़ती है."

एसेट का सही दाम पाने का हक

एसेट का सही दाम पाने का हक

एसेट की बिक्री से पहले बैंक/वित्तीय संस्थान को एसेट का उचित मूल्य बताते हुए नोटिस जारी करना पड़ता है. इसमें रिजर्व प्राइस, तारीख और नीलामी के समय का भी जिक्र करने की जरूरत होती है. इंडियालेंड्स के एमडी व सीईओ गौरव चोपड़ा कहते हैं, "उचित मूल्य का पता बैंक के वैल्यूअर लगाते हैं. अगर बॉरोअर को लगता है कि एसेट का दाम कम रखा गया है तो वह नीलामी को चुनौती दे सकता है." इस मामले में बॉरोअर को नया खरीदार खोजने का हक है. वह बैंक से नए खरीदार का परिचय करा सकता है.

बैंकों का लोन नहीं चुकाने पर क्या होता है, क्या गारंटर को भरना होता है पूरा पैसा, जानिए नियम

शुरुआती कोशिशें जब नाकाम हो जाती हैं, तभी बैंक कानूनी कार्रवाई शुरू करते हैं. अगर लोन लेने वाले व्यक्ति की मृत्यु हो जाए, कोई हादसा जाए या गंभीर रूप से बीमार पड़ जाए तो बैंक रीपेमेंट में मोहलत देता है.

बैंकों का लोन नहीं चुकाने पर क्या होता है, क्या गारंटर को भरना होता है पूरा पैसा, जानिए नियम

अगर किसी होम लोन बॉरोअर की मौत हो जाती है तो कर्जदार की मौत के बाद लोन चुकाने की जिम्मेदारी को-एप्लीकेंट या फिर गारंटर की होती है. अगर ये दोनों भी नहीं हैं तो बैंक उस शख्स के पास पहुंचेगा जो कर्जदार की संपत्ति का कानूनी उत्तराधिकारी होगा. इन तमाम रास्तों के जरिए अगर बैंक को यह लगता है कि उसके कर्ज की भरपाई संभव नहीं है तो वह उस प्रॉपर्टी की नीलामी करेगा और अपने बकाए का भुगतान करेगा. बदलते दौर में तो हर तरह के लोन का इंश्योरेंस होता है. बैंक इस इश्योरेंस के लिए प्रीमियम का भुगतान कस्टमर से ही करवाता है. ऐसे में अगर किसी बॉरोअर की मौत हो जाती है तो बैंक इंश्योरेंस कंपनी से पैसा लेता है.

लोन लेने जा रहे हैं तो आपके दिमाग में यह सवाल उठ रहा होगा. लोन लेने वाले सभी लोग उधार का पैसा नहीं चुका पाते. कुछ लोगों की मजबूरी होती है तो कुछ लोग जानबूझ कर डिफॉल्ट करते हैं. डिफॉल्ट करने वाले लोगों को लगता है कि कार्रवाई होगी भी तो वे उसे देख लेंगे. अमूमन लोग बैंकों या गैर-वित्तीय संस्थाओं के पैसे चुका देते हैं क्योंकि उन्हें कार्रवाई का डर होता है. लोन लेना मजबूरी है तो कही-कहीं जरूरी भी. होम लोन लेकर घर बनाते हैं और वही ऑटो लोन लेकर हम गाड़ी खरीदते हैं. दोनों की जरूरतें अलग-अलग हैं. फिर उस लोन पर ब्याज भरते हैं. जो लोग ब्याज और मूलधन का पैसा नहीं चुकाते, वे डिफॉल्ट घोषित हो जाते हैं.

क्या लोन नहीं चुकाने या डिफॉल्टर घोषित होने पर बहुत बड़ी आफत आ जाती है? यह पूरी तरह से लोन लेने वाले व्यक्ति पर निर्भर करता है. जो लोग लोन डिफॉल्टर के रूल और अपने अधिकार जानते हैं, वे बैंकों या गैर-वित्तीय संस्थानों के सामने मजबूती से अपनी बात रखते हैं. वे बताते हैं कि अभी पैसा क्यों नहीं लौटा पा रहे और भविष्य में उधार मिल व्यापार का भुगतान नहीं करता है? का पैसा लौटा देने की वे मंशा रखते हैं. डिफॉल्ट होने पर दो तरह की मुश्किल होती है. पहला, क्रेडिट स्कोर निगेटिव में चला जाएगा. लोन लेने और उसे नहीं चुकाने पर आपके क्रेडिट से जुड़ी सभी जानकारी सिबिल को भेज दी जाती है. ये सूचनाएं और भी क्रेडिट रेटिंग एजेंसी को दी जाती हैं. इससे आगे लोन लेने में दिक्कत आएगी. अगर आपने लोन लेने के लिए कोई प्रॉपर्टी बंधक रखी है तो बैंक उसे कैप्चर कर सकता है. बाद में उसकी नीलामी भी कराई जा सकती है.

क्या मिलती है मोहलत

ऐसा नहीं है कि लोन नहीं चुकाने पर हाथों हाथ कार्रवाई शुरू हो जाती है. बैंकों की तरफ से इसकी कुछ मोहलत मिलती है. सबसे पहले तो उधार लेने वाले व्यक्ति को एक नोटिस भेजा जाता है जिसमें लोन और ब्याज की राशि का जिक्र होता है. अगर बैंक को लगता है कि उधारकर्ता जानबूझ कर कर्ज नहीं चुका रहा, पैसे रहते हुए समय पर ईएमआई नहीं चुकाई गई या रीपेमेंट नहीं किया गया, तो बैंक कानूनी कार्रवाई शुरू कर सकता है. लोन लेने वाले व्यक्ति के साथ कोई गारंटर है तो बैंक पहले उससे संपर्क करता है. इसके लिए गारंटर एग्रीमेंट होता है. इसमें लिखा जाता है कि लोन लेने वाला आदमी उधार चुकाने में डिफॉल्ट करता है तो गारंटर को पैसा भरना होगा.

बैंक अपनी कार्रवाई पहला रीपेमेंट नहीं चुकाने पर ही शुरू कर देते हैं. लेकिन यह कार्रवाई कितनी गंभीर हो सकती है, वह बैंक और कस्टमर के बीच पनपे विवाद या रिश्ते पर निर्भर करता है. शुरुआती कोशिशें जब नाकाम हो जाती हैं, तभी बैंक कानूनी कार्रवाई शुरू करते हैं. अगर लोन लेने वाले व्यक्ति की मृत्यु हो जाए, कोई हादसा जाए या गंभीर मिल व्यापार का भुगतान नहीं करता है? रूप से बीमार पड़ जाए तो बैंक रीपेमेंट में मोहलत देता है. यह मोहलत उधार लेने वाले व्यक्ति (यदि दुर्घटना हो जाए या गंभीर तबीयत खराब) और उसके परिवार को मिलती है. रिजर्व बैंक का साफ कहना है कि उधारकर्ताओं को मोहलत देनी है और बैंक कभी बाहुबल का इस्तेमाल नहीं कर सकते.

मूलधन से ज्यादा ब्याज हो जाए तो

कभी स्थिति ये भी आती है कि आर्थिक स्थिति बिगड़ने पर उधार लेने वाला व्यक्ति समय पर ब्याज नहीं चुका पाता. इससे मूलधन से ज्यादा ब्याज की राशि हो जाती है. ऐसे में उधारकर्ता लोन चुकाने में असमर्थ हो जाता है. इसमें मोहलत देते हुए बैंक वन टाइम सेटलमेंट का ऑफर देते हैं. इस दशा में बैंक इस लोन को नॉन परफॉर्मिंग एसेट या NPA में डाल देते हैं. इसमें उधार लेने वाला आदमी दिवालिया घोषित हो जाता है जो लोन चुकाने में अक्षम मान लिया जाता है.

इससे बचने के लिए बैंक उस आदमी को एक बार में थोड़ी राशि चुका कर लोन से बाहर निकलने का मौका देती है. इसमें देखा जाता है कि बैंक मूलधन और ब्याज की अधिकांश राशि माफ कर देते हैं और एक लमसम राशि देने का प्रस्ताव दिया जाता है. इसका फायदा लिया जा सकता है लेकिन क्रेडिट स्कोर बट्टा खाते में चला जाएगा और आगे किसी तरह का लोन लेना मुश्किल होगा.

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